2 अप्रेल 2022 को राजस्थान के करौली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद वहां के हालात का जायज़ा लेने के लिए फॉरम फ़ॉर डेमोक्रेसी एन्ड कम्युनल एमिटी (FDCA) का एक प्रतिनिधि मंडल 9 अप्रैल शनिवार को करौली पहुंचा। डेलीगेशन ने करौली पहुंच कर सर्किट हाउस में दोनों धर्मों के प्रबुद्ध जनों से मुलाक़ात की उसके बाद ज़िला कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक से मुलाक़ात कर दंगा प्रभावित क्षेत्र का दौरा कर आमजन से मुलाक़ात की.
प्रतिनिधिमण्डल में एफडीसीए के प्रदेशाध्यक्ष सवाई सिंह, प्रदेश उपाध्यक्ष टी.सी. राहुल, जमाते इस्लामी हिंद राजस्थान प्रदेश महासचिव डा. मुहम्मद इकबाल सिद्दीकी, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट (एपीसीआर) के प्रदेश महासचिव मुजम्मिल रिजवी, राजस्थान गांधी स्मारक निधि के धर्मवीर कटेवा, राजस्थान नागरिक मंच के महासचिव बसंत हरियाणा जन अधिकार मंच के जितेन्द्र भूषण शामिल थे.
करौली से आने के बाद प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को जयपुर के प्रेस क्लब में प्रेस कांफ्रेंस कर एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट पेश की.
प्रतिनिधि मंडल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 2 अप्रेल 2022 को राजस्थान के करौली शहर में नव संवत्सर के अवसर पर हिन्दू संगठनों की ओर से निकाली गई बाइक रैली के दौरान मुस्लिम मोहल्ले में भड़काऊ नारे लगाने और उत्तेजक गीत बजाए जाने के बाद हिंसा हो गई जिसमें कई लोग घायल हुए तथा करोड़ों की सम्पत्ति आग की भेंट चढ़ा दी गई जिसके बाद शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया.
एफडीसीए के प्रदेशाध्यक्ष सवाई सिंह ने बताया कि प्रतिनिधिमण्डल ने शहर के कुछ प्रबुद्ध नागरिकों से भेंट कर घटना के बारे में जानकारी ली फिर जिला प्रशासन एवं पुलिस के अधिकारियों से भेंट कर स्थिति के बारे में जाना तथा शहर में साम्प्रदायिक सौहार्द को बहाल करने के लिये सुझाव दिये. प्रतिनिधिमण्डल ने प्रशासन की अनुमति से हिंसाग्रस्त क्षेत्र का भी निरीक्षण किया.
फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के निष्कर्ष
1. प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि जिला प्रशासन ने अपनी ओर से आवश्यक सावधानी के कदम उठाए थे और राज्य सरकार के दिशा-निर्देश के अनुसार ही रैली की अनुमति दी थी परन्तु रैली मुस्लिम बहुल मुहल्ले में आने के बाद न केवल अधिक देर तक ठहरी बल्कि उत्तेजक नारे भी लगाए गए और साम्प्रदायिक रूप से घोर आपत्तिजनक गीत भी डीजे पर चलाए गए.
2. पुलिस द्वारा दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट में कहीं भी उत्तेजक नारों एवं गीतों का उल्लेख नहीं किया गया है, साथ ही इसमें रैली पर पत्थर फेंकने वालों के नाम दर्ज हैं परन्तु दुकानों में आगजनी एवं तोड़फोड़ करने वालों के नाम दर्ज नहीं हैं, जिससे यह रिपोर्ट एक तरफा प्रतीत होती है.
3. बाजार में दुकानों को चिह्नित कर अल्पसंख्यक समुदाय की दुकानों में आग लगाई गई. पुलिस बल ने हिंसा रोकने की कोशिश नहीं की बल्कि उपद्रवियों द्वारा जब आग लगाई जा रही थी उस समय वो बस देखते रहे.
4. पुलिस द्वारा गिरफ्तार लोगों के साथ मारपीट की गई जिससे कुछ लोगों को गम्भीर चोटें भी आई हैं.
5. हिंसा और आगजनी के बाद कर्फ्यू के दौरान पुलिस द्वारा ठीक से चौकसी एवं नाकेबंदी नहीं की गई जिससे उपद्रवी खुले घूमते रहे तथा दूसरे दिन भी आगजनी की कुछ घटनाएं हो गईं.
6. घटना के समय पुलिस ने अपने कर्त्तव्य का ठीक से पालन नहीं किया, पुलिस यदि मुस्तैद रहती तो घटना को टाला जा सकता था. रैली के रास्ते की अनुमति देते समय भी सभी सम्भावनाओं को ध्यान में नहीं रखा गया, रास्ता संकरा था यदि किसी चौड़े मार्ग से रैली निकाली जाती तो उचित था.
7. राज्य इंटेलीजेंस द्वारा पहले ही ऐसी आशंका व्यक्त की गई थी कि कोरोना के बाद अब रैली जुलूस आदि निकलेंगे और इस दौरान हिंसा और उपद्रव भी हो सकते हैं अतः सावधानी बरती जाए. परन्तु इन आशंकाओं और दिशानिर्देश को भी नजर अन्दाज किया गया जिससे यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटित हो गई.
8. प्रशासन एवं पुलिस के बीच उचित सामंजस्य नहीं था जिससे स्थिति को नियंत्रित करने में देर हुई. रैली के दौरान मोहल्ले की छतों पर पुलिस के जवान तैनात नहीं किये गए न ही ड्रोन द्वारा निगरानी की गई. पुलिस एवं प्रशासन ने रैली के दौरान सभी सम्भावनाओं को ध्यान में नहीं रखा. आगजनी के बाद काफी देर तक अग्निशमन वाहन नहीं पहुँचा जिससे आग से होने वाली क्षति कई गुना तक बढ़ गई.
प्रतिनिधि मंडल ने रखी यह मांगें
1. घटना की उच्च स्तरीय न्यायिक जाँच कराई जाए तथा एस. पी. शैलेन्द्र सिंह इन्दोलिया सहित मौके पर मौजूद पुलिस स्टाफ को करौली से हटाया जाए जिससे निष्पक्ष जाँच की जा सके
2. जाँच के बाद दोषी पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध कानून सम्मत कार्रवाई की जाए.
3. आगजनी में जिनके भी दुकानें और मकान क्षतिग्रस्त हुए हैं उन्हें पूरा मुआवजा दिया जाए. यह भी ध्यान रखा जाए कि यदि क्षतिग्रस्त दुकान किराए पर थी तो सुनिश्चित किया जाए कि दुकान के स्वामी और किराएदार दोनों को अलग-अलग मुआवजा दिया जाए.
4. शान्ति की स्थापना के लिए न्याय किया जाना आवश्यक है अतः सरकार सभी राजनीतिक लाभ-हानि से ऊपर उठ कर न्याय करे ताकि आम नागरिकों में विश्वास बहाल हो सके.