आज प्रज्ञा ठाकुर चुनाव लड़ रही है इसकी ज़िम्मेदार कांग्रेस नहीं तो कौन है!


इस रहस्य को जो समझ लेगा, उसे ही भारतीय राजनीतिशास्त्र का डॉन माना जाएगा. डॉन एक मतलब प्रोफेसर भी होता है,

29 सितंबर, 2008 को मालेगांव बाजार में एक मोटरसाइकिल में रखा बम फटता है. 7 मरे, 79 घायल, अक्टूबर महीने में प्रज्ञा ठाकुर गिरफ्तार होती हैं,

4 नवंबर, 2008 को लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित गिरफ्तार. देश के कई और धमाको में इनके संगठन अभिनव भारत के शामिल होने का शक

20 जनवरी, 2009 – प्रज्ञा और पुरोहित समेत तमाम अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल

31 जुलाई, 2009 – स्पेशल कोर्ट ने मामले में मकोका एक्ट की धाराएं हटाईं.

19 जुलाई, 2010- हाई कोर्ट ने फिर से मकोका लगाया

13 अप्रैल 2011 – केस नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी को गया.

2014 तक इस मामले में कोई फैसला नहीं आ सका. फिर बीजेपी की सरकार आ गई और फिर जो होना था वह हो रहा है.

जमानत पर रिहा प्रज्ञा ठाकुर अब बीजेपी की उम्मीदवार है.

कोई मुझे समझा सकता है कि 2008 से 2014 तक छह साल में जब महाराष्ट्र में कांग्रेस के मुख्यमंत्री -अशोक चह्वान और पृथ्वीराज चह्वान थे, केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी, पी. चिदंबरम और सुशील कुमार शिंदे केंद्रीय गृह मंत्री थे, तो इस मामले में निचली अदालत का फैसला भी क्यों नहीं आया?

अगर उस फैसले में प्रज्ञा ठाकुर को सजा हो गई होती, तो वे चुनाव न लड़ पातीं.

हालांकि इसमें मुख्य जिम्मेदारी तो सरकार की है लेकिन सरकार को समर्थन कर रहे दलों सपा, बसपा, आरजेडी आदि ने ये मामला क्यों नहीं उठाया?

हार्दिक पटेल के खिलाफ दो साल के अंदर निचली अदालत से फैसला करवा कर बीजेपी उसे चुनाव लड़ने से रोक देती है, जबकि उसके खिलाफ हिंसा में सीधे शामिल होने का आरोप तक नहीं है. और आप मालेगांव ब्लास्ट में तेजी से मुकदमा नहीं चला सके.

कौन है बीजेपी की बढ़त का जिम्मेदार?

-दिलीप मंडल

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