रामदेव ने कोरोनिल बनाई, बिना किसी इजाजत के फ़र्ज़ी दावे किये, अगले दिन बाद आयुष मंत्रालय ने फटकारा, तमाम राज्य सरकारों ने लपेटा, और 2-3 दिन बाद पहले निम्स वे डॉक्टर पलते और फिर देखते-देखते बाबा और पतंजलि दोनों पलट गए और बोले ये तो इम्युनिटी बूस्टर था !
आज बाबा मीडिया के सामने फिर आये और सफाई देते हुए बोले, हमने आयुर्वेद की जो दवा कोरोनिल के नाम पर उपलब्ध करायी है, वह इंसान को लाभ पहुंचाती है और उसकी श्वसन प्रणाली सही तरीके से काम करने लगती है, ऐसा रिसर्च में पाया गया है, अब याद कीजिये कोरोनिल के लॉन्चिंग के समय बाबा के क्या सुर थे !
इसी बीच एक नया खेल शुरू हुआ है, बाबा रामदेव लगातार तमाम बड़े चैनलों को लगातार इंटरव्यू दे रहे हैं, अब इंटरव्यू देने के लिए जो तामझाम लगाया गया है और जिस तरह के सवाल बाबा से पूछे जा रहे हैं उन्हें गौर से सुनिए, और ये भी देखिए टीवी स्क्रीन के किस कोने में उस दौरान पतंजलि का सपॉन्सर वाला स्टीकर चमक रहा है !
बाबा पतंजलि की हरिद्वार लैब से इंटरव्यू दे रहे हैं, जिसमें न्यूज़ चैनलों पर बाबा की भव्य लैब, वहां काम करते कर्मचारी और बड़ी-बड़ी मशीनों को ज़ूम कर करके दिखाया जा रहा है,
एक तरह से घरों में कोरोना के खौफ में बैठी भोली भाली जनता का नैरेटिव बदलने की एक खुलेआम कोशिश की जा रही है, भव्य लैब, काम करते वैज्ञानिक, स्क्रीन पर बार बार कोरोनिल किट और उसे कैसे काम में ले इसका तरीका बताया जा रहा है… क्योंकि रामदेव की जो किरकिरी हुई जो रायता फैल गया था उसको उन्हीं चैनलों के ज़रिए वापस समेटा जा रहा है,
क्योंकि सब जानते हैं तमाम न्यूज़ चैनलों के मुख्य चिल्लम-चिल्ली वाले प्रोग्राम और प्राइम टाइम प्रोग्रामों में पतंजलि कितना पैसा फूँकता है। द प्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ विज्ञापन एजेंसियों का कहना है कि मीडिया में अपने ब्रांड को बढ़ावा देने के लिए पतंजलि 500 करोड़ रुपये या अपने कारोबार का करीब 5 फीसदी खर्च करता है,
उद्योग के अनुमानों के अनुसार, पतंजलि ने 2017-18 में विज्ञापन पर 570 करोड़ रुपये खर्च किए हैं और इस वित्त वर्ष में भी 560 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है।
वहीं मीडिया पर नज़र रखने वाली एजेंसी टेम्पपस के सीईओ साईं नागेश कहते हैं कि, पतंजलि उन बहुत कम एफएमसीजी कंपनियों में से एक है जो समाचार चैनलों पर विज्ञापन बजट बहुत अधिक मात्रा में खर्च करती है।
वे कहते हैं, ‘समाचार चैनलों, विशेष रूप से हिंदी समाचारों पर भारी निवेश करना पतंजलि की मीडिया रणनीति में एक महत्वपूर्ण कदम है, यह एक बुद्धिमानी भरा कदम है क्योंकि सामान्य मनोरंजन चैनल महंगे हैं और परिवारों तक पहुंचते हैं, लेकिन समाचार चैनल बहुत सस्ता है और व्यापारियों और स्टाकिस्टों तक पहुंचते हैं, जो पतंजलि की व्यावसायिक योजना का हिस्सा हैं।
इसके अलावा एक और बिंदु यह है कि आप आज के इंटरव्यू में तमाम एंकरों द्वारा पूछे जाने वाले सवालों पर गौर कीजिये, कमोबेश सवाल ये है कि, क्या आप अब भी यह दावा करते हैं कि ये कोरोनिल कोरोना का इलाज है ? कोरोनिल कैसे ले सकते हैं? कोरोनिल क्या अब बिक्री के लिए जाएगी ? कोरोनिल को कैसे खरीदा जा सकता है ?
ये समझने की जरूरत है कि किस तरह पूरे मुद्दे को एक शिफ्ट दिया जा रहा है, बार बार ये सवाल पूछने का क्या औचित्य है कि क्या ये कोरोना का इलाज है, जबकि आयुष मंत्रालय के संज्ञान लेने से पहले ही कुछ मीडिया रिपोर्ट में यह पड़ताल कर ली गयी थी कि बाबा का दावा झूठा है, उत्तराखंड के ड्रग ऑफिसर ने ये कह दिया था कि बाबा ने इम्युनिटी बूस्टर का लाइसेंस लिया था।
तो फिर अब इस डिस्कोर्स को फिर से इस तरह की सवाल रूपी हवा क्यों दी जा रही है जिससे ये कोरोनिल का पूरा शगूफा इम्युनिटी बूस्टर पर आकर टिक जाए और बिक्री शुरू हो, क्योंकि अल्टीमेटली बाबा भी तो यही चाहते थे कि किट बिके।
हर डेबिट को हर एक नागरिक को देखने औऱ समझने की जरूत है कि वो किसके लिए प्रयोजित की जा रही है, एंकर आपके लिए सवाल पूछ रहा है या बाबा के लिए आपकी तमाम शंकाओं को दूर कर रहा है, इमेज मेकिंग वापस कर रहा है।