राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा सरकारी स्तर पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट समर्थकों की बढती सक्रियता व उनमे गहलोत के कामकाज के तरीकों से पनपते मुखर असंतोष को दबाने के लिये अचानक राज्यसभा चुनाव के बहाने भाजपा पर उनकी चूनी हुई सरकार को अस्थिर करने के लिये विधायकों को प्रलोभन देकर पाला बदलवाने का आरोप लगाने के साथ सभी कांग्रेस व समर्थक विधायकों को मुख्यमंत्री निवास पर बैठक के बहाने बूलाकर सीधे उनको वहीं से एक होटल मे ठहरा कर उनकी कड़ी बाड़ेबंदी करने पर प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट द्वारा यह कहने के बाद कि उनको किसी भी विधायक ने उन्हें प्रभोलन देने की बात नही बताने की ज्योहीं कहा तो लगा कि दाल मे कुछ काला जरुर है।
लेकिन तब तक मुख्यमंत्री गहलोत अपना खेल , खेल चुके थे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा कांग्रेस व समर्थक निर्दलीय विधायकों की बाड़ाबंदी करने के साथ साथ भाजपा नेताओं द्वारा विधायकों को प्रभोलन देकर कांग्रेस से तोड़कर अपनी तरफ खींचकर राज्यसभा मे क्रोस वोटिंग के अलावा कर्नाटक-मध्यप्रदेश व गुजरात की तरह पाला बदलवाने की कोशिश का खुला आरोप लगाने से एक तरफ प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट व उनके समर्थक विधायकों को सदिग्ध स्थिति की तरफ धकेला वही हमलावर भाजपा को घेरने पर भाजपा नेता व पायलट समर्थक बचाव की मुद्रा मे आ गये।
गहलोत अपने खास विधायक व मुख्य सचेतक महेश जोशी द्वारा राजस्थान भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो व एसओजी मे शिकायत दर्ज करवाने के बाद जांच मे क्या निकल कर आयेगा यह अलग बात है।
लेकिन हवाला कारोबारियों के अलावा भाजपा की मदद करने वाले व्यापारीक घराने व राजस्थान के धन्ना सेठो मे उक्त दर्ज शिकायतो के बाद मन मे डर जरूर बैठ गया है कि कभी जांच की जद मे वो व उनका कारोबार नही आ जये वरना उनको काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
शिकायत के बाद बताते है कि उक्त तरह के लोग भाजपा नेताओं से सम्पर्क करने से कोसो दूर भागने लगे है।
हालांकि मुख्यमंत्री द्वारा विधायको की बाड़ाबंदी करने के खिलाफ मंत्री रमेश मीणा व निर्दलीय विधायक लक्ष्मण मीणा, पूर्व मंत्री व विधायक भरतसिंह सहित अनेको ने सवाल भी खड़े किये।
लेकिन अशोक गहलोत ने कोराना काल मे भी मंत्री व विधायकों को उनकी पसंद अनुसार सूख-सुविधाओं वाली होटल मेरियट मे अपनी पूर्व नियोजित योजना के तहत बाड़ाबंदी जारी रखकर दिल्ली मे मोजूद पार्टी हाईकमान को यह समझाने मे कामयाब रहे है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री के तौर पर केवल मात्र वोही भाजपा का मुकाबला कर सकते है।
भाजपा की सरकार गिराने के सपनो को चकनाचूर करने का मादा केवल उन्हीं मे है। कांग्रेस के दोनो राज्यसभा उम्मीदवारों की जीत मे ना पहले किसी तरह का शंसय था ओर ना बाड़ाबंदी के बाद है।
लेकिन विधायकों की बाड़ाबंदी करने के बाद गहलोत ने अनेक राजनीतिक समीकरण अपने पक्ष मे जरुर कर लिये है।
1998 मे अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बनने के बाद से लेकर अब तक केवल सचिन पायलट मात्र ऐसे प्रदेश अध्यक्ष है जिनको बनाने मे उनकी मंजूरी की जरूरत नही पड़ी ओर नाही अभी तक वो उनको हटा पाये है।
जबकि पायलट के अलावा 1998 के बाद बनने वाले सभी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के लिये सीधे तौर पर या पर्दे के पीछे से गहलोत की मंजूरी रही है। ओर गहलोत जब चाहा तब उन्हें पद से हटवाने मे कामयाब रहे है।
पायलट की राजनीति की शुरुआत दिल्ली से होने के साथ साथ ऊपर गहरी राजनीतिक जड़े कायम है।
जबकि पायलट के अलावा अन्य सभी बने प्रदेशाध्यक्षो की जड़े राजस्थान के मात्र एक विधानसभा या इससे अधिक जिला स्तर पर ही कायम थी। इसलिए उनकी जड़ें उखाड़ने मे कोई खास मसक्कत नही करनी पड़ी।
तभी तो गहलोत अपनी कोशिशों से पायलट को मुख्यमंत्री बनने से रोक तो जरूर पाये लेकिन लाख जतन करके उनको अध्यक्ष पद से हटवा नही पा रहे है। पायलट आज भी उप मुख्यमंत्री के अलावा अध्यक्ष पद पर विराजमान है।
जादूगर के बेटे व स्वयं जादूगरी करने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को राजनीति का जादूगर भी कहा जाता है।
चाहे वास्तव मे धरातल पर कुछ भी घटित नही हुवा हो लेकिन राज्यसभा चुनाव के बहाने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक जादूगर की तरह बहुत कुछ घटित होते दिखाकर राजनीतिक माहोल को कोराना के डर व संन्नाटे मे हाईट देकर काफी कुछ अपने पक्ष मे कर लिया है।
अब वो अपनी पसंद से राज्यसभा चुनाव के तूरंत बाद राजनीतिक नियुक्तियों का पिटारा खोलने के अलावा मंत्रीमंडल का विस्तार व बदलाव आसानी से कर पायेगे।
एक तरह से पीछले दस दिन के राजनीतिक माहोल मे गरमाहट लाकर मुख्यमंत्री गहलोत ने अपने आपके लिए फ्री हेण्ड पा लिया है।
विधानसभा चुनाव मे अशोक गहलोत ने अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने की भरसक कोशिशे की।
अनेक समर्थकों को जब टिकट नही मिल पाई तो उनमे से अधीकांश लोगो ने बगावती तेवर अपनाते हुये निर्दलीय व कुछ बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ गये।
बताते है कि राजस्थान मे मोजूद तेराह निर्दलीय विधायकों मे से दो भाजपा की पृष्ठभूमि के व ग्यारह कांग्रेस पृष्ठभूमि के है। उन ग्यारह मे से दस विधायक अशोक गहलोत के कट्टर समर्थक बताये जाते है।
वही बसपा के निशान पर जीते विधायक राजेन्द्र गुडा तो अपने आपको गहलोत के खास तोर पर समर्थक बताने के अलावा गहलोत को ही अपना नेता बताते है।
बसपा के सभी छ विधायकों का कांग्रेस मे विलय करवाने मे विधायक गुडा की ही गहरी भूमिका राजनीतिक हलको मे मानी जा रही है।
इसी तरह गहलोत के अन्य कट्टर समर्थक सुभाष गर्ग को कांग्रेस से टिकट नही मिलता नजर आया तो वो लोकदल की टिकट समझोता दलो के बंटवारे के तहत ले आये ओर विधायक बनकर आज वो गहलोत सरकार मे मंत्री है।
कुल मिलाकर यह है कि राजनीति के जादूगर के तौर पर पहचाने जाने वालै मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को विपरीत परिस्थितियों मे भी बदले माहोल को अपने पक्ष मे करके गेंद अपने पाले मे लाने का माहिर माना जाता है।
अभी राज्यसभा चुनाव के बहाने भी उनकी कारगर रही रणनीति के कारण विरोधियों को मुहं की खानी पड़ी है।
कांग्रेस के दोनो राज्यसभा उम्मीदवारो का बडे मत अंतराल से चुनाव जीतना तय है।
लेकिन चुनाव के बहाने रची योजना से मुख्यमंत्री ने एक तीर से कई शिकार करके सबको चोंका दिया है।
–अशफ़ाक क़ायमखानी
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)