इस अनोखी शादी के बारे में पढ़िए…जातिवाद, रूढ़िवादी परंपराएं कहीं सहमी हुई नजर आएंगी
हाल के दिनों में भारत जहां कुछ असाधारण शादियों का गवाह बना है, वहीं कुछ जोड़े अनोखे तरीके से शादी के बंधन में बंधकर हर तरफ चर्चा में रहे हैं। सामाजिक परंपराओं के बावजूद, महाराष्ट्र के पुणे से सचिन आशा सुभाष और शरवरी सुरेखा अरुण ने बीती 26 जनवरी, 2019 को शादी की, इस शादी का जिक्र हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यह शादी कुछ अलग थी।
एक अलग तरह की शादी
भारत ने 26 जनवरी को अपना 70वां गणतंत्र दिवस का जश्न मनाया, ठीक इसी दिन इन दोनों मूक योद्धाओं ने सत्यशोधक तरीका अपनाकर एक-दूसरे से शादी कर भारत के युवाओं के लिए एक मिसाल कायम की। सत्यशोधक शादी अवधारणा में शादी पुजारी और सालों से चलते आ रही धार्मिक परंपराओं के बिना एक समारोह में होती है, जिसको पहली बार समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले ने बताया था।
भारतीय शादियों में जहां चर्चाएं धर्म, जाति, वर्ग और खर्चा इन सब के आसपास घूमती रहती है इन दोनों ने जो महाराष्ट्र में सामाजिक कार्यकर्ता हैं, बिना ऐसी चर्चाओं वाली कास्ट लैस शादी करने का फैसला किया जो कि सामान्य ग्लिट्ज़ और ग्लैमर से बहुत दूर थी।
सचिन और शरवरी की मुलाकात दो साल पहले एक सामाजिक कार्यक्रम में हुई। यहां तक कि जब उन्होंने इस तरह से शादी करने के बारे में सोचा तो दोनों को यह पता था कि उनकी शादी सही मायने में एक मिसाल कायम कर सकती है।
लाइब्रेरी के लिए किताबें दान की
सचिन ने बताया कि उन्होंने शादी के लिए इन्विटेशन कार्ड भी नहीं छपवाए क्योंकि उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए अपने सभी दोस्तों और परिवार वालों को इन्विटेशन भेज दिया। इसके अलावा शादी में आने वाले मेहमानों से कहा गया था कि वो गिफ्ट्स के बजाय किताबें लेकर आएं। इस तरह शादी में दोनों ने लगभग 1000 लोगों की मेजबानी से 1200 से अधिक किताबें इक्ट्ठा की जिन्हें अब गाँवों में लाइब्रेरी को दान किया जाएगा।
केवल इतना ही नहीं, बल्कि आज के माहौल को देखते हुए और अपनी शादी को समाज के सामने एक मिसाल रखते हुए दोनों ने सभी जाति-आधारित पूर्वाग्रहों को तोड़ा और अपने सर नेम (आखिरी नाम या जाति) का कहीं भी जिक्र नहीं किया। उनका कहना था कि “मैं और मेरी पत्नी दोनों ही हमारे सर नेम को निजी रखना चाहते हैं और यहां तक कि हमने हमारे परिवारवालों को भी इसके बारे में नहीं बताया है।
संविधान पर आधारित शादी
इस शादी में एक और खास बात यह थी कि प्रत्येक रस्म जो एक पारंपरिक हिंदू शादी में देखी जाती है वो यहां गायब थी। सचिन ने कहा कि वह दोनों कन्यादान के विचार पर भी विश्वास नहीं करते हैं। वहीं शादी में ली गई शपथ भारतीय संविधान के सिद्धांतों पर आधारित थी, जिसमें उन्होंने समानता, विकास, विवेक और कड़ी मेहनत के साथ-साथ आपसी सम्मान जैसे सात सिद्धांतों के आधार पर गांठ बांधी।
अभी रूकिए, और खास बाकी है। यहां तक कि उनकी कुंडली भी एकदम आधुनिक थी। सुभाष का कहना था कि हम दोनों ने हमारी कुंडली खुद ही बनाई है जहां हमने फैसला किया कि शैक्षणिक योग्यता, इनकम जैसी बातों में मेल खाना चाहिए ना कि सदियों पुराने अंधविश्वासों में। वहीं शादी के बाद मेहमानों को दोनों ने एक किताब भेंट की जो शरवरी ने खुद ने लिखी है जिसमें इस अनोखी शादी की पूरी डिटेल है।
– अवधेश पारीक
(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार है और विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सामाजिक मुद्दों पर इनके लेख छपते रहते हैं)