जस्टिस फरजंद अली को एक आदेश से आंकना बेमानी है

अवधेश पारीक

19 मार्च 2024 को चितौड़गढ़ में एक हिंदू धार्मिक जुलूस पर पथराव के बाद कथित तौर पर सांप्रदायिक झड़प हुई जिसमें कई घायल हुए और एक मौत हुई थी.

इसमें 18 लोगों की गिरफ्तारी हुई जिन पर केस चला और अब 20 मई को राजस्थान हाईकोर्ट ने इस पर अपने फैसले में कहा कि – 

“भीड़ का कोई धर्म नहीं होता, दो समुदायों के बीच झड़प में धार्मिक भावनाएं आहत हुई होंगी लेकिन यह तय करना कठिन है कि “झगड़े के भड़कने” के लिए कौन जिम्मेदार था?

अपने फैसले में जस्टिस फरजंद अली ने कहा कि भीड़ के हमलों में दोषियों को निर्दोषों से अलग करना बहुत मुश्किल हो जाता है. इसके बाद कोर्ट ने आरोपी 18 लोगों को जमानत दे दी.

फरजंद अली के इस फैसले के बाद कई हिंदू ग्रुप्स और सोशल मीडिया पर चर्चा है कि सभी आरोपी मुस्लिम थे और फरजंद अली ने उन्हें जमानत दी, गाहे बगाहे एक जज के धर्म पर सवाल और पेशे का अपमान किया जा रहा है.

लेकिन क्या आपको पता है फरजंद अली ने चित्तौड़गढ़ से ही वकालत शुरू की, उनकी 3 पीढ़ियां वकालत से जुड़ी हैं. उनके दादा भी वकील थे और पिता अब भी चित्तौड़गढ़ में ही वकालत करते हैं.

2022 में अजमेर सेंट्रल जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे एक बंदी की पत्नी ने गर्भधारण के लिए जोधपुर हाईकोर्ट से अपने पति की पैरोल मांगी.

यही जस्टिस फरजंद अली की खंडपीठ ने 15 दिन की पैरोल देते हुए कहा कि- 

हिंदू दर्शन में गर्भधान करना सोलह संस्कारों में से एक है जैसे कि ऋग्वेद के अनुसार संतान और समृद्धि के लिए बार-बार प्रार्थना की जाती है. यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और कुछ अन्य धर्मो में जन्म ईश्वरीय आदेश कहा गया है.

इसके अलावा 2022 में एक दिन में 500 से ज्यादा मुकदमों की सुनवाई करने का कीर्तिमान भी फरजंद अली के नाम ही है.

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