“दिलीप कुमार और शाहरुख खान : अभिनय जगत् की सांयोगिक समानता”
दिलीप कुमार और शाहरुख खान
दोनों दो कालखंड के अभिनय जगत् के महानायक हैं।
दोनों की सफलता अप्रतिम है।
दोनों के अपने-अपने स्तर के फैन्स हैं।
दोनों में समानता के बहुतेरे सेतु हैं–
धार्मिक, व्यावसायिक, कलात्मक;
परंतु इन सबसे आगे नियति की अपनी समानताएं हैं,
जो विस्मयकारी हैं-
धर्मगत समानता सांयोगिक है व बहुतों में हो सकती है। यह एक सामान्य तथ्य है कि दिलीप कुमार और शाहरुख खान दोनों ही न केवल इस्लाम धर्म से जुड़े हैं, वरन् दोनों ही मुस्लिम पठान भी हैं।
यह एक सामान्य तथ्य ही है कि दोनों अभिनय जगत् की सफल हस्तियों में शुमार हैं। दोनों अपने-अपने समय के सुपरस्टार हैं। कामयाबी और अदाकारी में दोनों मिसाल की तरह रहे हैं।
दोनों के चेहरे-मोहरे इतने मिलते-जुलते हैं कि लोग दिलीप कुमार को शाहरुख खान का पिता समझें। सायरा बानो और दिलीप कुमार की शाहरुख़ से मुलाकात फिल्म ‘दिल आशना है’ के मुहूर्त पर हुई। उस समय दोनों ने ये बात कही थी कि अगर उनका कोई बेटा होता, तो बिलकुल शाहरुख़ जैसा दिखता। कहते हैं, तब से शाहरुख़ उनके लिए उनके बेटे जैसे ही बन गए। ये रिश्ता बन जाने के बाद शाहरुख़ अक्सर दिलीप साहब की तबियत का हाल-चाल जानने उनके घर जाते रहे हैं। उल्लेखनीय है कि दिलीप कुमार और सायरा बानो की खुद की संतान नहीं है।
सायरा बानो ने अपने पति और शाहरुख खान के बीच समानताएं बताते हुए कहा है कि शाहरुख के बात-बरताव के तौर-तरीके से लेकर बुद्धिमत्ता तक उनके पति के बहुत समान हैं। चेहरे-मोहरे की समानता बालों की समानता तक जाती है। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि छूने पर दोनों के बाल एक जैसे ही लगते हैं। यही वजह है कि जब भी मैं शाहरुख से मिलती हूँ, तो उनके बालों में उंगली फिराती हूं। जब हाल ही में वे दिलीप कुमार को देखने आए, तो उन्होंने पूछा- “आज आप मेरे बालों में हाथ नहीं लगा रही हैं।” कुछ समय पहले किसी म्यूजिक लॉन्च पर सायरा बानो ने मजाक में शाहरुख खान पर यह टिप्पणी की- “शाहरुख, मुझे तुम्हारा डीएनए टेस्ट करना चाहिए। मेरे पति और आप में इतनी समानताएं कैसे हैं?” इस पर शाहरुख ने शरमाते हुए जवाब दिया- “हाँ, आपको यह करना ही चाहिए।”
वैसे एक ही प्रोफेशन में मिलते-जुलते चेहरे-मोहरे के लोग आते रहे हैं। कभी बस नकल की भूमिका के लिए, तो कभी स्वतंत्र भी. इसलिए अगर दोनों में शारीरिक व चेहरे की ही समानता होती, तो विस्मय न होता। परंतु कुछ और समानताएं हैं, जो दूर तक जाती हैं, पृष्ठभूमि में, घटनाओं में। कुछ साम्य देखते हैं-
1. शाहरुख़ खान और दिलीप कुमार का संबंध सिर्फ फिल्मों की वजह से नहीं था, बल्कि ये संबंध तो उनके दिल्ली के घरों से भी जुड़ा है। दिलीप कुमार और शाहरुख़ खान दिल्ली के एक ही मुहल्ले की एक ही गली में रहा करते थे। शाहरुख़ बचपन में अपने पिता जी के साथ अक्सर दिलीप साहब के घर जाते रहते थे। 2013 में एक इंटरव्यू के दौरान शाहरुख खान ने बताया था- “दरअसल, मेरे पिता उन्हें जानते थे। दोनों दिल्ली की एक ही गली में रहते थे। बचपन में मैं दिलीप साहब से कई बार मिला। हम अक्सर उनके घर जाते थे। सायराजी को याद नहीं, लेकिन लंदन से उनकी दवाइयां मेरी आंटी ही भेजती थीं।” दिलीप कुमार को तो तब सारा हिंदुस्तान जानता था, मगर इत्तेफाक यह था कि दिलीप कुमार भी शाहरुख़ खान के पिता को जानते थे। दोनों एक ही मुहल्ले के जो थे।
2. यही नहीं, दोनों के पुराने पैतृक घर भी पाकिस्तान में एक ही प्रांत व मुहल्ले में हैं। दिलीप कुमार का जन्म पेशावर में किस्सा कहानी (ख्वानी) बाजार इलाके में हुआ था। किस्सा कहानी बाजार नामकरण खैबर दर्रे से आने वाले राहगीरों व सौदागरों के किस्से कहानियों के कारण पड़ा। तब तमाम किस्सागो वहां रहा व आया करते थे। यहीं दिलीप कुमार के पुरखों का निवास है। दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसंबर 1922 को एक अपेक्षाकृत समृद्ध परिवार में हुआ था। तब उनका मूल नाम मोहम्मद युसूफ खान हुआ करता था। वे लाला गुलाम सरवर खान और आयशा बेगम के बारह बच्चों में से एक थे। ब्रिटिश भारत में उनके पिता एक जमींदार और फल व्यापारी थे, जो पेशावर और नासिक के पास देवलाली में बागों के मालिक थे।
शाहरुख खान के पिता ताज मुहम्मद खान का जन्म पेशावर के शाहवाली कताल में हुआ था. शाहवाली कताल भी दिलीप कुमार की जन्मभूमि किस्सा कहानी बाजार इलाके से जुड़ी एक गली है। शाहरुख खान के पिता ताज मुहम्मद खान पेशे से वकील थे और कांग्रेस समर्थक ऐक्टिविस्ट एक स्वतंत्रता सेनानी थे. वे खुदाई खान अब्दुल गफ्फार खान के खिदमतगार सेनानी रहे हैं। 1947 में हुए भारत विभाजन में शाहरुख खान के पिता अपने पूरे परिवार को लेकर भारत में बस गए थे. ज्ञातव्य है कि शाहरुख खान के अनेक कजिन अभी भी पाकिस्तान में रहते हैं.
3. दोनों की जिंदगी में एक इत्तेफाक और भी अनूठे रूप में जुड़ा है। यह इत्तेफाक कैंटीन का है। दिलीप कुमार स्वयं पुणे या लोनावाला में कैंटीन चलाते थे और शाहरुख ख़ान के पिता दिल्ली में कैंटीन चलाते थे।
-एक दिन किसी बात पर पिता से कहा सुनी हो गई, तो दिलीप कुमार पुणे चले गए, अपने पांव पर खड़े होने के लिए. अंग्रेजी जानने के चलते उन्हें पुणे के ब्रिटिश आर्मी के कैंटीन में असिस्टेंट की नौकरी मिल गई. वहीं उन्होंने अपना सैंडविच काउंटर खोला, जो अंग्रेज सैनिकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हो गया था, लेकिन इसी कैंटीन में एक दिन एक आयोजन में भारत की आज़ादी की लड़ाई का समर्थन करने के चलते उन्हें गिरफ़्तार होना पड़ा और उनका काम बंद हो गया.
-यह भी संयोग था कि शाहरुख ख़ान के स्वतंत्रता सेनानी पिता जब भारत-पाक विभाजन में दिल्ली में बस गए, तब वे वहां कैंटीन चलाने लगे थे।
यह भोजनशाला भी दोनों शख्सियतों को अलग-अलग पीढ़ियों में जोड़ती है।
4. दोनों फ़िल्मी तारीख की चुनिंदा हस्तियों में हैं, यह सबको मालूम है। दोनों बिल्कुल गैर-फिल्मी पृष्ठभूमि से आते हैं। दोनों ने अपनी स्टाइल से अभिनय की बादशाहत पायी और अपने समय के सुपरस्टार बन गए। दोनों ही मुख्य रूप से व्यावसायिक फिल्मों के ही अभिनेता रहे हैं। कलात्मक व समांतर सिनेमा से दोनों का संबंध नाममात्र का है, किन्तु अभिनय में दोनों की ही सफलता अप्रतिम है।
5. कुछ फिल्मों में भी दोनों की इत्तेफाकन समानताएं हैं। दोनों ने ही अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत अपने समय की प्रसिद्ध फिल्मी अभिनेत्री की फिल्म से की।
-दिलीप कुमार ने 1944 में अपनी पहली फिल्म “ज्वार-भाटा” तब की सबसे प्रसिद्ध अभिनेत्री देविका रानी के आग्रह और अनुशंसा पर की थी। कहानी है कि कारोबारी दिनों में आमदनी बढ़ाने के लिए ब्रिटिश आर्मी कैंट में लकड़ी से बनी कॉट सप्लाई करने का काम पाने के लिए यूसुफ़ ख़ान को एक दिन दादर जाना था. वे चर्चगेट स्टेशन पर लोकल ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे, तब उन्हें वहां जान पहचान वाले मनोचिकित्सक डॉक्टर मसानी मिल गए. डॉक्टर मसानी ‘बॉम्बे टॉकीज’ की मालकिन देविका रानी से मिलने जा रहे थे और वे यूसुफ़ ख़ान को भी लेते गये। देविका रानी ने उन्हें देखकर 1250 रुपये मासिक की नौकरी ऑफ़र कर दी. साथ ही उन्हें दिलीप कुमार नाम के साथ ज्वार भाटा में बतौर नायक उतार दिया।
-शाहरुख खान ने भी अपनी पहली फिल्म बॉलीवुड की ड्रीमगर्ल हेमा मालिनी के निर्देशन में की थी। 1992 में आई “दिल आशना है” फिल्म शाहरुख के द्वारा साइन की गई पहली फिल्म थी, यद्यपि रिलीज के हिसाब से उनकी पहली फिल्म “दीवाना” थी। यह और बात है कि दोनों ही फिल्मों में उनकी हीरोइन दिव्या भारती थीं।
संयोगवश न दिलीप कुमार की “ज्वार-भाटा” बहुत सफल या उत्कृष्ट फिल्म रही, न ही शाहरुख खान की “दिल आशना है।”
6. फिल्मी कैरियर के रूप में सबसे बड़ी समानता देवदास फिल्म को लेकर है। दोनों ने अलग-अलग युगों में और अलग-अलग निर्देशकों के साथ प्रतिष्ठित शरतचंद्र चटर्जी नायक देवदास की भूमिका निभाई। दोनों के देवदास की तासीर व तस्वीर में जमीन आसमान का अंतर है, लेकिन जहां तक त्रासदी के नायक की बात है, दोनों की भूमिका सराहनीय रही है। संयोगवश दोनों की ही देवदास इस उपन्यास व नाम पर पहली फिल्म नहीं हैं। इस पर पहली फिल्म के. एल. सहगल की थी।
7. दोनों अभिनेताओं के फिल्मी कैरियर में एक बड़ी समानता यह भी है कि दोनों ने ही एक-एक फिल्म में एक किरदार अपने वास्तविक फिल्म अभिनेता के रूप में भी निभाया है।
-दिलीप कुमार ने गुलज़ार की फिल्म “कोशिश” में एक कैमियो में स्वयं दिलीप कुमार की भूमिका निभाई थी।
-इसके समानांतर शाहरुख खान ने भी “फैन” मूवी में स्वयं शाहरुख खान का किरदार निभाया था।
8. दोनों खानों में कतिपय फिल्मगत समानताएं ही शायद काफी न थीं। दोनों ही को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए समान संख्या में फिल्मफेयर पुरस्कार मिले। उल्लेखनीय है कि दोनों ही कलाकार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए यह पुरस्कार आठ-आठ बार पा चुके हैं। पहला फिल्मफेयर पुरस्कार ही दिलीप कुमार को मिला था। शाहरुख खान को कुल 14 फिल्मफेयर पुरस्कार मिले हैं, जिनमें 8 सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए हैं।
दिलीप कुमार को पद्मभूषण व पद्मविभूषण मिल चुका है, शाहरुख खान को अब तक पद्मश्री सम्मान ही प्राप्त हुआ है, परंतु आगे संभावना बनी हुई है। दिलीप कुमार को पाकिस्तान में सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान ए इम्तियाज से नवाजा जा चुका है। शाहरुख खान को फ्रांस के सर्वश्रेष्ठ सम्मान Ordre des Arts et des Lettres (2007) व Légion d’honneur (2014) सम्मानित किया गया है।
इन दोनों अभिनेताओं की पाकिस्तान में बहुत बड़ी फैन फॉलोइंग है। दिलीप कुमार को 1998 में पाकिस्तान में सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा गया था। यद्यपि शाहरुख की भी पैतृक भूमि पाकिस्तान में रही है, परंतु यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि उन्हें कभी पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिलेगा और ऐसे किसी सम्मान पर विचार किया भी जाए, तो शाहरुख उसे शायद स्वीकार न कर पाएंगे।
9. दिलीप कुमार जिस दौर के अभिनेता हैं, उस दौर में एक साथ तीन कुमारों/कपूरों का सुपरस्टार का दौर चल रहा था- दिलीप कुमार, राजेंद्र कुमार और राज कपूर। इन तीनों की अपनी-अपनी सफलताएं हैं। ऐसे ही शाहरुख खान के दौर में तीन खानों ने सुपर स्टार की तरह राज किया है- पहला, शाहरुख खान खुद, दूसरा, सलमान खान और तीसरा, आमिर खान। दिलीप कुमार के दौर में देवानंद और राजकुमार जैसी हस्तियों को इनकार नहीं किया जा सकता, किंतु इसी प्रकार शाहरुख के दौर में अक्षय कुमार और अजय देवगन अपनी अलग पहचान स्थापित करने में समर्थ रहे हैं।
10. दिलीप कुमार ने लगभग 65 फिल्मों में काम किया और शाहरुख खान ने अब तक लगभग 80 फिल्मों में काम किया है। सफलता में दोनों का अनुपात लगभग समान है। सन् 50-60 के दशक के दिलीप कुमार सफलतम अभिनेता हैं। इस समय की सर्वाधिक सफल फिल्मों में एक तिहाई दिलीप कुमार की ही हैं। शाहरुख खान की सफलता अंतर्राष्ट्रीय है, जिसके प्रमाण की आवश्यकता नहीं है।
11. रुचिकर है कि दोनों अभिनेताओं ने पाँच या अधिक फिल्मों में डबल रोल किया है।
दिलीप कुमार की डबल रोल की कुल 5 फिल्में हैं-
राम और श्याम, मधुमती, दास्तान, बैराग, किला,
शाहरुख खान की डबल रोल की 7 फिल्में हैं-
इंग्लिश बाबू देशी मैम, डॉन, डुप्लिकेट, करण-अर्जुन, ओम शांति ओम, पहेली, रा-वन।
शाहरुख खान का डबल रोल फैन मूवी में भी है, लेकिन वैसा ही रोल दिलीप कुमार का कोशिश मूवी में है।
12. अनेक लोगों का मानना है कि दोनों अभिनेताओं की शख्सियत में भी बहुत कुछ समानताएं हैं। दिलीप कुमार अपने समय में बेहद मुखर और जानकार हुआ करते थे। एक निदेशक ने कहा था- अगर फिल्म इंडस्ट्री में एक दिमाग है, जो दिलीप कुमार की बराबरी कर सकता है, तो वह है शाहरुख खान का। मैंने दोनों के साथ काफी समय बिताया है, इसलिए मुझे पता है।
13. यह यद्यपि कोई महत्वपूर्ण समानता नहीं कही जा सकती परंतु अंक ज्योतिष की दृष्टि से दोनों की ही जन्मतिथि का मूलांक 2 आता है। दिलीप कुमार का की जन्म तिथि है 11 दिसंबर, 1922, जबकि शाहरुख खान की जन्म तिथि है 2 नवंबर, 1965.
इन दोनों इन तमाम समानता ओं के बावजूद दोनों अभिनेताओं में जो अंतर है, वह भी बहुत बड़ा है। निजी जिंदगी में भी यह परिलक्षित हो सकता है। दिलीप कुमार और सायरा बानो की अपनी कोई संतान नहीं है, जबकि शाहरुख खान और गौरी छिल्लर खान के दो बेटे और एक बेटी है। दिलीप कुमार पिता क्यों नहीं बन सके, इस संबंध में उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘द सब्स्टांस एंड द शैडो’ में लिखा है- सच्चाई यह है कि 1972 में सायरा पहली बार प्रेग्नेंट हुईं। यह बेटा था (हमें बाद में पता चला)। 8 महीने की प्रेग्नेंसी में सायरा को बीपी की शिकायत हुई। इस दौरान पूर्ण रूप से विकसित हो चुके भ्रूण को बचाने के लिए सर्जरी करना संभव नहीं था और दम घुटने से बच्चे की मौत हो गईं। इसके बाद सायरा कभी प्रेग्नेंट नहीं हो सकीं।
दिलीप कुमार की दो शादियाँ हुई थीं। उनकी पहली शादी 1966 में अभिनेत्री सायरा बानो से हुई, जो उनसे उम्र में 22 साल छोटी हैं। उनकी दूसरी शादी 1981 में आसिमा साहिबा के साथ हुई थी, जो 2 साल बाद ही टूट गई थी।
शाहरुख खान के साथ ऐसी बात नहीं है। फिल्मों में आने से पहले ही 1991 में उनकी गौरी छिल्लर से शादी हो चुकी थी और वह उनसे केवल 5 साल छोटी हैं। वे अभिनय जगत् से नहीं हैं।
दिलीप कुमार व शाहरुख खान दोनों दो दौर के हैं। अत: तुलना उचित नहीं है। दिलीप कुमार “ट्रेजेडी किंग” रहे हैं व शाहरुख खान “किंग खान” बन कर संतुष्ट हैं। दिलीप कुमार की मुगले आजम शायद सबसे ज्यादा याद की जाती है। शाहरुख खान को अभी ऐसी ऐतिहासिक फिल्म की तलाश है। उनकी अशोका असफल व स्तरहीन रही है।
दिलीप कुमार भारतीय सिनेमा के सुनहरे दौर के पहले खान हैं और उस दौर के आखिरी जीवित अभिनेता हैं। भारतीय सिनेमा पर दिलीप कुमार का प्रभाव अद्वितीय है और यह प्रभाव आजादी के पहले से शुरू होकर बाद तक चलता है, जो आज तक जारी है। उनके ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों का ज्वार भाटा नये दौर की कलर फिल्मों तक बदस्तूर जारी रहा है और वे शायद एकमात्र अभिनेता हैं, जिनकी दो श्वेत-श्याम फिल्मों को रंगीन कर री-रिलीज किया गया है। वे जोगन से मुगले आजम तक राम और श्याम जैसे गंगा-जमुनी अभिनय के लिए स्मृत रहेंगे ही।
आज दिलीप कुमार नहीं रहे। शतायु से दो वर्ष पूर्व विदा हो गए, पर छोड़ गए अभिनय की स्मृतियाँ, सदियों के लिए।
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साम्य की विविध कथाएँ साभार
– कृष्णकांत पाठक (फेसबुक पेज से साभार )