नफरत और बदले की राजनीति के बुलडोजर पर क्या सुप्रीम कोर्ट लगाएगा रोक ?

नाज़िम हसन जयपुर

बुलडोज़र का इस्तेमाल वैसे तो दुनिया भर में घरों, दफ़्तरों, सड़कों और दूसरे बुनियादी ढाँचों के निर्माण और विध्वंस के लिए किया जाता रहा है, लेकिन ऐसा लगता है कि भारत में बुल्डोजर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार के हाथों में एक हथियार बन गया हैं, जिसका इस्तेमाल अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के घरों और आजीविका को नष्ट करने के लिए किया जा रहा है।

हाल ही में हुई घटनाओं की अगर बात करे तो राजस्थान के उदयपुर में प्रशासन ने बुल्डोजर चलाकर घर तोड़ दिया। इस घटना के बाद वहां पहुंची फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य मुजम्मिल रिजवी और एडवोकेट हुजैफा से हमने बात की तो उन्होंने  बताया कि यह दो समुदाय के नाबालिग बच्चों के बीच हुई चाकूबाजी की घटना थी, जिसे जानबूझ कर सांप्रदायिक रंग दिया गया और भीड़ ने कानून हाथ में लेते हुए लोगों पर हमला करने की कोशिश की, उनकी दुकानों को नुकसान पहुंचाया गया, जबकि पुलिस भी भीड़ के पीछे थी। 

उन्होंने बताया कि चाकूबाजी के आरोपी नाबालिग बच्चे के पिता सलीम खान के घर पर 17 अगस्त को नोटिस चिपकाया गया था। जहां वो किराए से रहता था और उस मकान का मालिक रशीद खान था, जिसने प्रशासन से उसके मकान को ना तोड़ने की गुहार लगाई थी। लेकिन प्रशासन ने बदले की राजनीति के दबाव के चलते उसकी एक ना सुनी और सिर्फ 2 घंटे में मकान को ध्वस्त कर दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि नगर निगम प्रशासन ने घर से सामान हटाने का भी समय नहीं दिया।

इसी तरह मध्यप्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ता हाजी शहजाद के घर को तोड़े जाने को लेकर मध्य प्रदेश फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य जावेद अख्तर से बात की उन्होंने  बताया कि 21 अगस्त को लोग शांतिपूर्वक इस्लाम के पैगंबर के खिलाफ बयानबाजी करने वाले आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने थाने पहुंचे थे। जहां पुलिस ने कहा कि हम जांच के बाद ही आगे की कार्रवाई करेंगे। लेकिन इसी बीच कहीं से पथराव हुआ। पुलिस को भी नहीं पता था कि यह किसने किया, लेकिन फिर भी एफआईआर दर्ज कराने आए लोगों को ही इसका जिम्मेदार ठहराया गया। सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया। फिर हाजी शहजाद अली पर भीड़ का नेतृत्व करने का आरोप लगाया गया और उनके घर को अवैध घोषित कर उसे तोड़ दिया गया। वहां मौजूद लोगों ने बताया कि यह घर 6 साल पहले बना था, इससे पहले यह अवैध क्यों नहीं था ?

वास्तव में, विध्वंस के पीछे के वास्तविक कारण का भवन की कथित अवैधता से कोई लेना-देना नहीं था और उन्हें सरकार का मुखर आलोचक होने के कारण दंडित किया जा रहा था। 

आप कुछ समय से सुन रहे होंगे कि इस आरोपी के घर पर बुलडोजर चला दिया गया या उस आरोपी के घर को बुलडोजर से गिरा दिया गया और मुख्यधारा का मीडिया भी इसे बड़े उत्साह से प्रकाशित करता है। देखा जाए तो यह एक चलन बनता जा रहा है। आपने और हमने फिल्मों में सुना होगा और कई बार पढ़ा होगा कि 100 आरोपी भले ही छूट जाए लेकिन किसी एक निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। अब ऐसा नहीं है। अब अगर कोई आरोपी है तो बस शर्त यह है कि वह मुस्लिम होना चाहिए तो प्रशासन खुद कोर्ट बन जाता है और तुरंत कार्रवाई करते हुए उसके घर को बुलडोजर से गिरा देता है, जिससे आरोपी के पूरे परिवार को सजा भुगतनी पड़ती है और वे बेघर हो जाते हैं। इस तरह से घरों पर बुलडोजर कार्रवाई करना अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। यह कैसा कानून है जिसमें आरोपी की सजा उसके परिवार को दी जाती है। इस आधिकारिक कार्रवाई में कानूनी वैधता का बहुत ही हल्का सा आवरण है” और यह कि वे “कानून की मूल भावना को कुचल रहे हैं”।

हाल ही में ऐसे कई मामले हमारे सामने आए हैं जिसमें देखा गया है  कि किसी पर आरोप लगता है और प्रशासन सक्रिय हो जाता है और तुरंत उसका घर गिरा देता है। पूछने पर जवाब मिलता है कि यह घर अवैध था और सरकारी जमीन पर था। जब उस व्यक्ति पर कोई आरोप नहीं था तो यह घर क्या उस वक्त वैध था? क्या यह घर बनने तक वैध था? किसी मुसलमान पर आरोप लगाते ही उसका घर वैध से अवैध कैसे हो जाता है। जिस वक्त घर का निर्माण क्या जाता है उस वक्त क्या प्रशासन आंखें मूंद लेता है? निगम आंखें मूंद लेता है. इसे बनने के समय क्यों नहीं रोका जाता? लेकिन जब उस पर किसी तरह का आरोप लगता है तो उसे तुरंत नोटिस दे दिया जाता है और घर से सामान हटाने का कोई समय नहीं दिया जाता और उसका घर गिरा दिया जाता है। यह कैसा न्याय है? क्या यह न्याय की श्रेणी में आता है? कई लोगों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

साल 2023 में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने जहांगीरपुरी और नूंह हिंसा मामले के आरोपियों के घरों को बुलडोजर से गिराए जाने पर तुरंत रोक लगाने के लिए याचिका दायर की थी, लेकिन कोर्ट ने इस पर किसी भी तरह का कानून बनाने से इनकार कर दिया था बुलडोजर करवाही की शुरुआत यूपी से हुई नफरत की बुलडोजर प्रथा धीरे-धीरे पूरे देश में फैलती जा रही है लेकिन विपक्ष भी इस पर चुप है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि इस देश में विपक्ष बचा ही नहीं है। जब कोई सामाजिक कार्यकर्ता या पत्रकार इस बात का विरोध करता है तो विपक्ष यही कहता है कि ये अल्पसंख्यकों पर अत्याचार है लेकिन देखें तो ये अल्पसंख्यकों पर नहीं बल्कि  मुसलमानों के खिलाफ नफरत की राजनीति है। मुसलमानों के घरों पर बुलडोजर चलाया जा रहा है। ऐसा कब तक चलता रहेगा? क्या नफरत की इस राजनीति पर सुप्रीम कोर्ट लगाम लगाएगा ? एक बार फिर जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और 1 सितंबर को इस पर सुनवाई हुई है।

याचिका पर सुनवाई के दौरान बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ आरोपी होने के आधार पर किसी का घर गिराना ठीक नहीं है। कोर्ट ने सरकार और प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर कोई व्यक्ति दोषी भी हो तो भी उसका घर नहीं गिराया जा सकता।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने याचिका दायर कर सरकारों द्वारा आरोपियों के घरों पर मनमाने ढंग से बुलडोजर चलाने पर रोक लगाने की मांग की है। याचिका में यूपी, मध्य प्रदेश और राजस्थान में हाल ही में की गई बुलडोजर कार्रवाई का हवाला देते हुए अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाने का आरोप लगाया गया है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से ‘बुलडोजर न्याय’ की प्रवृत्ति को रोकने के लिए जल्द सुनवाई की अपील की गई है। इस मामले में अगली सुनवाई 17 सितंबर को होगी। 

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