राजनीति के केंद्र में उभरता किसान का चेहरा
भारतीय राजनीति में अचानक से एक भूचाल आ रहा है चारों ओर किसानों को लेकर घोषणा हो रही है दिल्ली से लेकर ग्राम चौपाल, यहां तक कि शहरों के कॉफी हाउस तक सभी पार्टियों के राजनीतिज्ञों, बुद्धिजीवियों,आम नागरिकों की जबान पर किसान के मुद्दे को लेकर व्यापक बहस हो रही है।
लेकिन किसी के पास इस बात पर चिंतन करने के लिए शायद ही समय हो कि, कॉरपोरेट जनित भारतीय राजनीति में अचानक से किसान और किसान पुत्र जीवित कैसे हो गया ?
आज से लगभग 4 वर्ष पूर्व जब चारों ओर अहंकार और तानाशाही नजरों से दंभ भरते चेहरे व गूंजती जबान, तो दूसरी ओर नीरा गर्त व निराशा में डूबे मुरझाए हुए विपक्ष के बीच इस देश में बहुत से जुझारू, बुद्धिजीवी किसान पुत्रों के दिलों दिमाग में एक चिंगारी फूटी थी। और तब ऐसे जुझारू किसान पुत्रों ने इस दमनात्मक किसान विरोधी, तानाशाही व्यवस्था के खिलाफ रणभेरी बजाई थी। किसान पुत्रों के दिलो में स्वाभिमान जगाने का प्रयास किया गया था। जिसका आज यह परिणाम परिलक्षित हो रहा हैं। और लगभग यह तय हो गया है कि 2019 का चुनाव अब
“गाय और मंदिर”
के नाम पर नहीं लड़ा जाएगा
अपितु
“किसान, युवा और जवान”
के नाम पर लड़ा जाएगा।
यद्यपि मैं व्यक्तिगत रूप से कर्ज माफी को किसानों की समस्याओं का समाधान बिल्कुल नहीं मानता लेकिन एक ICU में पड़े हुए किसान के लिए यह केवल जीवन रक्षक दवा है और इसकी सख्त आवश्यकता हैं।
कुछ लोग बार-बार सवाल उठा रहे हैं कि उनके करो का पैसा किसानों को लूटाने या खैरात में बांटने का अधिकार सरकारों को किसने दिया ?
मैं आर्थिक आंकड़ों के आधार पर बार-बार इस बात को उठाता रहा हूं कि इस देश में कुल जनसंख्या का 58% किसान अपने उपभोग द्वारा सरकारों को जो कर अदा करता है वह हिस्सा अगर किसानों को दे दिया जाए तो यह लगभग बजट का 45% हिस्सा होगा। जबकि बजट में किसान के लिए मात्र 2% हिस्सा ही आवंटित होता है। अभी भी किसान अपने करो का 43% हिस्सा इन सुविधा भोगी वर्गों को लूटाता हैं।
वस्तुतः किसानों की लड़ाई अभी बहुत आगे जानी बाकी है किसानों की समस्याओं का स्थाई समाधान यही है कि उनकी फसल का वाजिब दाम( स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के C2 फार्मूले के अनुसार लागत का 50% अधिक) दे दीजिए और इसका लिखित गारंटी कानून बना दीजिए |
मैं पूरे विश्वास के साथ कहता हूं कि भविष्य में कभी किसान की कर्ज माफी की आवश्यकता नहीं होगी अपितु किसान शहरों में बैठे हुए आराम पसंद लोगों की व्यवसायिक गतिविधियों के लिए कर्ज देने की स्थिति में आ जाएगा।
अंत में कहूंगा
“समर अभी शेष है”
||लड़ेंगे और जीतेंगे||
सी॰बी॰ यादव
सहायक प्रोफेसर
राजस्थान विश्वविद्यालय