स्त्री को देखा तो साधना स्खलित हो जाती है,छुआ तो और भी ग़ज़ब हो जाता है,प्रेम कर लिया तो सर्वनाश हो जाता है,इस तरह की बकवास भरी पड़ी है विभिन्न धर्मों और धर्म ग्रंथों में।हम इसे जानते हैं,पढ़ते है और नहीं मानते हुए भी मानते हैं।
पढ़े लिखे एमबीबीएस डॉक्टर्स को क्यों बाबाओं,स्वामियों के चक्कर में पड़ना चाहिये, न ज्ञान, न वात्सल्य और न ही लैंगिक संवेदनशीलता ,काहे के स्वामी हुए फिर ? क्या प्रेरणा देंगे ये लोग ?
बेहतर होता कि इनको बुलाने के बजाय सभी सहभागियों को ‘आर्टिकल 15’ फ़िल्म दिखा देते सामूहिक रूप से,समानता के अधिकार की समझ और गहरी होती।
यौन कुंठित लोग स्त्री की आलोचना व निंदा करने ,उसे नरक का प्रवेश द्वार बताने में ही अपनी सारी ऊर्जा खत्म कर देते हैं।
कोई कितना भी अच्छा बोले,प्रवचन करें,मगर उसमें महिलाओं के प्रति दोयम दर्जे का भाव है तो उसका बोलना बेकार ही है,उसमें सामान्य समझ का भी नितांत अभाव है,वह ज्ञानी तो कतई नहीं है।
औरत की सार्वजनिक निंदा करने वाले कईं बाबा आजकल जेलों में दिन काट रहे हैं,फिर भी लोग इन्हीं से प्रेरणा प्राप्त कर रहे हैं,इन पढ़े लिखों से गांव का किसान ,मजदूर बेहतर है,वह इनके प्रेरक वक्तव्य और कथाएं नहीं ग्रहण करता,अपनी जीवन संगिनी के साथ मिलकर खेत खोदता है,कुदाल,फावड़ा,हल चलाता है,बीज बोता है,धान उगाता है,मकान और सड़कें बनाता हैं,भूखों का पेट भरता है,बेघरों के लिए घर बनाता है,ये कथित प्रेरक बकलोल भी उन्हीं की मेहनत पर ज़िंदा है।
समानता के समर्थकों को ऐसे तमाम जीवों का अपने जीवन मे निषेध करना होगा,सम्पूर्ण बहिष्कार।
स्त्रियां क्यों इनकी बकवास सुनती है और बर्दाश्त करती है,ऐसों को सबक क्यों नहीं सिखाती है ? यह सवाल स्वाभाविक है।
औरत की यौनिकता पर जबरिया नियंत्रण का ही दूसरा नाम वर्ण, जाति और धर्म है ,इनका अंत ही स्त्री मुक्ति की शुरुआत होगी।