लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस ने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट कल देर शाम जारी कर दी। जानकारों की मानें तो टिकट बंटवारे में सभी जाति और वोट बैंक के समीकरणों को ध्यान में रखा गया है।
कांग्रेस ने चुरू लोकसभा सीट से दिग्गज कांग्रेसी नेता हाजी मकबूल मंडेलिया के बेटे रफीक मंडेलिया पर एक बार फिर दांव खेला है जो अपने आप में इसलिए स्पेशल है कि विधानसभा चुनाव में हारने के बाद उन पर भरोसा दिखाना और दूसरा यह कि वो एकमात्र मुस्लिम उम्मीदवार है।
चुरू में कल शाम से चल रहे पटाखों की कई वजहें हैं जो हमें रफीक मंडेलिया को टिकट मिलने के कारणों तक ले जाती है। आइए जानते हैं क्यों कांग्रेस आलाकमान ने एक बार रफीक मंडेलिया पर भरोसा दिखाया।
कौन है रफीक मंडेलिया ?
चुरू के राजनीतिक गलियारों में हाजी मकबूल मंडेलिया का नाम आज भी उतना ही वजन रखता है जो दम खम देश की राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी रखते थे।
रफीक मंडेलिया चुरू के पूर्व विधायक हाजी मकबूल मंडेलिया के बेटे हैं। 58 साल के रफीक 10वीं क्लास तक पढ़े हुए हैं।
रफीक ने 2009 के लोकसभा चुनावों में अपना भाग्य आजमाया था जब वो कांग्रेस के टिकट पर वर्तमान सांसद राहुल कस्वां के पिता रामसिंह कस्वां के सामने चुनाव लड़े। हालांकि उस चुनाव में रफीक को हार का सामना करना पड़ा।
उस दौरान रफीक मंडेलिया को तीन लाख 64 हजार 268 वोट मिले, वहीं रामसिंह कस्वा को तीन लाख 76 हजार 708 वोट मिले थे।
इसके बाद रफीक ने हाल में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता राजेंद्र राठौड़ के सामने विधायकी का चुनाव लड़ा जहां भी उन्हें 1850 वोटों से हार मिली।
हालांकि चुरू से रफीक मंडेलिया के अलावा उनके बेटे इरशाद मंडेलिया, तारानगर विधायक नरेंद्र बुडानिया, सादुलपुर विधायक कृष्णा पूनिया जैसे नेताओं के नाम भी टिकट की रेस में आगे चल रहे थे।
पिता ने भी गाड़े हैं मजबूत राजनीतिक झंडे
रफीक को अपने पिता हाजी की राजनीतिक विरासत का हमेशा फायदा मिलता रहा है ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा। हाजी ने अपने राजनीतिक करियर में 2008 के विधानसभा चुनावों में हरलाल सहारण को हराकर विधायकी पर कब्जा किया था।
इसके बाद 2013 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के राजेंद्र सिंह राठौड़ से 20 हजार वोटों से हारने के बाद उनके राजनीतिक करियर को एक ब्रेक सा लग गया।
रफीक मंडेलिया को टिकट देने के तीन कारण
1. बीते विधानसभा चुनाव में रफीक मंडेलिया भाजपा विधायक राजेंद्र राठौड़ से महज 1850 वोट से हारे जिसके बाद कांग्रेस को चुरू में एक मजबूती की उम्मीद दिखाई दी।
वहीं रफीक को टिकट देने से मुस्लिम, एससी-एसटी, राजपूत वोटबैंक कांग्रेस के पक्ष में होने के आसार हैं।
2. 2009 का लोकसभा चुनाव रामसिंह कस्वां जैसे नेता के सामने लड़ने का अनुभव भी रफीक की टिकट पक्की करने में अहम साबित हुआ।
3. मुस्लिम वर्ग के कुछ तबकों का आर्थिक रूप से मजबूत होना भी रफीक की टिकट पक्की करने का एक कारण बना।