होली-गीत-शहनाई गूंजती हे
,,,,,,,,,,
शहनाई गूंजती हे ,मिर्द़ंग भी बज रहा हे।
अलगोजिये की लय पे,हर कोइ झूमता ।।
करता हे रक्स कोई ,
गाता हे कोई गाना,
सब मिल के इक हुऐ हैं
अपना हो या बेगाना।
होली के रंग मैं हर कोई रंग चुका हे।
शहनाई गूंजती हे………
अपना हो अजनबी हो,मुफिलस हो या गनी हो ।
आक़ा हो या कि नोकर,साइल हो या सखी हो।
बच्चा, जवान ,बूढ़ा, कोई भी आदमी हो।।
होली का जश्न देखो,सब को लुभा रहा हे।
शहनाई गूंजती हे……….
मुरली बजाये कान्हा,
करती हे रक्स राधा।
पहले तो झूमती हे,
लहरा के घूमती हे,
शर्मा के फिर हया से,
चेहरे को ढाकती हे,
बरसों का यह नहीं हे सदियों का सिलसिला हे।
शहनाई गूंजती हे…….
इक दूसरे से मुज़्तर,,
लिपटें गले से हंसकर,
चेहरे पे रंग मलकर
डाले गुलाल सर पर ,
खुशियों की देखो हरसू ,
फेली हुई हे खुश्बू ,
होली का देखो मंज़र ,किस दर्जा खुशनुमा हे।
शहनाई गूंजती हे……
कुरजां-मुक्तक, उन्वान-होली
कुरजां,खेलूं कैसे खेलूं, खेलूं किस के संग।
फीके पड़गय बिन साजन के, होली के सब रंग।।
ढोल, मजीरा,अलगोजिया,दफ नक्कारा,शहनाइ।
साज़ अधूरे सब हैं जब तक, तू न बजाए चंग।।
होली गीत- आए दीवाने होली के
तू चंग बजा या रक्स दिखा,मैं छेड़ूं तराने होली के।
हर रोज़ कहां ये आते हैं, लम्हात सुहाने होली के।।
तुम झूमते गाते मस्ती मैं,जिस राह से गुज़रो बस्ती मैं।
ये देख के दुनिया कह उट्ठे, लो आऐ दिवाने होली के।।
यूं गाने बजाने महफ़िल मैं होने को तो होते रहते हैं।
कुछ तर्ज़ अनोखी ,रखते हैं ये गाने बजाने होली के।।
मिलने को तो मिलते रहते हैं हम शाम ओ सहर हर रोज़ यहां।
कुछ खा़स तरह के होते हैं, ये मिलने मिलाने होली के ।।
ख़ामोश क्यों बैठा हे तन्हा, अब शोर मचा हंगामा कर।
आ साथ मेरे तू घर से निकल,रंगों मैं नहाने होली के।।
जो रूठे हुऐ हैं ए मुज्तर,,अब आओ चलें हम उनके घर।
अच्छा हे,हसीं हे,ये मोक़ा, मिल आयें बहाने होली के।।
-अब्दुल सलाम मुज्तर
(छबड़ा जिला बारां राजस्थान)