भारतीय राजनीति में 2019 के लोकसभा चुनावों में सबसे प्रमुख भूमिका दलित मतदाता की रहने वाली है। इसको लेकर सभी राजनीतिक दलो की आंतरिक राजनीति उबाल पर है।
भारत में करीब तीस प्रतिशत से अधिक दलित मतदाताओं हैं। जिसमें पिछले पांच साल में जगह जगह जिगनेश मेवाणी व चंद्रशेखर रावण जैसे अनेक युवा नेता उभर आये है।
जो पुराने दलित नेताओं के मुकाबले अधिक तेज तर्रार व राजनीति की ठीक से समझ रखते हैं। इसके अलावा बेहतर शिक्षित होने के कारण संघर्ष को ठीक दिशा मे चला कर कम समय मे अधिक सफलता पा ली है। और समुदाय मे तेजी के साथ जागृति लाने में कामयाब भी हो रहे है।
गुजरात चुनाव मे जिगनेश मेवाणी ने निर्दलीय विधायक बनकर पूना महाराष्ट्र से लेकर हिन्दी भाषी राज्यो से होते हुये दक्षिण भारत तक जो दलित समुदाय में सियासी व सामाजिक बेदारी लाने की मुहिम शूरु करके जगह जगह समाज में बदल कायम किया है, उसको भूला नही जा सकता है।
इसी तरस यूपी मे ऐडवोकेट चंद्रशेखर रावण ने भीम सेना बनाकर संघर्ष करते सभी तरह के सरकारी व गैर सरकारी अत्याचारो का मुकाबला करते हुये सरकारों को झूकाया है। उससे दलित समुदाय मे बड़ी क्रांति लाकर नये जोश का संचार किया है। इसी तरह नेशनल दस्तक चैनल के शम्भू सिंह ने दलित मुद्दो को ठीक ढंग से उठाकर समुदाय को हकीकत से रुबरु करवाया है।
दलित समुदाय ने भारत में पहली दफा आरक्षण मे छेड़छाड़ करने के खिलाफ दो अप्रैल को शांतिपूर्ण तरीके से सफल भारत बंद किया। इसके बाद पूरे विश्व का ध्यान अपनी तरफ खींचने के बाद समुदाय मे संघंर्षशील युवाओं की तादाद मे तेजी के साथ इजाफा होता नजर आ रहा है।
2019 के चुनावों को लेकर अधिकांशतः मीडिया अपना दोहरा रुख बनाये होने के साथ दलित मुवमेंट को कोई जगह नही दे रहा है। जबकि दलित मतदाता ही देश की राजनीति की आगामी दिशा तय करेगा।
– अशफ़ाक़ कायमखानी
(लेखक एक राजनीतिक विश्लेषक हैं)