राजस्थान सरकार ने अकादमियां तो खोल दी, लेकिन वहां खाली पदों को भरने को लेकर कभी ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि प्रदेश की लगभग सभी अकादमियों में आधे से अधिक पद खाली पड़े हैं। सबसे चौंकाने वाला मामला जयपुर के झालाना स्थित राजस्थान उर्दू अकादमी का है। यहां तो सभी पद खाली पड़े हैं और अकादमी के कमरों में ताले लटके हुए हैं। अकादमी के कार्यालय को खोलने वाला भी कोई नहीं है। इस कारण अकादमी के ही बंद होने की नौबत आ गई है।
उर्दू अकादमी का गठन 45 साल पहले 1979 में किया गया था। यह राज्य सरकार के अधीन एक स्वायत्तशासी संस्था है। जिसका उद्देश्य उर्दू भाषा और साहित्य का विकास करना है। यह अकादमी कला, साहित्य, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के अधीन है। उर्दू अकादमी में सचिव का 1, लेखाकार का 1, वरिष्ठ लिपिक का 1, कनिष्ठ लिपिक के 2 और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के 2 पद स्वीकृत हैं। इन 7 पदों में से 6 पद पहले से ही खाली चल रहे थे।
यहां एकमात्र कर्मचारी वरिष्ठ लिपिक साजिद खान कार्यरत थे। वे ही अकादमी का कार्यालय खोलते थे। साजिद खान भी 30 जून को रिटायर हो गए। इसके बाद अकादमी के कार्यालय के ताला लग गया। अब यहां कोई कर्मचारी कार्यरत नहीं है।
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एस डी पी आई) ,राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष अशफ़ाक हुसैन ने उर्दू एकेडमी के कार्यालय पर ताला लगाने वाले मामले पर बयान जारी कर भाजपा सरकार पर उर्दू कि उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार उर्दू भाषा के साथ भेद भाव कर रही है और यह उसी का नतीजा है कि कर्मचारीयों के अभाव में उर्दू एकेडमी के कार्यालय पर ताला लग गया है। उन्होंने कहा कि सरकार का भाषायी एवं संस्कृति विभाग अगर समय पर स्वीकृत पदों पर भर्ती कर लेता या अन्य विभागों से कर्मचारियों को डेपुटेशन पर यहां भेज देता तो उर्दू एकेडमी के कार्यलय पर ताला नहीं लगता।
उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग की कि तुरंत प्रभाव से इस एकेडमी के स्टाफ लगाया जाएं क्योंकि उर्दू एकेडमी से बहुत सारे बुजुर्ग शायरों को पेंशन मिलती है तथा उर्दू भाषा के विकास बहुत सारे काम होते है, वो सभी काम 30 जून से ठप पड़े हैं। उन्होंने यह भी मांग की कि सरकार उर्दू एकेडमी का पुनः गठन करें और स्वीकृत पदों पर स्टॉफ की नियुक्ति करें अन्यथा यह समझा जाएगा कि सरकार उर्दू भाषा को ख़त्म करने कि साज़िश कर रही है ।