राजस्थान के लोकनृत्य -राजस्थान की संस्कृति के परिचायक ,अपने आप मे राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को समेटे हुए ,यह किसी व्यक्ति नही अपितु संम्पूर्ण समाज के परिचायक है
इन्हे देखकर लगता है ,मानो यह धोरो की धरती अपने आगोश मे विश्व की क्ष्रेष्ठतम कला और संस्कृति समेटे हुए
ऐसे ही एक क्ष्रेष्ठ कला का नमूना है राजस्थान का अग्नि नृत्य –
इसका उदगम राजस्थान के कतियासर गांव मे हुआ
1482 मे कतियासर गांव मे जसनाथ जी का जन्म हुआ, इन्होने गुरू गोरखनाथ से शिक्षा प्राप्त की और जसनाथी सम्प्रदाय के प्रवर्तक बने, कहते है कि इन्होने 24 वर्ष की उम्र मे जीवित समाधि ली
जसनाथ जी ने ही अग्नि नृत्य की शुरूआत की तथा इन्ही की पंरम्परा के शिष्य रूस्तम जी ने इसे आगे बढाया और अग्नि नृत्य को मूर्त रूप दिया
इस नृत्य मे पहले लकडीयों को जलाकर धंधकते हुए अगांरो की सेज तैयार की जाती है ,इसके चारो तरफ पानी छिडका जाता है और जसनाथी सिद्ध जो अधिकतर जाट समुदाय से हाेते है पहले अंगारो के चारो तरफ परिक्रमा करते है फिर अपने गुरू का आशीर्वाद लेकर फतह -फतह का अनुवादन करते हुए इन अंगारो मे प्रवेश करते है ,इन सिद्धो द्वारा अंगारो पर चलना,इन्हे मे उठाकर भीड मे फेंकना ,इन्हे अपने मुहं मे लेना इसके अलावा तरह-तरह की कलाबाजीयां करते देखकर लगता है मानो आग से होली खेल रहे हो और यह दृश्य मन को प्रफुल्लता और आनंद से भर देता है ,ऐसा कहा जाता है की इन सिद्धो पर जसनाथ जी और रूस्तम जी की कृपा का प्रभाव है कि अग्नि भी इनकी रक्षा करती है । यह नृत्य रात्रि मे केवल पुरूष जसनाथी सिद्धो द्वारा ही किया जाता है । पिछले लगभग 500 वर्षो से अनवरत रूप से यह नृत्य आज भी अपने उसी जीवंत स्वरूप मे मौजूद है जो कही न कही राजस्थान के लोकनृत्यो मे अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए है ।
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