पिछले दस महीने पहले तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खेमे के मध्य खिंची तलवारो से आये उफान के चलते 15-जुलाई को प्रदेश, जिला व ब्लॉक कार्यकारिणी को एक झटके मे भंग कर दिया गया था। उसके काफी दिनों तक संगठन के नाम पर गोविंद सिंह डोटासरा एक मात्र पदाधिकारी के तौर पर अध्यक्ष बने रहे। काफी भागदौड़ व जद्दोजहद के बाद डोटासरा की कार्यकारिणी मे 39 पदाधिकारियों का मनोनयन हुवा था। लेकिन तब से लेकर अब तक प्रदेश कार्यकारिणी का ना विस्तार हुवा ओर नाहि जिला व ब्लॉक कार्यकारिणी का गठन हो पाया है।
राजस्थान कांग्रेस संगठन मे 39 जिला व 400 ब्लाक कार्यकारिणी का 16-जुलाई-2020 के बाद से अभी तक किसी भी रुप मे गठन नही होने के कारण चाहे प्रदेश में काग्रेस की सरकार हो पर संगठन की ताकत पर कांग्रेस बहुत कुछ नही कर पा रही है। केन्द्र सरकार की जन विरोधी नीतियों व उनके द्वारा किये जा रहे जनविरोधी आदेशो का विरोध करने के लिये किये जाने वाले धरने-प्रदर्शन में लोग नाम मात्र के भी जुड़ नही पाने से कांग्रेस वर्कर मे निष्क्रियता का भाव पैदा होता साफ नजर आ रहा है।
हालांकि अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बनने के बाद बने मंत्रिमंडल का विस्तार या बदलाव भी अभी तक नही होने से मंत्री बनने की उम्मीद लगाये बैठे विधायकों का सब्र अब जवाब देता नजर आ रहा है। इसके साथ ही प्रदेश व जिला स्तरीय राजनीतिक नियुक्तियों का ना होने से आम कांग्रेस कार्यकर्ता उदासीनता का लबादा ओढे नजर आने लगा है।
गहलोत सरकारी मे विधायक व विधानसभा उम्मीदवारों की बल्ले बल्ले पर लोकसभा उम्मीदवारों की हालत पतली—
1998 मे जब अशोक गहलोत पहली दफा मुख्यमंत्री बने थे तब से उन्होंने प्रत्येक विधानसभा मे एक तरह राजा उस विधानसभा मे कांग्रेस उम्मीदवार रहे को बनाने की परिपाटी शुरु की वो परिपाटी आज भी वर्तमान सरकार मे जारी है। उस विधानसभा मे राजनीतिक व सरकारी स्तर के किसी भी तरह के होने वाले विकास कार्य व अधिकारी व कर्मचारियों की तैनाती के लिये उसी क्षेत्र के उम्मीदवार की डिजायर (अनुशंसा) होना आवश्यक बना रखा है।
लेकिन आठ विधानसभाओं पर एक लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ चुके सभी पच्चीस लोकसभा उम्मीदवारों की हालत काफी पतली है। अव्वल तो लोकसभा उम्मीदवार डिजायर करते नही है, अगर किसी ने किसी मामले में कर भी दी तो उनकी अनुशंसा पर स्थानीय विधायक की अनुशंसा को ही तरजीह मिलती है।
कुल मिलाकर यह है कि लोकसभा चुनाव मे हार की जिम्मेदारी लेते हुये तत्कालीन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के त्याग पत्र देने के बाद से अभी तक कांग्रेस पूर्णकालिक नया अध्यक्ष नही चुन पाई है। तब से अभी तक सोनिया गांधी खराब सेहत के बावजूद कार्यकारी अध्यक्ष का पद सम्भाल रही है। उसी तरह राजस्थान प्रदेश कांग्रेस पिछले दस महीनो से अभी तक अपने उनचालीस जिलाध्यक्ष व चार सौ ब्लॉक अध्यक्ष तक तलाश नही पाई है। उनकी कार्यकारिणी बनना तो दिगर बात है।
– अशफ़ाक कायमखानी