जयपुर । गुरुवार को स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया (एसआईओ) राजस्थान, ने छात्र घोषणा-पत्र जारी किया, जिसका उद्देश्य भारत में शिक्षा, अल्पसंख्यकों और सामाजिक कल्याण को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करना है। संगठन के राष्ट्रीय सचिव सुल्तान हुसैन, राजस्थान के अध्यक्ष मोहम्मद आदिल और शिक्षा सचिव मोहम्मद इरफान ने मीडिया को संबोधित किया और घोषणा-पत्र का विवरण साझा किया। साथ ही शिक्षकों के निलंबन और विद्यालयों में सूर्य नमस्कार विषय पर भी अपनी बात रखी।
छात्र घोषणा-पत्र में छात्र समुदाय की महत्वपूर्ण मांगें शामिल हैं, जिन्हें एसआईओ 2024 के आम चुनावों का मुख्य मुद्दा बनाना चाहती है।
यह घोषणा-पत्र निम्नलिखित बिंदुओं को संबोधित करता है:
• सभी के लिए अवसर सुनिश्चित करने के लिए एक निष्पक्ष, न्यायसंगत और उचित आरक्षण प्रणाली की व्यवस्था की जाए।
• सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े ज़िलों पर विशेष ध्यान दिया जाए और संतुलित विकास के लिए हाशिए पर रह गये क्षेत्रों के उत्थान पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
• रोहित अधिनियम को लागू किया जाए और छात्रों के लिए शैक्षणिक संस्थानों में न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
• मौलाना आज़ाद नेशनल फ़ेलोशिप को बहाल किया जाए और अल्पसंख्यकों के लिए छात्रवृत्ति बढ़ाई जाए। शिक्षा तक समान पहुंच के लिए अल्पसंख्यक छात्रों की आर्थिक रूप से सहायता की जाए।
• भेदभाव और पूर्वाग्रह से मुक्त समाज के लिए भेदभाव विरोधी क़ानून बनाया जाए।
• लोगों की गोपनीयता और डेटा की सुरक्षा हेतु कठोर व्यक्तिगत डेटा संरक्षण क़ानून और गोपनीयता चार्टर बनाया जाए।
• पर्यावरणीय योजनाओं और सस्टेनेबल डेवलपमेंट संबंधित गतिविधियों के लिए 1000 करोड़ की निधि दी जाए।
• युवाओं के समग्र विकास को प्राथमिकता देते हुए पूरे भारत में युवाओं के लिए स्वास्थ्य और मानसिक कल्याण केंद्र खोले जाएं।
• सभी के लिए सुलभ शिक्षा की प्रतिबद्धता निभाते हुए प्राथमिक से विश्वविद्यालय स्तर तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित की जाए।
• देश के युवाओं के लिए नौकरी की सुरक्षा और अवसरों का मार्ग प्रशस्त करने हेतु रोज़गार गारंटी अधिनियम लाया जाए।
प्रेस वार्ता में एसआईओ नेतृत्व ने भारत के शैक्षणिक परिदृश्य में चिंताजनक रुझानों के बारे में बात की। 74.04% की समग्र साक्षरता दर के बावजूद, जो विश्व औसत 86.3% से नीचे है, कई राज्य मुश्किल से ही राष्ट्रीय स्तर से आगे निकल पा रहे हैं।
एसआईओ के राष्ट्रीय सचिव सुलतान अहमद ने केंद्र द्वारा धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए प्रमुख शैक्षिक योजनाओं को बंद करने, दूसरों के दायरे को कम करने और अल्पसंख्यक मंत्रालय के तहत कार्यक्रमों पर ख़र्च को कम करने और शिक्षा बजट हिस्सेदारी को सकल घरेलू उत्पाद के 2.9% तक कम करने पर चिंता व्यक्त की, जो कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा निर्धारित 6% लक्ष्य से काफ़ी कम है।
उन्होंने भारत के सकल घरेलू उत्पाद के 2.1% आवंटन और जापान, कनाडा और फ़्रांस जैसे देशों के बीच स्पष्ट अंतर की ओर इशारा किया, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए लगभग 10% आवंटित करते हैं।
बेरोज़गारी अब भारत की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। संसद में पूछे गए एक प्रश्न के लिखित जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा है कि 1 मार्च, 2023 तक सभी मंत्रालयों में लगभग 10 लाख पद खाली थे। हालाँकि, सरकार विश्वविद्यालयों और मंत्रालयों में रिक्त पदों को भरने के प्रति गंभीर नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि परीक्षाओं और चयन प्रक्रियाओं में व्यापक भ्रष्टाचार और अक्षमता है।
मुस्लिम छात्रों के बीच ड्रॉपआउट दर की चिंताजनक स्थिति को संबोधित करते हुए, सुलतान हुसैन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इंस्टीट्यूट ऑफ़ ऑब्जेक्टिव स्टडीज़ ने 23.1% ड्रॉपआउट दर की सूचना दी है, जो राष्ट्रीय औसत 18.96% से अधिक है। शैक्षणिक वर्ष 2020-21 में मुस्लिम छात्रों का नामांकन 2019-20 में 5.5% से घटकर 4.6% हो गया।
इसके अलावा सलमान हुसैन ने शैक्षणिक स्वतंत्रता के चिंताजनक क्षरण पर भी प्रकाश डाला, जैसा कि वी-डेम इंस्टीट्यूट द्वारा तैयार शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक में 179 देशों के बीच भारत की निचली 30% स्थिति में परिलक्षित होता है।
उन्होंने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए मानसिक स्वास्थ्य संकट पर भी गहरी चिंता व्यक्त की, जिसमें 15 से 30 वर्ष की आयु के लोगों में मौत का प्रमुख कारण आत्महत्या बताया गया है, जिसमें औसतन हर 42 मिनट में 34 छात्र अपनी जान ले लेते हैं।
उन्होंने कहा कि छात्र और युवा इस देश के सबसे बड़ा वोटर समूह हैं और राजनीतिक दलों को वोट मांगते समय विशेष रूप से उनकी ज़रूरतों और मांगों को पूरा करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि यह घोषणा-पत्र राजनीतिक दलों से देश के भविष्य में निवेश करने के लिए कह रहा है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि छात्र और युवा खोखले वादों से प्रभावित होने वाले या विभाजनकारी राजनीतिक एजेंडे से विचलित होने वाले नहीं हैं। इसके बजाय वे दृढ़ता से ठोस चुनावी घोषणा-पत्र की मांग करते हैं जो सुलभ और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, रोज़गार, शांति और सुरक्षा की गारंटी देता हो।
स्टूडेंट्स इस्लामिक आर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष मोहम्मद आदिल सैफी ने विद्यालयों में सूर्य नमस्कार के विषय में बात रखते हुए कहा कि:
“पिछले दिनों विद्यालयों में सूर्य नमस्कार करवाने के संबंध में शिक्षा मंत्री राजस्थान के दिए गए बयान और कार्यालय–निदेशक, माध्यमिक शिक्षा राजस्थान, बीकानेर द्वारा जारी किए गए आदेश से एक बार फिर साबित हो गया है कि भाजपा एक सांप्रदायिक पार्टी है। जो एक विशेष संस्कृति को समस्त नागरिकों पर थोपना चाहती है। सत्ता में आते ही भाजपा ने अपने सांप्रदायिक चेहरे से नक़ाब हटाते हुए 15 फरवरी 2024 को सूर्य सप्तमी के पूर्व दिवस पर सभी विद्यालयों में सूर्य नमस्कार कराए जाने का आदेश जारी किया था। जबकि विद्यालयों में धर्म विशेष की मान्यताओं के अनुसार समारोह आयोजित करवाना गैर संवैधानिक है। राज्य सरकार का यह आदेश “भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार, सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता, धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का सामान अधिकार होगा” के विरुद्ध है। हमारा देश भारत एक बहु सांस्कृतिक और अनेकों धर्म वाला देश है। हमारा संविधान सेक्युलर मूल्यों पर आधारित है। जो किसी विशेष संस्कृति, धर्म और आस्था की मान्यताओं और परंपराओं को दूसरों पर थोपे जाने की अनुमति नहीं देता है। सूर्य नमस्कार धर्म विशेष की परंपरा है जिसपर अन्य धर्मों के मानने वाले विश्वास नहीं रखते हैं। अतः राजस्थान सरकार को चाहिए कि वो सूर्य नमस्कार के संदर्भ में माध्यमिक शिक्षा राजस्थान, बीकानेर द्वारा जारी किए गए आदेश को वापस लें। राज्य में संवैधानिक मूल्यों को बरकरार रखने की चेष्ठा करें।”
प्रदेश शिक्षा सचिव मोहम्मद इरफान ने शिक्षकों के निलंबन के बारे में शिक्षकों के निलंबन के बारे में कहा : राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर द्वारा हेमलता बैरवा,मिर्जा मुजाहिद,फिरोज खान, शबाना और अकलीमा परवीन के मामले मे दमनकारी रवैया अपनाये जाने की एसआईओ कड़ी आलोचना करता है। इन शिक्षक शिक्षिकाओं ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिसकी इनको सजा मिले।
कोटा के संगोद इलाके के तीन मुस्लिम शिक्षकों मिर्जा मुजाहिद, फिरोज खान, शबाना के मामले मे भी उन पर धर्मांतरण और लव जिहाद जैसे झूठे आरोप लगाये गए, उन्हे बेवजह निलंबित कर दिया गया जब कि इन शिक्षकों ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया। ये शिक्षक लोकप्रिय शिक्षक रहे है,स्कूल के छात्र-छात्राओं व अभिभावक आज भी उनके समर्थन मे है तथा धरना प्रदर्शन तक कर चुके है और वे उन्हे वापस अपने विद्यालय मे लाना चाहते है। लेकिन कतिपय संगठनों के दबाव मे शिक्षा मंत्री सांप्रदायिक मनोवृति का परिचय देते हुये मुस्लिम समुदाय से आने वाले शिक्षकों को प्रताड़ित करने पर तुले हुये हैं |
इसी तरह राजकीय विद्यालय किशनगंज, बारां की 38 वर्षीया मुस्लिम शिक्षिका अकलीमा परवीन को भी निलम्बित करके बीकानेर मुख्यालय भेज दिया गया है,उन पर आरोप लगाया गया है कि वह हिजाब पहनती है और स्कूल के कोने में नमाज़ पढ़ती है |
ऐसा ही एक और मामला जोधपुर जिले मे भी सामने आया है, जहां पीपाड़ शहर के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय मे हिजाब पहनकर आने के बाद उपजे विवाद के मद्देनजर शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के निर्देश पर विद्यालय के प्रिंसिपल राम किशोर सांखला, उर्दू व्याख्याता चमन नूर और अतिरिक्त मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी समर सिंह को एपीओ कर दिया गया जबकि इन शिक्षकों का विवाद से कोई लेना देना नहीं था|
हेमलता बैरवा ने 26 जनवरी की उत्सव प्रभारी के नाते गणतंत्र दिवस समारोह मे सावित्री बाई फुले,डॉक्टर अंबेडकर और महात्मा गांधी की तस्वीरे रखी थी,जब उन पर जबरन सरस्वती की तस्वीर रखने का दबाव डाला गया तो उनके द्वारा यह पूछने पर कि सरस्वती का शिक्षा मे क्या योगदान है,भड़के हुए लोगों ने शिक्षिका के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करवा दिया। एक लोकतांत्रिक सरकार के निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में शिक्षिका को संवैधानिक मूल्य की रक्षा के लिए सम्मानित करने की बजाय शिक्षा मंत्री ने सार्वजनिक मंच से शिक्षिका को निलंबित करने के आदेश प्रदान कर उसे माध्यमिक शिक्षा के मुख्यालय बीकानेर भेजने का ऐलान किया,जो कि सरासर प्रताड़ना की कार्यवाही है। शिक्षामंत्री की शह पर पूरे राज्य की स्कूलों मे ऐसा माहौल बनाया जा रहा है ताकि दलित व अल्पसंख्यक व सेकुलर विचार मे भरोसा करने वाले शिक्षकों, शिक्षिकाओं में भय का वातावरण उत्पन्न हो जाए।
मीडिया सचिव नौशाद अली ने बताया कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में एसआईओ के विभिन्न पदाधिकारियों के अलावा कई माननीय पत्रकार मौजूद रहे।