“पसीने की स्याही से लिखे पन्ने कभी कोरे नहीं होते
जो करते है मेहनत दर मेहनत उनके सपने कभी अधूरे नहीं होते”……
कुछ ऐसे ही सुविचार फेसबुक पर फोटो के साथ चिपकाते हैं राजस्थान यूनिवर्सिटी कॉमर्स कॉलेज के अध्यक्ष राजेंद्र प्रजापत जिन्हें मंगलवार को परीक्षा देते हुए पर्चियों (यानि फर्रे) के साथ पकड़ा गया। अध्यक्ष राजेंद्र प्रजापत बीकॉम थर्ड ईयर का छात्र है।
कॉलेज की फ्लाइंग ने प्रजापत की चैकिंग की तो उसकी जेब से दस वन-वीक सीरीज वाले फर्रे मिले। अब कॉलेज ने अध्यक्ष पर अनफेयर मीन्स का मामला बनाया है और उधर अध्यक्ष का कहना है उसे टॉयलेट के पास कुछ कागज मिले जिन्हें देने के लिए वो सर के पास आया तो उसे ही पकड़ लिया गया।
अब देखिए कॉलेज का मामला और अपने बचाव में की जाने वाली बयानबाजी तो यूं ही चलती आई है और चलती रहेगी। ना कोई छात्र जाकर पूछेगा कि उस मामले में क्या हुआ और किसी को पता भी नहीं चलेगा कि कब यही अध्यक्ष राजेंद्र प्रजापत यूनिवर्सिटी के ही छात्रों के आदर्श बन चुके होंगे ?
राजस्थान यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति पिछले कुछ समय से सिर्फ सक्रिय राजनीति में जाने का मात्र एक एंट्री गेट बन रह गई है। इसलिए यहां यहां छात्र राजनीति और नकल के मामले को इसलिए जोड़ कर देखा जाना चाहिए क्योंकि एक ‘अध्यक्ष’ पकड़ा गया है, जो उन तमाम छात्रों का प्रतिनिधित्व करता है जो उसके जेब से फर्रे निकलते देख रहे थे, जिनकी क्लासों में जाकर वोट देने के नाम पर सैकड़ों वादे किए गए थे ?
आखिर क्यों किसी छात्र नेता या छात्र राजनीति में उतरने वाले को यह गलतफहमी हो जाती है कि हमें तो अब राजनीति करनी है, पढ़ाई बहुत हो गई बस ! क्यों एक छात्रनेता के लिए परीक्षाएं इतनी ईजी हो जाती है ? हां माना, हमारी राजनीति में चुनाव लड़ने के लिए डिग्रियों के बंडल को नहीं तोला जाता पर एक अच्छा जननेता बनने के लिए अपने ज्ञान के चक्षु तो खोलने ही होंगे और जिसके लिए मेहनत लगेगी ना कि फर्रे।
आज फर्रे मिले हैं, कल को इन्हीं के आदेश पर फाइलें गायब हो जाएंगी, इन्हीं के आदेश पर तबादले हो जाएंगे, इन्हीं के आदेश पर करोड़ों के गबन घोटाले हो जाएंगे…..बस फर्क इतना रहेगा कि तब यही छात्र जनता में बदल जाएंगे। फिर यही छात्रनेता हमारे राजनैतिक सिस्टम में घुसने के लिए टिकट मांगेंगे तो भ्रष्टाचार और चोरी दूर होने की उम्मीद में बैठी जनता के चेहरे पर नाउम्मीदी की मोटी कालिख दिखेगी जो ना जाने कब साफ होगी?
आखिर में एक अपील, अपने छात्रनेताओं को वोट देने से पहले पूछिए कि वो किस डिपार्टमेंट में पढ़ रहे हैं, उन्हें कौनसा विषय़ पसंद है ? वो इस फलाना विषय के लिए क्या नया सोच रहे हैं ? वोट देने के मायने बदलकर देखिए ना कब तक मीणा-चौधरी के नाम पर स्याही लगवाते रहेंगे। कब तक अपने अध्यक्ष के जेब से फर्रे निकलते देखते रहेंगे ?
– अवधेश पारीक
(लेखक राजस्थान यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता के छात्र हैं, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में इनके लेख छपते रहते हैं)