–भंवर मेघवंशी
जालोर जिले के सांचौर तहसील क्षेत्र के झाब थाना इलाके के चौरा गांव का एक धर्मभीरु आस्तिक हिन्दू दलित लाभु राम बिजरोल खेड़ा के खेतेश्वर मन्दिर में जाति छुपा कर चला गया ।
शायद भूखा रहा होगा,दर्शन की भूख मिटी तो पेट की भूख बुझाने मन्दिर की भोजनशाला में चला गया,खाना खा कर प्लेट उठाकर बाहर निकलने ही वाला था कि पकड़ा गया ।
किसी दलित से एकदम जाति पूछी जाये तो वह संकोच कर जाता है,कभी कभी कुछ और बता देता है,लाभु राम के साथ भी यही हुआ,उसे पूछा गया तो उसने सोचा कि यह मंदिर तो राजपुरोहित समाज का है ,तो यहाँ चौधरी बताना ठीक रहेगा ,कह दिया होगा ,पर पूछनेवाले उसके हावभाव से ताड़ गये कि हो न हो यह दलित ही होगा ।
जातिवादी भीड़ ने घेर कर पूछा तो सच बताना पड़ा, बताया कि मेघवाल हूँ, बस फिर क्या था,एक झन्नाटेदार थप्पड़ लाभु राम के गाल पर पड़ा, जातिगत गालियों की तो बौछार ही हो गयी ,उसे झूठी पत्तल के साथ वापस नीचे बिठाया गया ,बाद में लाठी डंडों से भी पीटा गया।
भरपूर अपमान के पश्चात लाभु राम को धकियाते हुये मन्दिर की सीढ़ियों पर ले जाकर खड़ा किया गया,हाथ जोड़कर माफी मंगवाई ,उसे जमीन पर पटका गया,उसको चुनोती दी गई कि अब बुला अपनी जाति के छोरों को अपनी मदद के लिए,जमीन पर माथा रगड़वाया और उसकी जेब में रखे हुये 36 सौ रुपये जुर्माने के नाम पर छीन लिए गये ।
जातिगत अपमान और मारपीट के इस जुल्मी घटनाक्रम के दौरान जातिवादी तत्वों ने पीड़ित लाभु राम का वीडियो भी बनाया,जिसमें यह अपमानगाथा साफ दिखाई पड़ती है ।
एक भूखे पेट दलित ने जाति छुपा कर मन्दिर में प्रवेश करके खाना खाने का जो अपराध किया ,उसकी सजा सवर्ण हिन्दू भीड़ ने हाथोहाथ दे दी …और अपने धर्म को अछूत हिन्दू के हाथों पतित और भ्रष्ट होने से बचा लिया !
हिन्दू धर्म के इन महान रक्षकों का संघ,भाजपा, विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल को सम्मान करना चाहिए । इस जातिवादी भीड़ को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किये जाने की जरूरत है ,उन्होंने वही किया ,जो उनका धर्म और उसके शास्त्र उन्हें सिखाते है,जो उन्होंने अपने समाज और परिवार में सीखा, सुना,देखा और जाना, उन्होंने उसी को इम्प्लीमेंट किया है ।
मुझे सवर्ण जातिवादी हिदुओं से कोई दिक्कत नहीं है,वो अच्छे से अपना काम कर रहे है ,दलितों अछूतों से अपने महान धर्म को बचा रहे हैं।
मुझे थप्पड़ खा कर ,जूते खा कर, लाठी खा कर भी अपनी बार बार ऐसी की तैसी करवाने के लिए विभिन्न भगवानों के मंदिरों में जाने वाले दलितों से शिकायत है .
क्यों जाते हो इन मंदिरों में ? क्यों गिरते हो उनके भगवानों के पैरों में ? क्या रखा है इन प्रस्तर प्रतिमाओं में ? क्या तुम इन पत्थरदिल सवर्ण हिदुओं की निष्ठुरता नहीं जानते ? क्या मिला है आज तक इन मंदिरों में अपमान के सिवा, और अब भी क्या मिल जाएगा जूते, लाठी,थप्पड़ के सिवा ?
कुछ भी नहीं मिलेगा इन धर्मस्थलों में ,ये जातीय अहंकार के अड्डे है ,विशुद्ध व्यावसायिक स्थान है ,इनकी घंटियों से दलित बहुजनों का न भला हुआ न होगा ,इसलिए ये मंदिर,मस्ज़िद ,गुरुद्वारे,चर्च ,जप,तप ,छापा ,माला ,तिलक सब त्याग कर संविधान,शिक्षा,लोकतंत्र और आर्थिक समृद्धि का मार्ग लीजिये ।
लात मारिये उस व्यवस्था को जिसमें आपकी कोई इज़्ज़त नहीं है ,मत खाईये उनका खाना, जो आपके घर आ कर नहीं खाते है . जो आपकी चाय नहीं पिये,उनका पानी तक मत पीजिए,जिन मंदिरों में आपका अपमान हो ,अत्याचार हो, उनमे जाना तो बहुत दूर की बात, उस तरफ थुंकिये भी मत ,झांकिए भी मत ।
ऐसे धर्म ,समाज और ईश्वर को अपने जूते के तल्ले नीचे रखिये ,जो आपका मान सम्मान भी न बचा सके ।
धर्मों में मुक्ति मत ढूंढिए ,धर्मों से मुक्ति की कोशिश कीजिये,यही मुक्ति का मार्ग है ।
-( भंवर मेघवंशी, लेखक शून्यकाल के संपादक है , यह लेख उनकी फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)