छ मई से भारत में रमजान माह की शुरुआत होगी और उसी दिन भारत में लोकसभा चुनाव के चोथे चरण का मतदान होना है। उसके बाद मतदान के अन्य चरण भी रोजे के दिन ही होने वाले है।
खास बात यह है कि चुनाव कब ओर किस दिन होने है, यह सब तय करने का भारतीय चुनाव आयोग का विशेषाधिकार होता है। इस तरह की अड़चने व सुविधाओं को देखना चुनाव विभाग का अपना काम होता है। लेकिन इस तरह के फिजूल के मुद्दे मे भारत के कुछ सियासी लोग मुस्लिम समुदाय को उलझा कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश कर रहे है। जिसको किसी भी स्तर पर कतई अहमियत नही देनी नही चाहिये। इस तरह के मुद्दे पर मुस्लिम धार्मिक नेताओं को भी उलझने से बचना चाहिए और हर मतदाता को अपने मताधिकार का उपयोग करने की अपील करनी चाहिए।
भारतीय मुस्लिम समुदाय की यह एक विडम्बना रही है कि वो दूसरो के बुने जाल मे हरदम हर पल फंसने को तैयार रहते आये है। जबकि उनको अब इस तरह के जाल मे फंसने से बाज आना चाहिये।
मुस्लिम समुदाय को अपना लक्ष्य निर्धारित करके राजनीति करने पर ध्यान केन्द्रीत करना चाहिये। जब तपती धूप मे कड़ी मेहनत करते हुये रोजे की हालत मे हलाल रोजी कमाने में किसी तरह की कसर नही छोड़ी जाती है, तो फिर पांच साल बाद आने वाले लोकतांत्रिक पर्व मे महत्वपूर्ण हिस्सेदारी निभाने के लिये रोजे की हालत मे ओर अधिक ताकत के साथ तैयार रहना होगा। वतन की मजबूती के लिये अच्छे उम्मीदवारों को जिताने के लिये हर एक मतदाता को अपने मत का उपयोग करना चाहिये।
– अशफ़ाक़ कायमखानी
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)