मैडम!मैं तो वाल्मीकि हूँ,मेरे हाथ से कोई पानी नहीं पियेगा

-नारायण बारेठ

अस्पृश्य !
आइए महसूस करिए जिंदगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको -अदम गोंडवी
भारत में दो तरह के अछूत है
एक वो जिन्हे सदियों से सामाजिक ढांचे ने हेय बना रखा है ,उन्हें कोई छूना नहीं चाहता
दूसरे वो जिन्हे सामाजिक आर्थिक व्यस्था ने इतना ताकतवर बना रखा है कि कोई उन्हें छूने की हिमाकत नहीं कर सकता।
यह घटना राजस्थान के धौलपुर की है। मनरेगा के कार्यस्थल का मुआयना करने पहुंची जिला कलेक्टर नेहा गिरी अस्पर्शयता का सामाजिक यथार्थ देखकर स्तब्ध रह गई।

(मामला धोलपुर में मनरेगा  है)

उन्होंने मशक्क्त करती एक महिला श्रमिक को देखा और एक बलिष्ठ व्यक्ति को पानी पिलाने का आरामदायक काम पर तैनात देखा। जैसे ही जिला कलेक्टर ने पानी पिलाने का काम उस महिला श्रमिक को सौंपने का आदेश दिया ,एक ग्रामीण ने कहा ‘मैडम ये तो वाल्मीकि समाज से है ,इनके हाथ का कौन पानी पियेगा।कलेक्टर ने खुद उस वाल्मीकि महिला के हाथ से पानी पिया और भेदभाव की उस दीवार को जमीदोज करने की पहल की जो सदियों से बलन्द खड़ी है।वो दीवार तत्काल टूटे न सही/मगर इस पहल से उसका ढांचा कमजोर हुआ होगा।
न यह घटना नयी ,न यह मंजर कोई नया है।ऐसे मंजर सियासत और धर्माचार्यो की नजर से भी गुजरते होंगे। लेकिन वे खामोश रहते है। उन्हें ऐसी घटनाये विचलित और व्यथित नहीं करती। जिस दिन वे ऐसे द्र्श्यो पर उद्वेलित होने लगेंगे भारत सुपर पॉवर बन जाएगा।
हिन्दू धर्म में पंचतत्व का बड़ा महत्व है। जल उसमे से एक है।पर वही जल समाज के कुछ लोग छूले तो कुछ लोग कहते है अपवित्र हो जाता है।कितना बड़ा विरोधाभास है।
साधू संत कहते है –
‘जात पात पूछे न कोई हरि को भजे सो हरि का होई’
लेकिन समाज में व्याप्त छुआछूत की ये घटनाये इससे उल्ट कहानी बयां करती है। बहरहाल जिला अधिकारी ने बहुत सराहनीय और साहसिक पहल की है।
सादर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *