कल सर्फ़ ऐक्सेल इण्डिया के फ़ेसबुक पेज पर प्वि।ज्ञापन पर एक मित्र द्वारा मेन्शन किए जाने प वहाँ की जा रही जाहिलियत एवं उन्माद से भरी प्रतिक्रियाओं को देख कर मैं दंग रह गया.. एक साथ कई भावनाओं ने मन में घर कर लिया.. बहुत अफ़सोस भी हुआ; ग़ुस्सा भी आया और डर भी लगा इन नफ़रतों को देख कर.. एक बारगी तो मुझे घिन आने लगी यह सोचकर कि मैं भी इसी जाहिल मआशरे का हिस्सा हूँ लेकिन अगले ही पल मन ही मन यह अहसास मज़बूत हुआ कि नफ़रतें कितनी भी ज़्यादा क्यूँ न हो जाएँ मोहब्बत का मेयार हासिल नहीं कर सकतीं क्यूँकि इन्हीं नफ़रतियों के बीच कुछ लोग ऐसे भी थे जो मोहब्बत का पैग़ाम बाँट रहे थे.
दरअसल विविधताओं से भरे हमारे मुल्क में आपसी मोहब्बत और भाईचारे का नाम ही “भारतीयता” है जो इस ख़ूबसूरत मुल्क की बुनियाद है और इसे कुछ लफ़ंगे अपनी जाहिलियत ज़ाहिर कर कमज़ोर नहीं कर सकते..
लेकिन इन सब बातों के बावजूद यह बेहद ज़रूरी हो चला है कि इन नफ़रतों का सटीक आँकलन एवं विश्लेषण कर लिया जाए क्यूँकि कई दफ़ा अतीत में हम देख चुके हैं कि इन नफ़रतों की परिणति साम्प्रदायिक दंगों के रूप में हमारे सामने आती है!
जिसमें कई लोगों को महज़ मज़हबी पहचान के आधार पर मौत के घाट उतार दिया जाता है और जहाँ कोई इन्सान नहीं रहता बस हिन्दू और मुसलमान हो जाता है, इन परिस्थितियों में हम कैसे एक शांतिपूर्ण एवं ख़ुशहाल समाज की स्थापना की कल्पना भी कर सकते हैं.. इसलिए बेहद ज़रूरी है कि इन नफ़रतों को पैदा करने वाले कारणों और उनसे निजात पाने के उपायों को तलाशने का गम्भीर प्रयास किया जाए!
ज़ाहिर है कि हर एक सम्प्रदाय या मज़हब में कुछ लोग हैं जिनके दिलो दिमाग़ में दूसरे समुदाय या मज़हब के प्रति कुछ पूर्वाग्रहों ने घर कर रखा है, लेकिन भारत का एक सजग नागरिक होने के नाते हमारी ज़िम्मेदारी है कि हमारे अपने लोगों को इन पूर्वाग्रहों से निजात दिलाने में हम अपना योगदान करें!
यहाँ एक बात बहुत अफ़सोस के साथ कहनी पड़ रही है कि भारतीय मीडिया जिसकी ज़िम्मेदारी भी बहुत अहम है हमारे समाज का ताना बाना सुरक्षित रखने में वह अपने आकाओं के अनुसार दिन रात समाज को दंगाई बनाने के कुत्सित प्रयासों को बख़ूबी अंजाम दे रहा है, दरअसल हम और आप एक सभ्य समाज में जीने के मुग़ालते में ही रहे और इधर स्टेट की पूरी मशीनरी ने समाज के एक बहुत बड़े तबके को दंगाई बना डाला एक ऐसा समाज जो साम्प्रदायिक सौहार्द से लबरेज़ विज्ञापन में भी अपनी मज़हबी नफ़रतों और कुंठाओं को ज़ाहिर करने का अवसर ढूँढ लेता है.. स्थिति भयावह हो चली है इसलिए ज़रूरी है कि अमन पसन्द लोगों द्वारा संचार के प्रत्येक माध्यम द्वारा ऐसी नफ़रती सोच का पुरज़ोर विरोध दर्ज कराया जाए!
हो सकता है हमारे आपके लिखने से और अमन पसन्द लोगों को भी साहस मिले अपनी बात कहने का और हो सकता है नफ़रत फैलाने वाले लोग भी अपना आत्मविश्लेषण करने को मजबूर हों कि उनके इन नफ़रती बयानों का समाज पर कितना ग़लत प्रभाव हो रहा है…
यहाँ कुछ बातें हमें समझने की और आत्मसात करने की ज़रूरत है कि कोई भी व्यक्ति चाहे वो किसी भी मज़हब का हो उसको यह मुग़ालता नहीं होना चाहिए कि वह किसी ग़ैर मज़हबी व्यक्ति से तनिक भी कम या ज़्यादा भारतीय है, जितना ये देश किसी हिन्दू का है, उतना ही हर एक मुसलमान, सिख,ईसाई,जैन,बौद्ध या पारसी का है और ये अख़्तियार हमें हमारा संविधान देता है, इसलिए जितना जल्दी हम इस हक़ीक़त को अपने ज़ेहन में उतार लें उसमें ही हमारे देश,समाज एवं आने वाली नस्लों की बेहतरी है..
सब कुछ ख़त्म करने पर उतारू इस उन्मादी भीड़ का हिस्सा बनने से बचने के लिए बेहतर साहित्य पढ़ें, अपने आस पास के लोगों से मैत्री बढ़ाएँ, हमारे मुल्क ने एक से बढ़कर एक अफ़सानानिगारों को जन्म दिया है उनकी रचनाओं को पढ़ें, मोहब्बत भरे गीत गुनगुनाएँ देखिए चंद रोज़ में ही ज़िंदगी आपको ख़ूबसूरत नज़र आने लगेगी!
मोहब्बत के मायने केवल अपने महबूब को चाहना ही नहीं है बल्कि ऊपर वाले की बनाई हर मखलूक से मोहब्बत करें और अपनी आने वाली नस्लों को मोहब्बत की विरासत सौंपें नफ़रत की नहीं!
ख़ाली अपने मोबाईल पर प्यार भरी कॉलर ट्यून लगाने से काम नहीं चलेगा बल्कि उन प्रेम से भरे गीतों से प्रेरणा प्राप्त करते हुए अपने आस पास मोहब्बत की ख़ुश्बू बिखेरिए…
मोहब्बत एक ख़ुश्बू है हमेशा साथ चलती है..
कोई इंसाँ तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता..
मोहब्बत ज़िन्दाबाद..
– मोहित यादव
(लेखक शोध छात्र हैं एवं सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं)
रोहित आपका यह लेख बहुत प्रभावित करने वाला है आप अपनी लेखनी को धार देते रहिए बहुत आगे जाएंगे आपl
Nice and motivated think ing