आज भी क्यों खारा पानी पीने को मजबूर हैं राजस्थान के ग्रामीण इलाके?

–शारदा लुहार, बीकानेर, राजस्थान

देश के अन्य राज्यों की तरह राजस्थान में भी मानसून प्रवेश कर चुका है. राज्य के कई ज़िलों में मानसूनी बारिश हो रही है. कहीं कहीं सामान्य से अधिक वर्षा हो चुकी है. राज्य मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार एक जून से 20 जुलाई तक पूरे राजस्थान में सामान्य से लगभग साढ़े तीन प्रतिशत अधिक बारिश हो चुकी है. यकीनन मानसून की यह बारिश राजस्थान के लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि देश के अन्य राज्यों की तुलना में राजस्थान सबसे अधिक गर्मी का प्रकोप झेलता है. इस दौरान राज्य में पानी की सबसे बड़ी समस्या उभर कर सामने आती है. विशेषकर राज्य के ग्रामीण क्षेत्र इससे बहुत अधिक प्रभावित होते हैं. राजस्थान के कई ऐसे ग्रामीण इलाके हैं जहां लोगों को खारा पानी पीने पर मजबूर होना पड़ता है. एक तरफ प्रचंड गर्मी का कहर, तो दूसरी ओर खारा पानी उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है. न केवल इंसान बल्कि जानवर भी खारा पानी पीकर बीमार हो जाते हैं.

इस समस्या से जूझ रहे राज्य के कई ग्रामीण इलाकों की तरह करणीसर गांव भी इसका उदाहरण है. ब्लॉक मुख्यालय लूणकरणसर से करीब 35 किमी दूर इस गांव की आबादी लगभग साढ़े तीन हजार है. गांव की 35 वर्षीय शारदा देवी बताती हैं कि गर्मी के दिनों में गांव में सबसे बड़ी समस्या पानी की हो जाती है. बावड़ी और कुओं समेत कई स्रोतों में पानी उपलब्ध तो हो जाता है, लेकिन वह इतना खारा होता है कि उसे कोई आम इंसान पी नहीं सकता है. लेकिन हम गांव वाले वही खारा पानी पीने को मजबूर हैं. इसकी वजह से लोग अक्सर बीमार ही रहते हैं. ऐसे में बच्चों की सेहत पर क्या असर रहता होगा, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है. वह कहती हैं कि इस पानी के इस्तेमाल की वजह से बच्चों में अक्सर उल्टी और दस्त की शिकायत रहती है. वहीं गर्भवती महिलाओं और बुज़ुर्गों को भी मजबूरीवश इसी खारे पानी का इस्तेमाल करना पड़ता है, जिससे जच्चा और बच्चा दोनों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. लेकिन इस पानी के इस्तेमाल के अतिरिक्त हमारे पास और कोई विकल्प भी नहीं है. वह बताती हैं कि बच्चे और बुज़ुर्ग मिलकर उनके परिवार में सात सदस्य हैं और सभी इस खारे पानी की वजह से अक्सर बीमार ही रहते हैं.

वहीं शारदा देवी की पड़ोसी 40 वर्षीय सुमन बताती हैं कि केवल इंसान ही नहीं, बल्कि पालतू मवेशी भी इस खारे पानी को पीने के लिए मजबूर हैं. जिसकी वजह से अक्सर उनकी मौत हो जाती है. वह बताती हैं कि उनके पास 12 भैंस और 8 बकरियां थी. जिसे उन्होंने मवेशी पालन के तहत बैंक से क़र्ज़ लेकर ख़रीदा था ताकि उनका दूध बेचकर आमदनी का माध्यम बनाया जाए. लेकिन खारा पानी पीने के कारण अब तक उनकी सात भैंस और तीन बकरियां मर चुकी हैं. वहीं बाकी बचे मवेशी भी यह पानी पीकर अक्सर बीमार रहने लगे हैं. मैंने जिस उद्देश्य से इन मवेशियों को ख़रीदा था, वह पूरा होता नज़र नहीं आ रहा है. अब मुझे यह चिंता सता रही है कि मैं अब बैंक का क़र्ज़ कैसे चुकाऊंगी? सुमन बताती हैं कि अब मैं इन पशुओं के लिए प्रतिदिन खेतों से पानी लाती हूं, जो सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है. हालांकि वह भी खारा होता है लेकिन इसके अपेक्षाकृत कम होता है. सुमन के पति फौजी सिंह बताते हैं कि अक्सर गांव वाले मिलकर लूणकरणसर से पानी का टैंकर मंगाते हैं. एक टैंकर की कीमत एक हज़ार से डेढ़ हज़ार के बीच होती है. हम ग्रामीण प्रतिदिन टैंकर मंगवाने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए सप्ताह में एक दिन आपस में चंदा इकठ्ठा कर टैंकर मंगवाते हैं. लेकिन जब पानी ख़त्म हो जाता है तो फिर वही खारा पानी का उपयोग करना पड़ता है.

करणीसर गांव के सरपंच हेतराम गोदारा बताते हैं कि इस गांव के अधिकतर परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करते है. कुछ परिवार के पास खेती के लायक जमीन है, जिससे इतना ही अनाज उगता है जिससे वह अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें. अधिकतर परिवार के लोग दैनिक मजदूरी करते हैं. ऐसे में उनके द्वारा प्रतिदिन पानी का टैंकर मंगवाना संभव नहीं है. इसलिए ज्यादातर परिवार कुओं और बावड़ियों में उपलब्ध खारा पानी का ही इस्तेमाल करते हैं और अपने पशुओं को भी यही पिलाने के लिए मजबूर हैं. वह बताते हैं कि अभी तक करणीसर गांव में प्रधानमंत्री जल जीवन मिशन के एम तहत हर घर नल जल योजना नहीं पहुंची है. जिसकी वजह से ग्रामीणों को फ्लोराइड युक्त पानी पीना पड़ रहा है.

हेतराम के अनुसार वह इस संबंध में लगातार उच्च अधिकारियों को भी अवगत करा रहे हैं. उन्होंने कई बार ब्लॉक मुख्यालय में इस संबंध में पत्र लिखकर गांव में जल जीवन मिशन के तहत पीने का साफ पानी उपलब्ध कराने का अनुरोध कर चुके हैं. वह बताते हैं कि लूणकरणसर ब्लॉक के कई गांवों में भूमिगत जल फ्लोराइड युक्त है. जिसका प्रभाव गांव वालों और उनके मवेशियों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. ज्ञात हो कि फ्लोराइड युक्त पानी वैसे तो शरीर के लिए लाभदायक होता है, लेकिन जब यही तय सीमा से अधिक हो जाता है तो शरीर के लिए हानिकारक बन जाता है. करणीसर और उसके आसपास के गांवों के पानी में यही फ्लोराइड तय सीमा से बहुत अधिक पाया जा रहा है. ऐसे में इसके लगातार प्रयोग से लोगों को हड्डियों की बीमारियां हो जाती हैं. जिसमें हड्डी का टेढ़ापन और पूरे शरीर में दर्द की परेशानी रहती है. शुरू में इस पानी की वजह से उल्टी और दस्त आते हैं. लेकिन इसके लगातार इस्तेमाल से भविष्य में व्यक्ति के दिव्यांग होने का खतरा बढ़ जाता है.

हाल ही में राजस्थान सरकार ने पेयजल योजना सुदृढ़ीकरण एवं पुनरुद्धार योजना के अंतर्गत करणीसर समेत लूणकरणसर ब्लॉक के कई गांवों में पेयजल समस्या को दूर करने की एक योजना को स्वीकृति दी है. जलप्रदाय योजना के तहत इन गांवों की जलापूर्ति को इंदिरा नहर से जोड़ा जाएगा. जिससे ग्रामीणों और उनके मवेशियों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध हो सकेगा. इस योजना पर राज्य सरकार ने 16 करोड़ 50 लाख रूपए खर्च करने की स्वीकृति प्रदान की है. आशा की जानी चाहिए कि यह परियोजना जल्द पूरा हो जाए ताकि करणीसर और उसके आसपास के ग्रामीणों और उनके मवेशियों को पीने का साफ़ पानी उपलब्ध हो सकेगा. (चरखा फीचर)

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