हालांकि लोकसभा चुनाव के परिणाम आने मे अभी एक दिन शेष है। लेकिन प्रायोजित सभी तरह के ऐक्जिट पोल तेईस मई के परिणाम के दिन 1998 से लगातार इसबार भी धराशाई होते सभी ऐक्जिट पोल की तरह साफ नजर आयेगा कि भारत मे मोदी सरकार की रवानगी होगी और यूपीए सरकार बनने जा रही है।
दो दिन पहले विभिन्न तरह के जारी ऐक्जिट पोल के आंकड़ों की बहस मे ना जाकर भारत की राजनीति पर नजर रखने वालो का मानना है कि 2014 की तरह कमोबेश 2019 के लोकसभा चुनाव में भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की कोशिशों के चलते मोदी लहर नजर आती है। पर 2014 के लोकसभा चुनाव मे मात्र इकतीस प्रतिशत मत लेकर भाजपा ने स्पष्ट बहुमत पाया था।
2014 मे यूपीए व तीसरे मोर्चे के घटक अलग अलग रहकर चुनाव लड़कर एक दूसरे दल के उम्मीदवार को काट रहे थे। आज आसाम व बंगाल को छोड़कर बाकी सभी जगह यूपीए व तीसरा मोर्चा मिलकर या आपसी समझ बना कर चुनाव लड़ रहे है। 2014 के चुनाव मे भाजपा के खिलाफ वाले 69 प्रतिशत मत इसबार किसी ना किसी रूप मेंं साथ रहकर या फिर आपसी समझ बनाकर चुनाव लड़ रहे है।
2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 2019 के चुनाव को कई तरह से अलग पाते है। बिहार, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश सहित कुछ प्रदेशो मे कांग्रेस पहले अकेले और अब गठबंधन के साथ चुनाव लड़ रही है। केरल मे इस बार भी पहले की तरह गठबंधन के साथ चुनाव लड़ रही है। 2014 के मुकाबले आज के चुनाव के समय राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ , पंजाब व कर्नाटक मे कांग्रेस की सरकार या सरकार में भागीदार है। इसी तरह यूपी मे बसपा , सपा व लोकदल ने 2014 का लोकसभा चुनाव अलग अलग रहकर लड़ा था और आज तीनो दल गठबंधन करके चुनाव लड़े है।
2014 के चुनाव के समय अन्ना आंदोलन व विभिन्न तरह के सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार होने की खबरों के चलते आम मतदाता एक दफा अच्छी उम्मीद को लेकर बदलाव की चाहत के साथ सरकार के खिलाफ मजबूती के साथ खड़ा होने के अलावा बेरोजगार-किसान व गरीब तबका उस समय मोदी के रूप में एक उचित परिवर्तन मानकर मतदान किया था।
2014 के चुनाव मे अल्पसंख्यक मतदाता उदासीन व अनेक दलों के उम्मीदवारों के मध्य बंटवारे की भेंट चढ़ा हुआ था। दलित, आदिवासी मतदाताओं के बड़े तबके का झुकाव भी 2014 मे भाजपा की तरफ साफ नजर आ रहा था। जबकि 2019 के चुनाव में अल्पसंख्यक मतदाता बिना बंटे निशाना साधकर सक्रियता के साथ मतदान करता नजर आया एवं दलित व आदिवासी मतदाताओं के बड़े हिस्से का झुकाव भी भाजपा के बजाय यूपीए की तरफ नजर आ रहा था।
यूपी मे भाजपा कम से कम पचास सीट खो रही है। एवं बिहार, झारखंड और गुजरात में भी एनडीए को नूकसान उठाना तय है। बंगाल मे भाजपा की दो से तीन सीट हो सकती है। जबकि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान , पंजाब, हरियाणा, व दिल्ली में भी भाजपा को बडा नुकसान होने जा रहा है। दक्षिणी भारत मे भाजपा का कोई खास प्रभाव दशकों से नही है। फिर ऐक्जिट पोल , पोल मे ढोल बजाने वाली कहावत सिद्ध कर रहे है।
राजस्थान के सम्बंध मे ऐक्जिट पोल कुल पच्चीस सीटों में से कांग्रेस की दो सीट या फिर शून्य आने की बताते है। लेकिन चुनावों पर नजर रखने वाले बताते है कि बाड़मेर, जालौर, जोधपुर, नागोर, सीकर, श्रीगंगानगर, अलवर, करोली-धोलपुर, टोंक-सवाईमाधोपुर, व दौसा सीटे आराम से कांग्रेस के खाते मे जाती नजर आ रही है। जबकि भरतपुर व बीकानेर के अलावा पाली में भी तगड़ा मुकाबला माना जा रहा है।
कुल मिलाकर यह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव मे 31प्रतिशत मत पाकर भाजपा ने 282 सीट लेकर बहुमत पाकर सरकार बनाई थी। जबकि 2014 के चुनाव मे भाजपा के खिलाफ वाला 69 प्रतिशत मतदाता उस समय टूकड़ो टूकड़ो में बंटा हुवा था। 2019 के चुनाव मे भारत का उस समय का 69 प्रतिशत मतदाता आज किसी ना किसी रुप मे एकजुट होकर मतदान करता नजर आया है। चुनाव परिणाम आने मे अभी एक दिन शेष है। लेकिन यह तय है कि ऐक्जिट पोल परिणाम के समय ओंधे मुहं गिरते नजर आयेंगे।
-अशफ़ाक़ कायमखानी
(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं)