जनगणना 2021: “सभी” से पूछो, आखिर क्या है उसकी जाति?
नरेन्द्र मोदी सरकार ने एक बड़ा डिसिजन लिया है, जनगणना का। उनका कहना है कि वे 2021 में OBC की जनगणना करेंगे। इस फैसले के खिलाफ शायद ही कोई आए खुद बड़ी जातियां भी नहीं।
इससे पहले मनमोहन सिंह की सरकार ने भी OBC जातियों के उत्थान या उनके लिए जो किया जाना चाहिए, उसके लिए उनकी जनगणना के लिए एक अलग SECC का गठन किया था। लेकिन अभी तक डेटा को सार्वजनिक नहीं किया गया है।
इससे सीधा सीधा सिस्टम ये है कि आने वाले सालों में हम जान पाएंगे कि भारत में कितने प्रतिशत हिन्दू OBC से हैं। हालांकि कई सर्वे में सामने आ चुका है कि 40 से 50 प्रतिशत जनता OBC के अंतर्गत आती है। आने वाले फैसले में ये और स्पष्ट हो जाएगा। विरोध भी बढ़ेगा, फिर ओबीसी के लोग चाहेंगे कि हमारी इतनी आबादी है तो हमें और भी आरक्षण दिया जाना चाहिए। जब SC, ST को आरक्षण उनकी जनसंख्या के आधार पर दिया जाता है तो हमें क्यों नहीं?
लोगों के पास इसका जवाब होगा योग्यता का क्या? योग्यता को क्यों नहीं देखा जाता। और आरक्षण जाति को देखकर नहीं सिर्फ गरीबों को ही दिया जाना चाहिए। और यही कारण है कि जनगणना में ऊंची जातियों के अलावा सभी को शामिल किया जाएगा।
जनगणना में सभी को शामिल करने की जरूरत है। जिस SC ST के घरों में उनके पास टीवी है या टू व्हीलर है, फ्रीज है आदि के बारे में पूछा जाता है उसी तरह जनगणना में ऊंची जातियों को शामिल करना चाहिए। सभी का इकॉनोमिकल स्टेटस हमें पता होना चाहिए कि वे कितने गरीब हैं। ये हमें ऊपरी जाति को वर्चस्व बना हुआ है उसके बारे में जानने में मदद करेगा।
ऐसा सिर्फ भारत में ही होता है जहां एक माइनोरिटी ऊपरी जाति का बाकी जातियों पर वर्चस्व बना हुआ है। ऊपरी जाति के लोग कम हैं फिर भी मेजोरिटी पर डोमिनेन्ट हैं। ऊपरी जाति के लोग खुद को कास्टलेस मानते हैं। वे समझते हैं कि जाति का खेल उनका नहीं है। लेकिन चुप चाप अपने जाति के उत्थान के लिए काम करते रहते हैं। आज भी भारत में हिन्दू हो या चाहे कोई और धर्म हो ज्यादातर वे अपनी ही जाति में शादी करते हैं।
ऊपरी जातियां जो जनगणना को जातिगत होना का विरोध करती हैं उन्हें धर्म आधारित जनगणना से कोई दिक्कत नहीं है। जनगणना में धर्म की पहचान सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा देती है लेकिन किसी को भी इसके साथ कोई समस्या नहीं दिखती। ऊपरी जातियों में जातिगत गणना के साथ एक समस्या है क्योंकि इससे यह पता चल जाएगा कि वे अल्पसंख्यक हैं। उन्हें धर्म की गिनती पसंद है क्योंकि इससे उन्हें पता चलता है कि वे मेजोरिटी से वास्ता रखते हैं।
जनगणना में हर गैर हिंदू को अपनी जाति से भी पूछने दें। आइए देखें कि कितने गैर हिंदुओं ने अपने धार्मिक ग्रंथों के रूप में निर्बाध होने का दावा किया है।
जनगणना आपको यह कहने की अनुमति देती है कि आप बता सकें कि आप नास्तिक हैं। फिर भी, 2011 की जनगणना में, केवल 33,000 लोगों ने खुद को नास्तिक के रूप में सूचीबद्ध किया था।
जनगणना को सभी को अपनी जाति से पूछने दें, और फिर हमें बताएं कि कितने लोग स्वयं को कास्टलेस सूचीबद्ध करते हैं। इससे मेरिट धारी ऊपरी जातियों के पाखंड का पर्दाफाश होगा जो कि जाति नहीं होने का दावा करते हैं।
By – Mohd Anees
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है और आवाज़ वेबपोर्टल से भी जुड़े हुए हैं)