भाजपा के झंडे से सट कर लगा ओम नाम लिखा भगवा झंडा नन्दीग्राम के हर गांव बाज़ार में बहुत दूर-दूर तक दिखाई दे रहा था। प्रधानमंत्री मोदी के बड़े पोस्टर के बगल में सुवेन्दु अधिकारी का एक छोटा पोस्टर तय सीमा के तहत चस्पा किया गया था। इसी बीच कहीं-कहीं टीएमसी के झंडे भी नज़र आ रहे थे।
ये सब देखकर चलती गाड़ी में अपने साथियों से इस तस्वीर के मायनों पर चर्चा हुई। गाड़ी के ड्राइवर का कहना था कि झंडे के रंग से यहां के लोगों को दीदी के खिलाफ कर पाने की कोशिश बहुत ज़्यादा कारगर साबित नही हो सकती,उनका तर्क था कि बंगाल की सियासत में दीदी युग की शुरुआत इस ही इलाके से हुई है। यहां के हर घर से दीदी का जुड़ाव है। ये वही इलाका है जहां कभी दीदी कच्चे रास्तों में मोटर बाइक पर बैठकर गर्म दोपहर में घूमती पाई जाती थी।
बंगाल के एक दोस्त का कहना था कि इस इलाके में अधिकारी परिवार को बोलबाला दीदी के रहते हो पाया और ये बात यहां सब समझते हैं। हालांकि उसने इन भगवा झंडों के प्रभाव को बहुत हद तक एक मज़बूत फैक्टर मानते हुए ये बात कही कि “हमारे मुल्क की राजनीति में इस खेल के आगे कोई खेल नही है” इसलिए इस बार दीदी के लिए दादा को बहुत हल्का नही आंका जा सकता है।
हमारी गाड़ी नन्दीग्राम के एक अंचल में जाकर रुक गयी थी। हम रुके ही थे कि एक काफला बहुत तेज़ रफ़्तार लिए हमारे बगल से गुज़रा। किसी ने बताया कि दीदी है। हम आनन-फानन में गाड़ी में बैठकर काफिले के पीछे हो लिए। एक दूसरे अंचल में पहुंच कर मालूम हुआ कि दीदी नही हैं लेकिन टीएमसी के कुछ बड़े नेता रोड-शो के लिए यहां पहुंचे हैं। रोड शो के दौरान यहां खासी भीड़ देखने को नही मिली। इसका एक कारण यह भी बताया गया कि बंगाल का मिजाज़ है कि यहां दोपहर में लोग अपने घरों में रहकर आराम करते हैं।
इस ही अंचल में कुछ लोगों से बात हुई। मालूम हुआ कि यह एक हिन्दू बहुल गांव है। हमारे लिए यहां एक चुनावी चर्चा कर पाना आसान नही था,यहां के लोगों को हिंदी समझ नही आती, जिन्हें हिंदी आती भी है वे किसी सवाल का जवाब देने को तैयार नही हैं,किसी ने बताया कि नन्दीग्राम में लोग बात नही कर रहे हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि लोगों में परिणाम के बाद की स्थिति को लेकर एक डर है। अगर दीदी का लिए बोलेंगे तो दादा का डर है और दादा के लिए कुछ पॉजिटिव कह दिया तो दीदी का डर। यह कन्फ्यूज़न हमें इस नतीजे पर पहुंचने से रोक रहा था कि हम आपको एक साफ तस्वीर कैसे दिखाएं की यहां किसका पलड़ा भारी है।
कुछ लोग जिन्होंने हमसे बात की उसके आधार पर ये कहा जा सकता है कि ये मुकाबला इतना आसान नही है जितना इसे समझा जा रहा था। हम पहले हिन्दू बहुल इलाके में गए जहां लोगों से बात करने पर महसूस हुआ कि सब एक ही सिलेबस की स्टडी करके आए हैं। यहां तक कि हर सवाल का एकदम मिलता-जुलता जवाब,इत्तेफाक से हमें यहां मिले 20 से ज़्यादा लोगों में से एक भी ऐसा नही था जिसने सुवेन्दु अधिकारी को नकारा हो।
एक युवा ने इंटरव्यू के दौरान कहा कि ये ठीक वैसी ही लहर है जैसी सीपीएम के ख़िलाफ उठी थी। इस बार वही होगा जो सीपीएम के साथ हुआ था। हम परिवर्तन चाहते हैं।
सुवेन्दु अधिकारी यानी दादा का स्थानीय होना बहुत हद तक मायने रखता है। लोग उन्हें नन्दीग्राम का बेटा, सुख-दुख का साथी कहकर समर्थन जता रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि ममता राज में नन्दीग्राम का कोई विकास नही हुआ है लेकिन जब आप इनसे पूछते हैं कि सुवेन्दु अधिकारी भी ममता राज का हिस्सा थे,वही विधयाक थे तो उनकी जवाबदेही क्यों तय नही कर रहे हैं तो जवाब मिलता है कि ममता ने उन्हें काम नही करने दिया,इसीलिए हम उन्हें बीजेपी के माध्यम से मौका देना चाहते हैं।
नन्दीग्राम में प्रवेश करते ही हमें पुलिस की कुछ गाड़ियां और सुरक्षाकर्मी जवानों का एक घेरा नज़र आया,देखने से लग रहा था कि जिस दो मंजिला इमारत के बगल में ये गाड़ियां खड़ी हैं वहां कोई बड़ा नेता मौजूद है। इमारत पर लगे भाजपा के झंडों से ये तय हो गया कि बीजेपी के कोई नेता हैं। मालूम करने पर बताने से इनकार कर दिया गया कि यहां कौन है। हमने वहां मौजूद लोगों से जब पूछा कि दीदी या दादा ? तो वे दादा को लेकर इतने कॉन्फिडेंट नज़र नही आए जितना एक कार्यकर्ता को होना चाहिए।
धुर्वीकरण का असर गांवों में किस तेज़ी से होता है यह हमें करीब के एक अन्य गांव में पहुँच कर महसूस हुआ जहां मिली-जुली आबादी थी। ये पहले गांव से तकरीबन 1 से 2 किलोमीटर के फासले पर मौजूद इलाका था। एक महिला ने बात करते हुए कहा कि “कितना ही पैसा बांट लें,कितना ही हिन्दू-मुस्लिम हो जाए यहां दीदी को जीतने से नही रोका जा सकता है। पास के गांव का ज़िक्र करने पर उन्होंने हमें बताया कि यही एक गांव दादा का को लेकर बहुत आश्वस्त है लेकिन हर जगह ऐसा नही है।
एक और बुजुर्ग शख्स से यहां हमारी बात हुई। उन्होंने धुर्वीकरण के सवाल पर कहा कि “70 साल की मेरी उम्र में आजतक मैंने इस तरह का चुनाव नही देखा है,मैं मुसलमान हूँ लेकिन कभी हमारे धर्म यहां मुद्दा नही थे,पास के गांव में हम बैठते थे और वे लोग हमारे घरों में आकर सलाम करते थे,लेकिन पिछले कुछ समय से दिलों में मेल भर दिया गया है”।
यहीं हमें बताया गया कि भाजपा के ज़रिए इस इलाके में पर्चे बंटवाए गए हैं। जिनपर लिखा है कि बंगलादेशी मुसलमानों को यहां से निकाला जाएगा। ऐसा हिन्दू वोटर्स को रिझाने के लिए किया गया है।
सुवेन्दु अधिकारी लगातार अपनी रैलियों में ममता बनर्जी का मुसलमान कनेक्शन दिखाने और मिनी पाकिस्तान जैसे बयान दे रहे हैं। यहां बहुत साफ महसूस हुआ कि इन बयानों और प्रचार के तरीके का इस इलाके पर सीधा असर पड़ रहा है।
इंडियन सेक्युलर फ्रंट से सीपीएम की दावेदार मीनाक्षी मुखर्जी को इस इलाके में बंगाल का कन्हया कुमार कहकर प्रचारित किया जा रहा है। वे अपने भाषणों के ज़रिए इलाके में लगातार रोड शो कर रही हैं लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि वे इस मुकाबले को कितना प्रभावित कर पाती हैं। उनके एक रोड शो के बाद हमने जब वहां मौजूद लोगों से बात की तो कहा गया कि चुनावों में प्रचार करने का हक सबको है लेकिन मीनाक्षी यहां टीएमसी-बीजेपी के मुकाबले में ज़्यादा असर नही छोड़ पाएंगी।
यहां टीएमसी समर्थक ईवीएम और चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हैं लेकिन भाजपा समर्थको के लिए यह कोई मुद्दा नही है।
ममता बनर्जी कोलकाता की विधानसभा भावनीपुर से चुनाव लड़ती थीं लेकिन सुवेन्दु अधिकारी के चैलेंज पर उन्होंने यहां से चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस सवाल पर एक स्थानीय का कहना था कि
“दीदी यहां की मुख्यमंत्री है, उन्होंने जज़्बात में ये फैसला नही लिया होगा, उनसे अच्छा यहां का समीकरण कौन समझ सकता है ? वे यहां लड़ने आई हैं तो कुछ सोच कर ही आई होंगी,दीदी पचास हज़ार से ज़्यादा वोट से जीतेंगी, यहां हर गांव में सुवेन्दु अधिकारी के टीएमसी को दोखा देने की चर्चा है,जो अपनी पार्टी का नही हुआ वो हमारा कैसे होगा ?
“एक और स्थानीय ने कहा कि नन्दीग्राम के लिए हिन्दू-मुस्लिम कभी मुद्दा रहा ही नही। ये बंगाल के लोग हैं इनके बीच राजनीति और सत्ता पाने के लिए ये मुद्दा कारगर साबित नही हो सकता”
“यहां बड़ी तादाद में लोग जहां दीदी की जीत को परिणाम से पहले सुनिश्चित करकर बैठे हुए हैं उनका कहना है कि 2 मई को अगर दीदी हारती है तो परिणाम किसी भी तरह स्वीकार नही किए जाएंगे। ईवीएम का घोटाला हमारे लिए स्वीकार्य नही है।”
जिस तरह दीदी ने इस इलाके में पूरी तरह जान झोंक कर मेहनत की है। इससे एक बात तो समझ आती है कि दीदी धुर्वीकरण के खेल से अच्छी तरह परिचित हैं। अब देखना यही होगा कि बीजेपी के इस खेल के सामने दीदी किस हद तक टिक पाती हैं ?
– (पश्चिम बंगाल चुनाव से युवा पत्रकार अहमद क़ासिम की ग्राउंड रिपोर्ट)