शमशेर ‘गांधी’ की दांडी सद्भावना यात्रा के समर्थन में प्रवासी भारतीय भी आए आगे !


राजस्थान के चूरू से गुजरात के दांडी तक निकाली जा रही दांडी सद्भावना यात्रा को अब प्रवासी भारतीयों का भी समर्थन मिलना शुरू हो गया है. पवित्र मक्का शहर में रहने वाले प्रवासी भारतीयों ने भी शमशेर खान की दांडी यात्रा के समर्थन में फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है.

पवित्र मक्का शहर से भी दांडी सद्भावना यात्रा का समर्थन

 

राजस्थान के जो लोग विदेश में नौकरी कर रहे हैं वो सब सोशल मीडिया के माध्यम से दांडी यात्रा पर निकले शमशेर खान और उनकी यात्रा के समर्थन में पोस्ट शेयर कर रहे हैं. लोगों ने शमशेर खान के समर्थन वाले पोस्टर हाथों में लेकर फोटो सोशल मीडिया पर शेयर की है.

सऊदी अरब में रहने वाले राजस्थान के निसार भारू ने सोशल मीडिया पर शमशेर खान और दांडी यात्रा के समर्थन में एक अभियान चलाया हुआ है. इसके लिए निसार भारू सोशल मीडिया पर लगातार दांडी यात्रा की अपडेट डाल रहें और वीडियो के माध्यम से भी लोगों से दांडी सद्भावना यात्रा का समर्थन करने की अपील कर रहे हैं. जिसका असर भी सोशल मीडिया पर देखने को मिल रहा है.

सामाजिक कार्यकर्ता निसार भारू
क्या है दांडी सद्भावना यात्रा
राजस्थान में चुरू के रहने वाले एक सरकारी उर्दू शिक्षक शमशेर खान 1 नवम्बर से अपनी कुछ मांगों के लेकर चुरू से “दांडी सद्भाव यात्रा” पर निकले हैं. शमशेर खान राजस्थान के चुरू से लेकर गुजरात के दांडी तक करीब 1100 किलोमीटर का यह सफर पैदल ही तय कर रहे हैं.
शमशेर खान की यह पैदल दांडी यात्रा चुरू से शुरू होकर राजस्थान के राजसमन्द जिले में पहुंच चुकी है. जनमानस से बात करते हुए अपनी यात्रा का उद्देश्य बताते हुए शमशेर खान कहते हैं कि मेरी इस यात्रा का उद्देश्य देश में एकता शांति सद्भाव का संदेश देने के साथ साथ कुछ मांगों पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षण करना है.
वो बताते हैं कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 350 अ में अल्प भाषाओं को अलग से प्राथमिकता दी गई है. लेकिन सरकार उर्दू के साथ भेदभाव कर रही है और लगातार ऐसी कोशिशें की जा रही है जिससे सरकारी स्कूलों से उर्दू ख़तम होती जा रही है. सरकारी स्कूलों में उर्दू पढ़ने वाले बच्चे होने के बावजूद उर्दू नहीं पढ़ाई जा रही है. शिक्षक भर्ती में उर्दू के पद नहीं निकले जा रहे हैं और स्कूलों से उर्दू शिक्षकों के पद ख़तम किए जा रहे हैं.
वो कहते हैं कि राजस्थान में करीब 300 कॉलेज है जिनमें से सिर्फ 60 से 65 कॉलेज में ही उर्दू पढ़ाई जाती है, जिनमें करीब 50 प्रतिशत पद खाली हैं. जो उर्दू लेक्चरर कॉलेज में लगे हुए है उन्हें भी डेपुटेशन पर किसी और विभाग में लगाकर कोई और ही काम करवाया जा रहा है.
हमारी सरकार से यही मांग है कि स्कूल से लेकर कॉलेज तक उर्दू को जिस तरह से नजरंदाज किया जा रहा है और जो अनदेखी की जा रही है उसे बन्द किया जाना चाहिए. स्कूल से लेकर कॉलेज शिक्षा तक सब जगह उर्दू पढ़ाई जानी चाहिए और उर्दू शिक्षकों के पदों को स्वीकृत कर उन पर जल्दी भर्ती निकाली जानी चाहिए.
आगे शमशेर खान कहते है कि मेरी दूसरी मांग मदरसा पैरा टीचर्स को लेकर है. सरकार पैरा टीचर्स से एक तृतीय श्रेणी शिक्षक के बराबर काम लेती है लेकिन उनका मानदेय सिर्फ 6 हजार से 9 हजार रूपए ही है. हमारी मांग है कि समान काम समान वेतन की मांग को मानते हुए सभी मदरसा पैरा टीचर्स को भी तृतीय श्रेणी शिक्षकों के बराबर ही वेतन दिया जाए. साथ ही मदरसा पैरा टीचर्स को नियमित करने का को वादा कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में किया था सरकार उस वादे को पूरा करे.

 

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