” वो बूढ़ा बाप “
उसका सिर पूरा भीग गया था और पानी की धारें गरदन से होकर कमीज़ के अन्दर जा रही थीं।हाथ-पैर सुन्न हो रहे थे , फिर भी आँखों में एक जलन-सी महसूस हो रही थी।
ठिठुरन से वो अपने शरीर मे एक झनझनाहट महसूस कर रहा था। सड़क पर चलते हुए उसे घुप अँधेरे मे कुछ् रौशनी दिखी शायद वो बुढ़िया उसका इंतज़ार कर रही थी सर्द रात के 11 बजे भी… उसने झोपडी खोली और दरवाज़ा बंद कर लिया।
हर हफ्ते की तरह आज भी बुढ़िया का वही सवाल था
-” क्या मयंक मिला?”
और उसने नही मे सर हिलाया…
-बुढ़िया के मुँह से टूटे हुए वाक्य बिखर पड़े -” मैने कहा था ना वो छोड़ गया हमे,”
,”उसके बंगले पर ताला ही लटका रहेगा,
— विदेश गए आज पुरे 8 बरस हो चुके”
वो रुक-रुक कर एक के बाद एक वाक्य कहती गयी।
उसकी आँखों से आँसू झलक रहे थे,
दोनों ख़ामोश,
अपने बेटे की यादो मे जैसे गुम चिमनी को घूरते अन्तर्मुख आँखे मीचने की कोशिश कर रहे थे…
–खान शाहीन
(सीकर,राजस्थान)
हृदयस्पर्शी एवं भावुकता से परिपूर्ण।
Very heart touching keep up dear ?