जयपुर खुली जेल की जमीन अस्पताल को देने पर PUCL ने जताया कड़ा विरोध

जयपुर। शनिवार को जयपुर में उच्चतम न्यायालय के आदेशों के बावजूद जयपुर की खुली जेल की दो-तिहाई जमीन को जेडीए द्वारा हस्तांरण को लेकर पीयूसीएल राजस्थान द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। पीयूसीएल का आरोप है कि जेडीए द्वारा जमीन अधिग्रहण व हस्तांतरण, उच्चतम न्यायालय के आदेशों के बावजूद किया गया जो की अदालत की अवहेलना है। इसी मुद्दे को लेकर जरूरी कागजात के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई। प्रेस कांफ्रेंस को कविता श्रीवास्तव (राष्ट्रिय अध्यक्ष) और भंवर मेघवंशी (राज्य अध्यक्ष) ने संबोधित किया।

प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि सांगानेर, जयपुर में स्थित सम्पूर्णानंद खुली जेल की 3.04 हेक्टेयर (30,400 वर्ग मीटर) भूमि में से 2.2 हेक्टेयर (21,948 वर्ग मीटर) भूमि को सेटेलाइट अस्पताल के लिए चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग को आवंटित करने पर  PUCL स्तब्ध है। यह कार्य जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा धृष्टता से किया गया है और राजस्थान सरकार के इस कृत्य की निंदा की जानी चाहिए। 3.04 हेक्टेयर में से अब खुली जेल को केवल लगभग 0.84 हेक्टेयर (8452 वर्ग मीटर) भूमि में सिमटा दिया गया है, और दो-तिहाई से अधिक भूमि छीन ली गई है। ज्ञात हो की खुले  कैम्प में खुद कैदी निवासी अपने घर बनाते हैं, मरम्मत करते हैं | जमीन का ही मसला नही है, बल्कि लगभग 200 घर, स्कूल, आंगनवाड़ी, स्टाफ कॉर्टर, ऑफिस, हॉल आदि, सभी जायेंगे |

उन्होंने कहा कि PUCL का यह उद्देश्य नहीं है कि सांगानेर में एक सार्वजनिक अस्पताल की स्थापना को रोका जाए। हम सांगानेर के लोगों की कठिनाइयों और समस्याओं के प्रति पूरी सहानुभूति रखते हैं, विशेषकर जब क्षेत्र में सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों की कमी है। बात यह है कि अस्पताल की स्थापना को ओपन कैंप (जेल) की ज़मीन को छीनकर नहीं किया जाना चाहिए।

10 दिसंबर 2023  को, PUCL ने ओपन कैंप में एक सर्वे किया था। उस समय वहाँ 423 कैदी थे, जिनमें 400 पुरुष और 23 महिला कैदी शामिल थे। उस दिन खुली जेल के परिसर में कुल 633 लोग रह रहे थे, जिसमें कैदियों के परिवार के सदस्य भी शामिल थे। यह संख्या समय-समय पर बदलती रहती है। कभी-कभी पूरा परिवार आकर रहता है, तो कभी सिर्फ कुछ सदस्य ही आते हैं। कई बार कैदी अकेला जीवन जीते हैं, बिना किसी परिवार के। दिसंबर में कई अकेले पुरुष और महिलाएँ वहाँ रह रहे थे। आज की तारीख में 393 कैदी हैं इस खुले कैम्प में। अनेक पेरोल पर भी हैं | कुल संख्या लोगों की परिवारों के साथ लगभग 900 है।

PUCL के अनुसार, जिस भूमि पर खुली जेल पिछले छह दशकों से चल रही है, उसे इतनी आसानी से छीन लिया गया क्योंकि राजस्थान सरकार की शायद यह धारणा है कि कैदियों को इतनी बड़ी जगह की जरूरत नहीं है, वे छोटे स्थानों में रह सकते हैं और अमानवीय परिस्थितियों में जी सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें पता था कि कैदी राज्य के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाएंगे, क्योंकि वे ओपन जेल में रहने और अपने परिवारों के साथ रहने की स्वतंत्रता खोना नहीं चाहेंगे। राज्य ने कैदियों की इस कमजोरी का फायदा उठाया।

पीयूसीएल का आरोप है कि 1963 से आवंटित खुली जेल की भूमि, जिसकी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा की गई है, उसपर इस तरह से कब्जा करना, भारत की सबसे बेहतरीन खुली जेल संस्था को समाप्त करने का प्रयास है। राजस्थान के 51 खुले कैम्प में यह सबसे बड़ा है। 51 खुले कैम्प में कुल 1600 बंदियों की रहने की क्षमता है, जिसमे अभी भी 1339 बंदी ही रह रहे है, 84 % ही भरे है, जबकी बंद जेलों से लोग उतारूँ है वहां जाने के लिए।

यहा जानना जरूरी है कि सर्वोच्च न्यायालय ने Suhas Chakma vs Union of India और अन्य मामलों में राजस्थान सरकार से कहा था कि वह अपनी खुली जेल को एक केस अध्ययन के रूप में प्रस्तुत करे। यह समय था कि ओपन जेल के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाए, जिसमें आवास, पानी, स्वच्छता, बिजली, स्कूल और आंगनवाड़ी शामिल हों। पिछले रिपोर्टों, जिनमें पार और PUCL की रिपोर्टें शामिल हैं, ने इस पहलू को उजागर किया था, इसके बजाय राजस्थान सरकार ने जेल पर ही हमला कर दिया है।

पुनर्स्थापनात्मक न्याय के विचार पर हमला

दरअसल, खुली जेल पर हमला वास्तव में पुनर्स्थापनात्मक न्याय और सुधारात्मक स्थानों के विचार पर हमला है। इस विचार का उद्देश्य खुली जेल के कैदियों के लिए एक सामुदायिक स्थान प्रदान करना था, न कि केवल कुछ आवासीय मकान, जो अब घटकर रह जाएंगे। यह बाहरी लोगों के लिए भी खुला था- पड़ोसी कॉलोनियों के बच्चे ओपन जेल की खुली जगह में फुटबॉल और अन्य खेल खेलने आते थे, जिससे कैदियों के बच्चे और कैदी स्वाभाविक रूप से बाहरी बच्चों के साथ घुल मिल जाते थे।

इसके अलावा, राजस्थान सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय और राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर बेंच के विभिन्न आदेशों की अवमानना भी की है। 

राजस्थान सरकार ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना की है

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सिविल रिट याचिका संख्या 1082/2020 Suhas Chakma vs Union of India और अन्य में, 17 मई, 2024 को, माननीय न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और माननीय न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने अपने आदेश के बिंदु संख्या “9” में स्पष्ट रूप से कहा, “…. हमें यह भी सूचित किया गया है कि जयपुर के सांगानेर खुली हवाई शिविर का क्षेत्रफल कम करने का प्रस्ताव है। इसलिए हम निर्देश देते हैं कि जहां भी खुली जेल/संस्थाएं/कारागार संचालित हो रहे हैं, वहाँ क्षेत्रफल में किसी भी प्रकार की कमी का प्रयास नहीं किया जाएगा।”

राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना

डी.बी. सिविल रिट याचिका संख्या 2808/2012, सिविल रिट याचिका संख्या 5463/2015, डी.बी. सिविल रिट याचिका संख्या 17462/2017, सुओ मोटो —-याचिकाकर्ता बनाम राजस्थान राज्य में, माननीय न्यायमूर्ति इंदरजीत सिंह और माननीय न्यायमूर्ति भुवन गोयल ने अपने आदेश दिनांक 23/07/2024 में अपने अंतरिम आदेश में कहा, “…..मामले की स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए आठ सप्ताह का समय मांगा है” और मामले को 25.09.2024 को सूचीबद्ध करने के लिए कहा। बावजूद इसके कि राजस्थान उच्च न्यायालय इस मामले को लेकर सुनवाई कर रहा था और न्यायमित्र ने 17 मई के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को प्रस्तुत किया था, जिसके बारे में महाधिवक्ता को पूरी जानकारी थी, यह चौंकाने वाली बात है कि 30 जुलाई को जेडीए द्वारा चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग को भूमि आवंटित कर दी गई।

जेडीए द्वारा चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग को भूमि आवंटन पत्र : सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का स्पष्ट उल्लंघन

संशोधित आवंटन पत्र दिनांक 30/07/2024, क्रमांक /ज. वि. प्रा / उपा. /ज़ोन – 4 / 2024 / डी -1385, जो कि निदेशक सार्वजनिक स्वास्थ्य, चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाएं, राजस्थान के नाम से संबोधित है, कहता है कि “जयपुर विकास प्राधिकरण की भूमि एवं सम्पत्ति निस्तारण समिति की 194 वीं बैठक दिनांक 22.07.2024 के निर्णय में उपायुक्त जोन द्वारा सेटेलाईट अस्पताल सांगानेर के प्रयोजनार्थ राजस्व ग्राम सांगानेर के खसरा नम्बर 47, 48, 49, 50, 51, 52, 53, 54, 55, 56, 57, 68, 69, 70, 71, 72, 73, 74, 75, 76, 78, एवं 131 कुल रकबा 3.04 हैक्टेयर में से 21948 वर्गमीटर भूमि जो पूर्व में रिफयूजी कैम्प के नाम दर्ज रिकोर्ड थी । वर्तमान में नामान्तरण पश्चात तहसीलदार सांगानेर से जविप्रा के नाम दर्ज रिकॉड किया गया, के निःशुल्क आवंटन बाबत एजेण्डा प्रस्तुत किया गया । समिति द्वारा विचार विमर्श कर प्रकरण भू-आवंटन नीति- 2015 के क्रम में जेडीए अधिकरिता से अधिक क्षेत्रफल के कारण निःशुल्क आवंटन की अनुशंषा के साथ राज्य सरकार को भिजवाये जाने का निर्णय लिया गया साथ ही यह भी निर्णय लिया गया कि राज्य सरकार की स्वीकृति एवं आवंटन की स्वीकृति जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा पूर्व में किये गये आवंटन को दृष्टिगत रखते हुए । शासन उप सचिव प्रथम नगरीय विकास विभाग राजस्थान सरकार के पत्र क्रमांक प. 1 ( 116 ) नविवि / जयपुर / 2024 जयपुर राजकाज रेफरेन्स नम्बर 9274934 दिनांक 26.07.2024 को ग्राम सांगानेर के खसरा नम्बर 47, 48, 49, 50, 51, 52, 53, 54, 55, 56, 57, 68, 69, 70, 71, 72, 73, 74, 75, 76, 78, एवं 131 कुल रकबा 3.04 हैक्टेयर में से 21948 वर्गमीटर का निःशुल्क आवंटन, भूमि आवंटन नीति- 2015 के प्रावधानों के उपबन्धों की पूर्णतः पालना प्राधिकरण स्तर पर किये जाने की शर्त पर किये जाने की स्वीकृति प्रदान की गयी।”

राजस्थान सरकार ने स्पष्ट रूप से अदालत की अवमानना की है, और PUCL तथा अन्य संगठन या तो न्याय मित्र की सहायता करेंगे या फिर हस्तक्षेपकर्ता के रूप में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में इसे चुनौती देंगे।

PUCL की मांग है कि ज़मीन को तुरंत ओपन कैम्प को वापस किया जाए और अस्पताल को कहीं और बनाया जाए।

प्रेस कांफ्रेंस में कविता श्रीवास्तव (राष्ट्रीय अध्यक्ष, PUCL), भंवर मेघवंशी (अध्यक्ष, PUCL, राजस्थान), PUCL जेल कार्य टीम के सदस्य प्रगण्या जोशी, PUCL, राष्ट्रीय परिषद सदस्य सुमन देवथिया, PUCL जयपुर जिला महासचिव अधिवक्ता ममता नायर, PUCL जयपुर जिला कोषाध्यक्ष अधिवक्ता बॉबी दत्ता आदि मौजूद रहे।

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