राजस्थान में मीडिया और विपक्ष द्वारा कथित वैक्सीन की बर्बादी का हल्ला कर किस प्रकार जनता को मूर्ख बनाने का प्रयास हो रहा है, आइए समझते हैं कि किस प्रकार अपनी जान जोखिम में डालकर लगातार टीकाकरण के काम में लगे हुए लोगों को जानबूझकर वैक्सीन खराब करने का आरोपी बताया जा रहा है:
• भारत सरकार ने ऐलान किया कि 16 जनवरी से भारत में कोरोना की वैक्सीन लगाना शुरू किया जाएगा। इसके लिए दो टीकों कोविशील्ड और कोवैक्सीन को इमरजेंसी यूज अप्रूवल दिया गया। इमरजेंसी यूज अप्रूवल का मतलब है कि आपातकालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए वैक्सीन को अनुमति दी गई है। अभी इन वैक्सीन के ट्रायल के फाइनल नतीजे नहीं आए हैं।
• इमरजेंसी यूज अप्रूवल का एक आशय यह भी है कि किसी भी नागरिक को वैक्सीन लगवाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह एक वैकल्पिक व्यवस्था है जिसमें जो योग्य व्यक्ति अपनी इच्छा से वैक्सीन लगवाना चाहे, वो लगवा सकते हैं।
• वैक्सीनेशन के लिए भारत सरकार ने 28 दिसंबर 2020 को राज्य सरकारों के लिए गाइडलाइंस जारी कीं। यह भारत सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं।
• 148 पन्ने की इन गाइडलाइंस की कुछ जरूरी बातें याद रखिए जो मीडिया के इस प्रोपेगैंडा को दूर करने के काम आएंगी। पहली बात कि वैक्सीनेशन चरणबद्ध होगा यानी पहले हेल्थकेयर वर्कर्स, फिर फ्रंटलाइन वर्कर्स, फिर 60 साल से अधिक आयु के लोग एवं इसके बाद 45 साल से अधिक आयु के लोग।
• दूसरी बात, वैक्सीन लगवाने के लिए राज्यों से इन लोगों का डाटा मांगा गया। इन सभी के नाम केन्द्र सरकार द्वारा कोविन ऐप पर अपलोड किए गए। जिनका नंबर वैक्सीनेशन के लिए आएगा उन्हें मैसेज जाएगा और इनके अलावा किसी और को वैक्सीन नहीं लगेगी। यानी जिसे मैसेज गया और वो व्यक्ति वैक्सीन लगवाने नहीं पहुंचा तो उसके हिस्से की वैक्सीन किसी और को नहीं लगेगी।
• तीसरी बात, एक वैक्सीन की वाइल (शीशी) में 10 डोज होंगी यानी एक वाइल से 10 लोगों को वैक्सीन लगेगी। वैक्सीन वाइल को खोलने के बाद अगले 4 घंटे में इसका इस्तेमाल करना होगा। यदि इस्तेमाल नहीं हुआ तो बची हुई डोज का डिस्पोजल (निस्तारण) किया जाएगा। इसे आगे इस्तेमाल में नहीं लिया जा सकता।
• निस्तारण के लिए इन बची हुई डोज वाली वायल और सभी खाली वायल को पीले रंग के प्लास्टिक बैग में रखकर बड़े सेंटर पर जमा करा दिया जाएगा। वहां इनका कैमिकल ट्रीटमेंट कर आगे कॉमन ट्रीटमेंट फैसिलिटी में भेज दिया जाएगा। कॉमन ट्रीटमेंट फैसलिटी उपलब्ध नहीं होने पर इन्हें गड्ढा खोद के गाढ़ कर निस्तारण कर दिया जाएगा।
• चूंकि जरूरी नहीं हमेशा 10 के गुणांक में लोग वैक्सीन लगवाने पहुंचे इसलिए केन्द्र सरकार ने 10% वैक्सीन खराब होने की अनुमति दी। यानी उनका अनुमान रहा होगा कि किसी वैक्सीनेशन साइट पर 90 की जगह 91 लोगों का रजिस्ट्रेशन है तो 1 भी इंसान को बिना वैक्सीन लगाए ना भेजें चाहे 9 डोज खराब हो जाएं। इसलिए 10% खराब होने की छूट दी गई।
• 16 जनवरी से टीकाकरण शुरू हुआ। राज्यों को पहले दिन से ही वैक्सीन खराबी की परेशानी आने लगी क्योंकि वैक्सीन लगवाने वालों के नाम केन्द्र सरकार ने पहले से ही सॉफ्टवेयर में दर्ज किए थे और वो लोग वैक्सीन लगवाने नहीं पहुंचते थे ऐसे में किसी अन्य को वैक्सीन नहीं लग पाती और वैक्सीन खराब होती।
• राजस्थान के मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार को पत्र लिखकर ऑफलाइन वैक्सीनेशन की अनुमति मांगी जिससे वैक्सीन खराब ना हो लेकिन अनुमति नहीं मिली। ऐसे में रोज हर सेंटर पर दो-चार डोज वैक्सीन खराब होना लाजिमी था।
• राजस्थान में एक भी दिन 10% की अनुमत सीमा से अधिक वैक्सीन खराब नहीं हुई। यहां तक की इसके आसपास भी वैक्सीन खराब नहीं हुई।
• राजस्थान में वैक्सीनेशन का काम तेजी से चलने लगा। प्रदेश में एक दिन में 7 लाख वैक्सीन लगाने की क्षमता विकसित कर ली गई। एक दिन में 5.81 लाख वैक्सीन तक लगा दी गईं। हालांकि केन्द्र सरकार राज्यों को वैक्सीन उपलब्ध नहीं करवा पाई और वैक्सीनेशन का काम बार-बार रोकना पड़ा।
• 30 मई तक राजस्थान में 1 करोड़ 70 लाख वैक्सीन लगा दी गईं। इनमें से 45 वर्ष से अधिक आयुवर्ग में सिर्फ 2% (करीब 3 लाख) वैक्सीन डोज खराब हुईं जिसका सीधा सा कारण 10 के गुणांक में लोगों का ना आना था। हालांकि यह वैक्सीन खराबी की राष्ट्रीय औसत 6% से तीन गुना और अनुमत सीमा से 5 गुना कम था।
• कोशिश की गई कि वायल तभी खोली जाए जब 10 लोग आ जाएं लेकिन कई बार 10 लोग नहीं होते तो जो 4-5 लोग आए वो हंगामा करते और वहां काम कर रही मेडिकल टीम को वैक्सीन लगानी पड़ती।
• अप्रेल में कोरोना की दूसरी लहर आई और आमजन में यह चर्चा का विषय बना कि हमारे हिस्से की वैक्सीन विदेश भेज दी गई इसलिए हमें वैक्सीन नहीं मिल रही है। इससे जनता में आक्रोश पैदा होने लगा तो मोदी सरकार ने गोदी मीडिया को फिर से सक्रिय किया।
• मोदी सरकार ने 1 मई से 18+ लोगों को वैक्सीन लगाने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल दी। 18 अप्रेल को ये फैसला किया गया यानी 12 दिन में वैक्सीन की खरीद से लेकर लगाने तक के सारे कार्य करने थे। ऐसा भारत में पहली बार हुआ क्योंकि अभी तक टीकाकरण के सारे कार्यक्रम राष्ट्रीय हुए हैं और केन्द्र सरकार ने राज्यों को निशुल्क वैक्सीन दी है। पहली बार यह बोझ राज्यों पर डाला गया क्योंकि केन्द्र सरकार के पास कोई प्लान नहीं था और जिम्मेदारी से बचने के लिए राज्यों पर बोझ डाल दिया गया।
• वैक्सीन की कमी पूरी नहीं हुई तो केन्द्र और प्रधानमंत्री से लोग खफा नजर आए ऐसे में उनकी गोदी मीडिया सक्रिय हुई।
• एक अखबार के पत्रकार राजस्थान के वैक्सीनेशन सेंटरों पर गए और वहां कर्मचारियों को बताया कि हम स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी हैं। छोटे स्तर पर कोई कर्मचारी खुद को अधिकारी बता रहे इंसान से आईडी कार्ड मांगने की हिम्मत नहीं कर पाता। ऐसे में उन्होंने ये बात मान ली। इन पत्रकार महोदय ने इन सेंटरों से वैक्सीन की डिस्कार्डेड वायल जिनमें कुछ डोज बची थीं, इनकी शीशियां लेकर अपने पास रख लीं।
• इसी तरह निस्तारण के लिए पीले पॉलीबैग में रखी वाइल्स की फोटो निकालकर एडिट की गई और इसे डस्टबिन बता दिया गया। जबकि यह वही पॉलीबैग है जो केन्द्र सरकार की गाइडलाइंस के मुताबिक इस्तेमाल होना चाहिए।
• गाइडलाइंस के मुताबिक जिस गड्ढे में इन डिस्कार्डेड वाइल्स को डिस्पोजल के लिए डाला गया, उस गड्ढे की फोटो लेकर बोला गया कि यहां वैक्सीन गड्ढे में मिली है जबकि वह इस्तेमाल की जा चुकी और डिस्कार्डेड वैक्सीन है जो गाइडलाइंस के मुताबिक गड्ढे में डाली गई थी।
• यहां जानकारी होनी चाहिए कि अपनी गलत पहचान बताकर स्वयं को सरकारी कर्मचारी बताना ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट में अपराध है। महामारी के समय इस तरह का कार्य डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट और एपिडेमिक एक्ट में अपराध है। हालांकि यहां उत्तर प्रदेश की तरह किसी पत्रकार पर मुकदमा नहीं किया गया और प्रेस की स्वतंत्रता का सम्मान किया गया।
• अखबार ने दावा किया कि उसके पास ऐसी 500 वायल हैं जिनमें करीब 2500 डोज हैं। इस संख्या को भी देखें तो पता चलता है कि वैक्सीन खराबा 5% ही होगा यानी 10% की अनुमत सीमा से एकदम आधा। यानी राजस्थान में केन्द्र सरकार की गाइडलाइंस का पूरी तरह पालन हुआ है और यहां खराबा 10% से अधिक नहीं है।
• 1 करोड़ 70 लाख लोगों को वैक्सीन लगाने में 2500 डोज खराबी की बात करना यानी 0.0001% खराबी की बात फ्रंट पेज पर छाप कर हंगामा खड़ा करने की कोशिश की गई जिससे इस बात को छिपाया जा सके कि केन्द्र सरकार की नाकामी के कारण राज्यों को वैक्सीन नहीं मिल सकी।
• यदि 1 करोड़ 70 लाख वैक्सीन पर केन्द्र की गाइडलाइंस का पालन कर चलें तो भी 17 लाख वैक्सीन डोज खराब होने तक किसी को आपत्ति नहीं होती क्योंकि यह नियम संगत था। जबकि प्रदेश में सिर्फ 3 लाख के लगभग डोज खराब हुईं।
• जबकि केन्द्र सरकार के नियमों में दिक्कत होने की वजह से इतनी वैक्सीन खराब हुई। यदि 18+ की तरह 45+ में ऑफलाइन वैक्सीन लगाने की अनुमति होती तो और भी कम वैक्सीन खराब होती।
• मीडिया के दूसरे अखबार ने मनमर्जी से आंकड़ा छाप दिया कि राजस्थान में 11 लाख वैक्सीन खराब हुईं। इन आंकड़ों का कोई सोर्स तक उपलब्ध नहीं करवाया गया। जबकि राजस्थान सरकार के आधिकारिक आकंडों के मुताबिक महज दो प्रतिशत अथवा तीन लाख वैक्सीन खराब हुई।
• 18+ वैक्सीनेशन का काम पूरी तरह राज्य के हाथ में है। राजस्थान में 18+ लोगों में ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन के कारण नियत संख्या से करीब 15 हजार अधिक लोगों को वैक्सीन लगी है। कई वाइल्स में 10 की जगह 11 डोज लगती हैं जिनका पूरा इस्तेमाल हो सका और तय संख्या से अधिक डोज लगीं।
क्योंकि केन्द्र सरकार की कमी को छिपाना है इसलिए राजस्थान को बदनाम करने का षडयंत्र शुरू किया गया। राजस्थान के संबंध में उठे सभी सवालों के जवाब आपके सामने हैं। यहां केन्द्र सरकार की गाइडलाइंस के मुताबिक ही काम हुआ जिस पर सनसनी पैदा की जा रही है। तथ्य आपके सामने हैं। आप तय करिए कि अपनी जान जोखिम में डालकर लगातार टीकाकरण के काम में लगे हुए लोग क्या जानबूझकर आपके हिस्से की वैक्सीन खराब करेंगे या उन्हें भी इस षडयंत्र में आप बदनाम करेंगे।
– ऋषभ कुमार शर्मा
(इस लेख में किए गये दावे और तथ्यों की ज़िम्मेदारी लेखक की है. जनमानस राजस्थान इसकी ज़िम्मेदारी नहीं लेता)