-तेजस पूनिया
संजू फ़िल्म समीक्षा
निर्माता : विनोद चोपड़ा फिल्म्स, राजकुमार हिरानी फिल्म्स, फॉक्स स्टार स्टूडियोज़
निर्देशक : राजकुमार हिरानी
संगीत : रोहन रोहन, विक्रम मंट्रोज़
कलाकार : रणबीर कपूर, अनुष्का शर्मा, सोनम कपूर, परेश रावल, मनीषा कोइराला, दीया मिर्जा, विक्की कौशल, जिम सरभ, बोमन ईरानी
बॉलीवुड में फिलहाल बॉयोपिक का जबरदस्त ट्रेंड चल रहा है। आने वाला समय थोड़ा ऐतिहासिक होने वाला है जिसमें हमारे इतिहास के गौरवशाली पहलुओं का जिक्र किया जाएगा। लेकिन फ़िलहाल बात संजय दत्त की बॉयोपिक की करें तो संजू ने मेरे अनुमान के तहत 30 करोड़ से ज्यादा का कारोबार किया है। पहले ही दिन 34.65 करोड़ की कमाई करके यह सलमान खान की हालिया रिलीज़ रेस 3 से काफ़ी आगे निकल गई है और जिस तरह का सकारात्मक रिव्यू जनता का इसे मिला है उस हिसाब ये यह फ़िल्म अवश्य ही ब्लॉकबस्टर होगी और रणवीर कपूर के फिल्मी करियर में ऊँचा मुकाम स्थापित करेगी। परन्तु ठहरिए ज़नाब फ़िल्म में तो ऐसा कुछ है ही नहीं जिसे देखने जाया जाए। दरअसल फ़िल्म में एक गाना आता हैै। “कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।” इसका जिक्र भी संजय दत्त के पिता सुनील दत्त करते हैं। फ़िल्म के लगभग अंत में इस गाने की मात्र दो लाइन ही बोली जाती हैं। जब संजय दत्त जेल से बाहर आ रहे होते हैं तो मीडिया उसकी फोटो लेने को उतावला रहता है। उसी में से एक पत्रकार उसे टेरेरिस्ट कहकर फोटो खींच लेने के लिए कहता है। उसके बाद इस गाने के बोल दोहराना सारी फ़िल्म का माजरा समझाता है। फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह है कहानी क्या पूरे जीवन के कुछ अंश हैं –
फिल्म की कहानी एक खबर के साथ शुरू होती है। जब संजय दत्त को 5 साल की जेल की सजा सुनाई जाती है। तब वह अपनी जिंदगी के ऊपर किताब लिखने के लिए वे मशहूर राइटर विनी (अनुष्का शर्मा) से मिलता है और अपनी कहानी लिखने के लिए उसे कहता है, पहली बार तो वह उसे मना कर देती है लेकिन फिर अगली बार वह उसकी कहानी लिखने के लिए हामी भर देती है और फिर संजय दत्त यानी रणवीर कपूर उसे कहानी बताना शुरू करता है।
कहानी में सुनील दत्त (परेश रावल) और नरगिस दत्त (मनीषा कोइराला) भी है। कहानी लिखवानी है इसलिए वह विनी को सबकुछ बताता है उसका बचपन में बोर्डिंग स्कूल भेजा जाना, ड्रग्स की लत लगना, माता-पिता से कई बातें छुपाना, नरगिस की तबीयत खराब हो जाना, दोस्त कमलेश (विक्की कौशल) के साथ मुलाकात, फिल्म रॉकी से डेब्यू करना और उसके बाद कई फिल्मों में काम ना मिलना, रिहैब सेंटर में जाना, मुंबई बम धमाकों के साथ नाम जोड़ा जाना, कई बार जेल जाना और अंततः एक स्वतंत्र नागरिक के रूप में जेल से बाहर आना। लेकिन इन सबके बीच कहानी कहते समय या फ़िल्म में कहीं भी माधुरी दीक्षित के साथ के उनके अफेयर का जिक्र नहीं आता। ये बात सब जानते हैं 90 के दशक में जब माधुरी और संजय दत्त ने कई फिल्मों में साथ काम किया तो उनके अफेयर की खबरें भी आने लगी थी। लेकिन इस सबका कोई जिक्र नहीं है। जिस तरह से फ़िल्म के प्रमोशन में जान फूंक दी गई थी उस तरह से फ़िल्म में थोड़ी ईमानदारी बरती जाती तो फ़िल्म वाक़ई यादगार रहती कहानी भी प्रेरणादायक बन पाती।
लेकिन एक ऐसा आदमी जो ड्रग्स लेता है, 350 लड़कियों से सम्बंध बना चुका है और माँ मरने की हालत में है और उसे ड्रग्स की तलब होती रहती है। उससे कोई भला क्या प्रेरणा ले पाएगा। जिसके जेब में पैसा है वह अपनी बायोग्राफी लिखवा भी सकता है और उस पर फ़िल्म बना भी सकता है और यही काम किया है संजय दत्त ने। एक बार फिर उन्होंने जनता को इमोशनल फूल बनाकर अपने पक्ष में करने की कोशिश की है।
निर्देशक राजकुमार हिरानी की फिल्म ‘संजू’ का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था। वैसे तो कहा जा रहा था कि ये फिल्म अभिनेता संजय दत्त की ‘बायोपिक’ है, लेकिन इस फिल्म में निर्देशक ने काल्पनिकता का भी इस्तेमाल किया है। फिल्म की कहानी वो नहीं है जो आप सुनना चाहते हैं, जैसे की संजय दत्त का बचपन, उनकी पहली शादी और तमाम फिल्मी हीरोइनों से रोमांस वगैरह, बल्कि कहानी वो है जो निर्देशक आपको सुनाना चाहता है। फ़िल्म में रफ्तार की भी कमी आखिर में खलती है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मीडिया भी कुछ हद तक नकारात्मक रिपोर्टिंग का दोषी है।
फ़िल्म में एक डायलॉग है। हाथों की लकीरें भी गजब होती हैं – रहती तो मुट्ठी में हैं, पर काबू में नहीं रहती। यह संवाद भी फ़िल्म में उनके सकारात्मक पक्ष को दिखाने के लिए ही रखा गया लगता है। राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी की कहानी दिलचस्प है लेकिन कोई भी यह आसानी से समझ सकता है कि उन्होंने इसे बिल्कुल सुरक्षित और चतुराई से जनता के समक्ष पेश करने की कोशिश की है । फ़िल्म में हर चीज़ सकारात्मक है। फिल्में सकारात्मक सोच से होनी भी चाहिए लेकिन एक नकारात्मक छवि वाले आदमी को सकारात्मक बनाकर पेश करना कहीं भी नहीं जमता। जो भी सिनेमा का थोड़ा भी ज्ञान रखता है वह इस फ़िल्म से जरूर मायूस हुआ होगा।
राजकुमार हिरानी का निर्देशन उम्मीद के मुताबिक काफ़ी ज्यादा प्रभावित करता है । इस तरह की फ़िल्म को बनाना कोई आसान काम नहीं है लेकिन उन्होंने इसे काफ़ी अच्छी तरह व सरल तरीके से निष्पादित और प्रस्तुत किया है। उनका जादू कुछ एक सीन में दिखाई देता है और दर्शकों को मुस्कुराता भी है तो आंखें नम करने का भी मौका देता है। हालांकि, फ़िल्म का क्लाइमेक्स सीन और भी बेहतर और ज्यादा दमदार हो सकता था।
फ़िल्म के गाने की बात करें तो वे इतने अच्छे नहीं है लेकिन फ़िल्म की कहानी को आगे बढाने के लिए अच्छा काम करते हैं। ‘कर हर मैदान फ़तह’ सभी गानों में बेहतरीन हैं। ‘मैं बढ़िया तू भी बढ़िया’ गाना भी बहुत ही अच्छी तरह से दर्शाया गया है। ‘रुबी रुबी’ गाने को बैकग्राउंड में प्ले किया गया है। संजय वंद्रेकर और अतुल रानिंगा का बैकग्राउंड स्कोर बहुत उत्साहजनक है। एस रविविर्मन का छायांकन शानदार है और कुछ स्थानीय जगहों को खूबसूरती से कैमरे में कैद किया गया है। शशांक तेरे का प्रोडक्शन डिजाइन भी ठीक-ठाक है। लेकिन वेशभूषा और मेकअप के मामले में बहुत जगह निराशा हाथ लगती है। फ़िल्म देखते हुए कई बार रणवीर कपूर सच में रणवीर कपूर लगने लगते हैं।
कुल मिलाकर, संजू भावनाओं, हास्य और ड्रामा के पर्याप्त मिश्रण के साथ एक मनोरंजक फ़िल्म जरूर है। बॉक्सऑफ़िस पर ‘ठेठ राजकुमार हिरानी परिवारिक मनोरंजक फ़िल्म’ होने के बावजूद, संजू काफ़ी सफ़लता अर्जित करेगी और जबरदस्त हिट साबित होगी !
समीक्षक परिचय
लेखक – तेजस पूनिया राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व छात्र हैं और कहानी, कविताएँ, फ़िल्म समीक्षाएँ एवं विभिन्न राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं के लिए लेख लिख चुके हैं।
(किसी भी तरह के कॉपीराइट क्लैम की जिम्मेदारी रचनाकार की है)