अकाल और कांग्रेस जुड़वाँ भाई-प्रधानमंत्री मोदी
(पचपदरा में रिफाइनरी शिलान्यास के मौके पर)
राजनीतिशास्त्रियो ने एक राष्ट्र के लिए दार्शनिक शासक की अवधारणा प्रस्तुत की है । इतिहास के पृष्ठों में एक प्रसंग मौर्यवंश में मिलता है कि सम्राट अशोक के पिताश्री बिंदुसार ने अपने देश हेतु सिरिया के शासक से तीन वस्तुओं की माँग की थी ।अंगूर , सूखे मेवे वर्णन मिलता कि शायद अंजीर और तीसरी और अहम वस्तु थी ”दार्शनिक” । सीरिया के राजा ने दो वस्तुएँ तो सहर्ष भेज दी, परन्तु दार्शनिको को भेजना से इंकार कर दिया था, क्योंकि एक दार्शनिक की राष्ट्र को कितनी जरूरत होती है वो बखूबी जानते थे।
वर्तमान भारतीय राजनीति की स्थायी कार्यपालिका में तो उच्च शिक्षित वर्ग और दार्शनिक शिफत सम्पदा मौजूद है परन्तु अस्थायी और व्यवहारिक भारतीय राजनीतिक में इसका अकाल ही नजर आता है क्योंकि वर्तमान मुख्य विपक्षी पार्टी के अध्यक्ष को आवाम धड़ल्ले से ”पप्पू” शब्द से नवाज रही है वहीं प्रधान सेवक अपनी वाणी से “पद” की गरिमा दाँव पर लगाये हुए है, वो अपनी नीतियों और लक्ष्यों को जनता के सामने रखने के बजाये सीधे ही चुनावी रैली के रोल में आ जाते है कल ही राजस्थान में उन्होंने अकाल जैसी प्राकृतिक आपदा को विपक्ष का भाई बता दिया उन्हें मालूम होना चाहिए राजस्थान एक सुखाग्रस्त प्रदेश है ,जहाँ अकाल ने समय-समय अपनी बिभिषिका दिखाई है।
लेकिन तनिक रुककर स्वयं का विश्लेषण करने की बजाये वो मशरूम की सब्जी और काजू की रोटी से प्राप्त आवश्यकता से अधिक अर्जित कैलोरी का दोहन रैली में करते हैं ज्ञात रहे कि शब्दो के बोलने पर भी ऊर्जा खर्च होती है एक अध्ययन के मुताबिक एक शब्द के लिए आठ -नौ कैलोरी खर्च होती है।