राहे जिंदगी पर बहुत लोग गुजरते है
पर कुछ लोग निशा कदमो के छोड़ जाते है !
कोई एक साल हुआ। नीलाभ मिश्र आज ही के दिन हमे अलविदा कह गए और फिर उस जहाँ में चले गया जहां से कोई लौट कर नहीं आता।अफ़्रीकी कहावत है जब कोई उम्रदराज़ शख़्स जाता है तो उसके साथ एक मुकम्मल पुस्तकालय चला जाता है। मगर नीलाभ मिश्र ने जब रुखसत किया, वे 57 साल के थे। लेकिन उनके साथ एक किताबघर चला गया।
वे उस वक्त नेशनल हेराल्ड के सम्पादक थे। इसके पहले आउटलुक के सम्पादक रहे।राजस्थान से उनका खास रिश्ता है। वक्त और तारीख ठीक से याद नहीं।मगर वे बीस पचीस साल पहले अंग्रेजी दैनिक न्यूज़ टाइम के राजस्थान सवांददाता के रूप में जयपुर आये।जयपुर में ETV की शुरुवात नीलाभ मिश्र ने ही की।हम उस वक्त नवभारत टाइम्स में थे। तब से ऐसा रिश्ता बना की अटूट रहा।लेकिन वे इसे तोड़ गए / हम सभी को अधबीच छोड़ गए।
वे एक ऐसे इंसान थे जो जाति धर्म ,इलाका ,जबान ,रंग ,नस्ल और सरहदों से नहीं बंधते थे।’देखा करीब से बहुत अच्छा दिखाई दिया ,नजरे बहुत चलाई ,पर दूसरा ऐसा दिखाई नहीं दिया’।हम दिन दिन भर साथ रहते थे। मैं महज उनका ड्राइवर था। एक ही स्कूटर पर शहर नापते थे।वो बोलते ,हम सुनते। वो बोलते हम उनके कहे पर मनन करते।मेरे जैसे बहुत से लोगो के लिए वो एक शिक्षक की तरह थे।उनसे बहुत सीखा।
बहुत कम समय में वे राजस्थान को हम लोगो से भी ज्यादा जनाने लगे थे /अंग्रेजी में निष्णांत थे। पर पत्रकारिता के लिए हिंदी को चुना। दोनों भाषाओ पर बराबर का अधिकार था। इतिहास ,साहित्य ,भाषा ,संस्कृति ,जाति व्यवस्था ,धर्म अध्यात्म और अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध जैसे किसी भी विषय पर बात करो ,नीलाभ एक पुस्तकालय थे।जब सोफे पर अलसाई मुद्रा में बैठे हो , किताब हाथ में और पास में कुछ लजीज खाने को हो तो लगता गोया नीलाभ प्रसन्न भाव में है। इसी दौर में उनकी कविता श्रीवास्तव से मुलाकात हुई और फिर वो रिश्ते बने जिसे ता हयात कहते है।ऐसे बहुत लोग है जिनके लिए नीलाभ मिश्र एक वैचारिक संबल थे।
कभी किसी विपरीत हालात में उन्हें विचलित नहीं देखा।चेहरे पर तेज और होठों पर मुस्कान लिए नीलाभ मुखातिब होते थे और ‘हाँ महाराज ‘ उनका तकिया कलाम था। जितने आराम तलब थे उतने ही कठोर परिश्रमी। इंसान जितना बड़ा होता है उतना ही सरल होता है। नीलाभ के पिता बिहार में थोड़े वक्त के लिए मंत्री रहे। दादा स्व प्रजापति मिश्र स्वाधीनता सेनानी थे। उन्हें चम्पारण का गाँधी कहा जाता था। वे बिहार विधान परिषद के सदस्य भी रहे। मगर हम लोगो को यह बात बहुत बाद में पता चली। मेरे जैसे अनेक लोग है जो नीलाभ मिश्र के जरिये दुनिया को समझते थे /पर कोई भी यह नहीं समझ पाया कि वे असमय हमे छोड़ जायेगे।
उनके असमय जाने से इल्म का एक सिलसिला टूट गया ,वो जो आसमां को रोशन करता था , एक तारा टूट गया ,वो जो दरिया को बांधे रखता था ,किनारा टूट गया !
तुम्हारी याद में कुछ आंखे नम है ,कुछ दिल की वादियों में उदासी है,तुम्हारी याद में फिजा शोकाकुल है ,चेहरे जर्द है।तुम उस वक्त चले गए जब बहुत जरूरत थी। तुम उस वक्त चले गए जब जमाना बहुत गौर से तुम्हे सुन रहा था।बुरे लोग आते हुए दुःख देते है ,अच्छे लोग जाते हुए ग़म दे जाते है।
बिछड़ा इस अदा से कि रुत ही बदल गई
इक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया !
खिराजे अकीदत /श्रदा सुमन
सादर
–नारायण बारेठ