-इनायत अली
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहै जाने वाले पत्रकारिता को इस तरह पल-पल तड़पा तड़पा कर मारा जाएगा शायद ही किसी ने सोचा हो । आज हम हिंदुस्तान में जो असहज हलचल देख रहे हैं ये इस भांड मीडिया का ही नतीजा है, जनता को क्या दिखाया जाएगा जनता की क्या सोच व प्रतिक्रिया होगी उसके क्या घातक परिणाम होंगे और इनसे किसे फायदा ओर नुकसान होगा ये सब निर्णय आज बड़े बड़े नेशनल मीडिया चैंनलों के ऑफिसो में ही तय होते है । 25 से 30 हज़ार किसान महाराष्ट्र से पैदल मार्च कर के अपने पैरों व उम्मीदों अधिकारों को लहूलुहान करते हुए मुम्बई पहुँचते है लेकिन किसी भी राष्ट्रीय समाचार चैनल पर इस खबर को नही दिखाया जाता है। अन्नदाता के दर्द को नज़रअंदाज़ कर और अपनी साख को ताक पे रखकर मीडिया सास बहू ओर साजिश,हसीन जहाँ और मोहम्मद शमी,क्रिकेट,ओर सनसनी जैसे मसालेदार प्रोगाम दिखाने में व्यस्त है। पत्रकारिता का ये भयानक रूप इस देश के विकास और शांति को किस गहरी अंधेरी खाई के द्वार पर ले जाकर खड़ा करेगा ये काल के पर्दे में है । कुछ ईमानदार और सच्चाई दिखाने वाले चैनल दौलत ओर धन के इन भस्मासुरों के आगे अपने अस्तित्व के साथ टिक पाएंगे ये तो वक्त बताएगा। पत्रकारिता में गिरावट का जो रिकॉर्ड इन राष्ट्रीय समाचार चैंनलों ने बनाया है उसका जीता जागता उदाहरण बीती रात एक राजनीतिक पार्टी के प्रवक्ता को न्यूज़ एंकर की कुर्सी संभलाकर साबित कर दिया है। और इन लहूलुहान किसानों के 200 किमी के पैदल सफर के जख्मो पर समुदाय विशेष के द्वारा लगाए मरहम को फिर किसी राजनैतिक पार्टी के नुकसान के तौर पर देखा जाएगा। इसीलिए मीडिया फिर खामोश है । राष्ट्रीय समाचार चैंनलों को भावभीनी श्रद्धांजली।