किताबें
ले जाती है वो हमे दूर कहीँ आसमाँ के ऊपर,
तो कभी समुद्र की गहराइयो मे,
अकेले होते हुए भी कभी हम खुद को भीड़ के बीच पाते है,
तो कभी भीड़ मे होते हुए भी खुद को अकेले पहाड़ो के ऊपर।
अपने लफ़्ज़ों से वो कभी चेहरे पर मुस्कान लाती है तो कभी आँसू की बूँदे जो टपक पड़ती है,
कल्पनाओ मे हमारे भीतर वो एक घर बनाती है,
अज्ञात चीज़ों को सामने लाकर आँखों से परदे हटा देती है।
खुद खामोश होकर भी वो हमारे अंदर एक आवाज़ भरती है,
पन्नों पर इसके बहुत कुछ उगा है,
चुप होकर भी किताबे बहुत कुछ सिखाती है।
-खान शाहीन