जयपुर – राजस्थान के शिक्षा मंत्री ने घोषणा की है कि राजस्थान के राजकीय विद्यालयों में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा की तिथि 22 जनवरी को उत्सव के रूप में मनाया जायेगा। सरकार ने अपने शैक्षणिक कलेंडर में इसे उत्सव के रूप में शामिल भी कर लिया है।
मानवाधिकार संगठन पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष भंवर मेघवंशी और महासचिव अनंत भटनागर ने बताया कि पीयूसीएल का मानना है कि इस तरह का निर्णय लिया जाना देश के सेकुलर स्टेट होने की अवधारणा पर चोट है तथा यह अन्य समुदायों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। संविधान तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति सरकारी संस्थानों में धर्म निरपेक्षता का पालन आधारभूत सिद्धांत है। शैक्षणिक संस्थानों में सभी धर्मों के भीतर सद्भाव का पालन करना तथा विद्यार्थियों को इसके लिए प्रेरित करना सरकार का दायित्व है।
उन्होंने कहा कि सरकार का राम मंदिर प्रतिष्ठा का उत्सव सरकारी विद्यालयों में मनाने का निर्णय सांप्रदायिकता की भावना से ग्रसित है तथा एक खास एजेंडे को आगे बढ़ाने वाला है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर प्रारंभ से ही शैक्षणिक परिसरों के सांप्रदायिकरण की प्रक्रिया में संलग्न हैं। यह निर्णय भी इसी प्रक्रिया का अगला कदम है।
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कोई धार्मिक त्योहार नहीं है और न ही हिन्दू धर्म की यह कोई परंपरा का कोई हिस्सा है। बहुत से धार्मिक संत तो इसे धार्मिक दृष्टि से भी पवित्र दिन नहीं मानते हैं। एक राजनैतिक दृष्टिकोण से किए गए कार्य को धर्म से जोड़ना असंगत है तथा यह भावी पीढ़ी के मध्य गलत जानकारी का प्रसार करेगा।
उन्होंने कहा कि पीयूसीएल राजस्थान मांग करता है कि राजस्थान सरकार तुरंत इस संविधान विरोधी तथा सांप्रदायिक निर्णय को वापिस ले।