जहां कहीं भी क्रांति का जिक्र होगा वहां वहां चे ग्वेरा का जिक्र आपको मिलेगा। जिसकी टीशर्ट पहने लोग सड़कों पर आज पूरी दुनिया में घूमते दिखाई देते हैं, उसके बारे में क्या आप जानते भी हैं? एक स्मार्ट और आकर्षक चेहरा तो हमने देखा होगा लेकिन उसके पीछे के क्रांतिकारी दिमाग पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
कौन था चे ग्वेरा?
14 जून 1929 को अर्जेंटिना के रोज़ारियों में अर्नेस्तो ग्वेरा का जन्म हुआ। 1948 की बात है जब चे ने ब्यूनस आयर्स युनिवर्सिटी में मेडिकल की पढ़ाई शुरू की थी लेकिन उससे पहले अर्नेस्तो ग्वेरा ने वामपंथ के बारे में बचपन से पढ़ा और साहित्य से उनका जुड़ाव रहा।
इन्हीं विचारों की वजह से चे को अभी भी पहचाना जाता है।
दो साल बाद ग्वेरा ने लैटिन अमेरिका में दो मोटरसाइकिल ट्रैवल किए। बाइक पर ही वे पूरे लेटिन अमेरिका में घूमे। इसका असर ये हुआ कि उनके जहन में क्रांतिकारी विचार और भी प्रबल हो गए और उनके जहन में नए रानीतिक विचारों का जन्म हुआ। उस वक्त चे 23 साल के थे।
मोटरसाइकिल डायरी
मोटरसाइकिल पर वे एक बार 4500 किलोमीटर और दूसरे ट्रेवल में 8000 किलोमीटर घूमे और एक बात उन्हें पता चल चुकी थी कि समाज में फैली जिस गरीबी और उत्पीड़न को उन्होंने देखा उसका इलाज सिर्फ सशस्त्र क्रांति और साम्यवाद से ही किया जा सकता था। उन्होंने देखा कि कैसे दक्षिण अमेरिका में पूंजीवाद ने लोगों की कमर तोड़ रखी थी।
कैसे मरीजों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था। समाजवादियों को खत्म किया जा रहा था। खादानों में मजदूरों का शोषण किया जा रहा था। ग्वेरा ने अपने इस पूरे अनुभव को अपनी किताब मोटरसाइकिल डायरीज में लिखा भी था।
ग्वाटेमाला आंदोलन और चे की भूमिका
1953 में अपनी डिग्री पूरी करने के लिए चे ब्यूनस आयर्स पहुंचे। डॉ. बनकर अर्नेस्टो ग्वेरा ने अर्जेंटीना छोड़ दिया। लेकिन वे कहां डॉक्टर बने रहते, क्रांतिकारी विचारों ने उनके अंदर बदलाव की चाहत तेज कर दी थी।
अमेरिका उस वक्त पूंजीवाद के आधार पर चल रहा था और चे ने क्रांति इसी के खिलाफ शुरू करनी चाही। वे अपने विचारों को समाज के किसी भाग में खोज रहे थे। जो वो चाहते थे कुछ ऐसा ही संघर्ष उस वक्त पड़ोसी देश ग्वाटेमाला में चल रहा था। उन्होंने वहां जाने का फैसला किया और इसे करीब से देखने का फैसला किया।
थोड़ा सा ग्वाटेमाला के बारे में जान लेते हैं। अमेरिका के विपरीत वहां पर समाजवादी सरकार थी और उस वक्त के राष्ट्रपति जैकब अर्बेंज गुजमान भूमि सुधार कार्यक्रम चला रहे थे और बड़ी कंपनियों की कमर तोड़ रहे थे। इसी वक्त अमेरिका की बड़ी कंपनी यूनाइटेड फ्रंट भी गुजमान के धक्के चढ़ गई जिसके पास ग्वाटेमाला की लाखों एकड़ जमीन थी। अमेरिका को इसकी वजह से काफी नुकसान झेलना पड़ रहा था। अमेरिका ने सीआईए के साथ मिलकर ग्वाटेमाला का तख्तापलट करवा दिया। ग्वेरा उस वक्त गुजमान का समर्थन कर रहे थे लेकिन तख्तापलट के बाद पकड़े जाने के डर से वे मैक्सिको जा पहुंचे।
क्यूबा की क्रांति
गुजमान सरकार के गिरने के कारण चे के जहन में अमेरिकी शासन के प्रति खिलाफत की भावना को और भी तेज कर दिया लेकिन फिलहाल चे कुछ कर नहीं पा रहे थे उन्होंने मैक्सिको के एक अस्पताल में नौकरी शुरू कर दी। उसी दौरान चे की मुलाकात हुई फिडेल कास्ट्रो से। यहां से शुरू हुआ एक नया युग। फिडेल कास्ट्रो दरअसल क्यूबा से निकाल दिए गए थे। उस वक्त क्यूबा में अमेरिकी समर्थित सरकार थी और इसी तानाशाही सरकार को हटाने के लिए चे ने आगे का रास्ता फिडेल कास्ट्रो के साथ चुना। क्यूबा में उस वक्त बतिस्ता की सरकार थी।
फिडेल इसी सरकार के तख्तापलट के लिए संघर्ष कर रहे थे और ग्वेरा भी इसी काम में लग गए। इधर अमेरिकी सीआईए ने फिडेल कास्त्रो का विरोध और उसे हराने के लिए लोगों में हथियार बांटने शुरू कर दिए। ऐसा इसलिए था क्योंकि अमेरिका ने क्यूबा में बहुता सा पैसा लगा रखा था, यहां उसका पैसा तेल जैसे बड़े धंधों में लगा हुआ था।
अमेरिका के लिए उस वक्त क्यूबा वेश्यावृत्ति, जुए और तरह तरह के ड्रग्स का अड्डा माना जाता था। चे ने इसी सरकार को हटाने के लिए अपना जोर लगा दिया। स्थानीय लोग भी परेशान थे और धीरे धीरे सत्ता बतिस्ता के हाथों से फिसल रही थी। फिडेल कास्त्रो के लोग वहां जीत रहे थे और चे की भूमिका भी इसमें बड़ी अहम रही। लोगों में बदलाव की भावना को भरने का काम चे ने किया।
बतिस्ता से सत्ता छीनने के उद्देश्य से कास्त्रो के “26 जुलाई आंदोलन” में शामिल होने के बाद ग्वेरा एक मुख्य क्रांतिकारी बन गए। सिर्फ 500 विद्रोहियों ने बतिस्ता सरकार का तख्तापलट कर दिया। अब बारी आई व्यवस्था की, फिडेल हमेशा से ही चे के विचारों से काफी प्रभावित थे नतीजतन फिडेल ने क्यूबा में मार्क्सवादी व्यवस्था लागू कर दी। चे ग्वेरा ने क्यूबा की इस क्रांति पर भी किताब लिखी।
आगे का सफर
ग्वेरा क्रांति में एक मुख्य व्यक्ति बन गए और इसकी सफलता के बाद चे को नेशनल बैंक ऑफ क्यूबा के अध्यक्ष और उद्योग मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया।
इस पद पर रहते हुए चे भूमि पुनर्वितरण और क्यूबा उद्योग के राष्ट्रीयकरण के लिए घरेलू योजनाओं को लागू करने में अपना जोर लगाते रहे उन्होंने दुनिया भर में देश के लिए एक राजदूत के रूप में ट्रेवल किया। चे को एक सच्चा मार्क्सवादी माना जा सकता है जो लोगों के लिए जिया और क्रांति भी सत्ता के लिए नहीं बल्कि लोगों के लिए की।
1959 की बात है जब वे मंत्री पद के रूप में भारत आए और पंडित नेहरू से मुलाकात की। मुलाकात में उन्होंने नेहरू से समाजवाद फैलाने और क्यूबा से चीनी खरीदने का अनुरोध किया। चे ने पूरे लैटिन अमेरिका को बदलने का सपना देखा जिसका मतलब था क्रांति की लहर और देशों में भी बहाना। चे और फिडेल ने इसके लिए कई राजनीतिक विद्रोहियों को मौत के घाट उतारा।
क्रांतिकारी चे का अंत
चे ने रूस की तरफ अपना हाथ बढ़ाया। क्यूबा पर मिसाइल का संकट मंडरा रहा था। लेकिन बाद में रूस ने अमेरिका से ही हाथ मिला लिया। फिडेल उस दौरान रूस की तरफ ध्यान दे रहे थे वहीं चे चीन की ओर नजर किए हुए थे इसी दौरान उनके बीच मतभेद देखने को मिले। चे ने फिर क्रांति के छह साल बाद मार्क्सवादी विचार को और लोगों तक फैलाने के लिए क्यूबा छोड़ दिया। वे 1965 में कांगो पहुंचे और वहां की सशस्त्र विद्रोही सेनाओं को कांगो के केंद्र सरकार के खिलाफ तैयार करने का प्रयास किया। सात महीनों के भीतर उनका ये प्रयास फैल हो गया। फिडेल ने चे से वापस आने के बारे में भी कहा लेकिन चे ने ये भी ठुकरा दिया।
1966 के अंत तक ग्वेरा ने अपना ध्यान बोलिविया और वहां की सरकार के खिलाफ एक क्रांतिकारी आंदोलन की ओर लगाया। हालांकि एक साल से भी कम समय के बाद ग्वेरा को 8 अक्टूबर को अमेरिकी समर्थित बोलिवियन बलों द्वारा धर लिया गया और उन्हें अगले दिन 39 साल की उम्र में मार दिया गया।
आप अक्सर चे को लोगों की टी शर्ट पर देखते हैं। जिसमें एक टोपी लगाया हुआ शख्स मुंह में सिगार रखे होता है। लेकिन जिस तरह चे ने जिंदगी को जिया और जो कुछ किया उनके जाने के बाद भी लोगों के मन में सत्ता संघर्ष का विचार हमेशा प्रबल रहा।
गांधी और चे ग्वेरा
गांधी और चे के विचारों को अक्सर तोल कर देखा जाता है। गांधी ने बदलाव के लिए आध्यात्म का सहारा लिया था वहीं चे ने इसके लिए हथियार उठाए।
चे ग्वेरा आकर्षक और काफी सुंदर नजर आते थे वहीं गांधी एक छोटा सा चश्मा लगाने वाले शख्स थे।
चे ग्वेरा आजाद प्रेस जैसी चीज को मानने से इंकार करते दिखते हैं वहीं गांधी ऐसे विचारों को बढ़ावा देते थे। विचारधारा का अंतर समझा जा सकता है।
गांधीवाद समाज में पनप रही बुरी विचारधाराओं को आध्यात्म से सुलझाने की कोशिश करता है वहीं चेवाद समाज की विचारधारा को बदलने की प्रयास करता है।
चे कभी भी खत्म नहीं हो सकता, उसके विचार तो नहीं। लोगों को हर तरह के इतिहास का पता होना चाहिए चे अपने आप में इतिहास था, एक युग था।
– मोहम्मद अनीस