“ऐ लड़की”
ऐ लड़की, तुम्हारी कितनी ही पीढ़ियां बनी
गृहिणी, चूले-चौके कामवाली।
मगर ऐ लड़की तुम ये मत करना
तुम पढ़ना और इतना पढ़ना की आसमां की दूरी नाप सको पलकों से
तुम इतना पढ़ना की गीत गा सको क्रांति का
तुम इतना पढ़ना की कोई ताकत भी ना दबा सके आवाज़ आजादी तुम्हारी
ऐ लड़की तुम सुंदर हो सृष्टि की अनुपम निधि हो
तुम्हारे सौंदर्य को जरूरत नहीं है
क्रीम,पाउडर,हल्दी की।
तुम बस किताबों से दिल्लगी करना तुम्हारे इस सौंदर्य को,
याद करेगा सारा ज़माना
कब्र में सोने के बाद भी
ऐ लड़की तुम बचाना,
कोख अपनी भेड़ियों से।
मत बनना तुम भेड़
नोचने ना देना जिस्म की ऊन को
मत जाने देना अपनी इच्छाओं के विरुद्ध किसी हैवान को
मत पीना तुम जहर संस्कृति-सभ्यता और परम्परा के नाम का…
तुम अब एक नई संस्कृति परंपरा बनाना
आजादी से आसमां छूने की,
सागरो मे जलपरी सी लहराने की, कोयल सी मधुर गीत गुनगुनाने की
ताकि आने वाली पीढ़ी तुम्हारा अनुसरण कर के आगे बढ़ सकें।
तुम लागना दहलिज राम की भी,
मत डरना रावण से भी तुम
मत रहना भरोसे वानरों के तुम
साहस के साथ लड़ना अपनी लड़ाई तुम्हे एक नई रामायण लिखनी है
ताकि ना त्यागना पड़े घर अपना कभी
ऐ लड़की तुम इतना पढ़ना की गर्व से गगन चूमे सिर पिता का
वो कभी न कहें पराया धन बेटी को कतराए हाथ दहेज़ मांगने वाले
तुम्हारी दहलीज पर
ऐ लड़की तुम लिखना इतिहास नए अध्याय का
तुम बनना मीरा जहर मत पीना राणा का
मत होना रीति-रिवाज़ की आड़ में अंधी तुम
तुम्हे लगानी है आग अपने भीतर,
देनी है अग्नि परीक्षा कागजों पर साही से।
नही चलना है अंगारों पर,
नही बहाना है खून अपना।
ऐ लड़की तुम्हे पढ़ना है
ऐ लड़की तुम्हें इतना पढ़ना की शंख नाद हो,
तुम्हारे इस नए दौर का
तुम रहो हर क्षेत्र में अग्रणी
तुम्हे छिलने होगे हाथ कलम से
उखेरनी होगी मेंहदी शाही से….
गोबर से बहुत नहाई है,
पीढ़ियां तुम्हारी।
ऐ लड़की ये दौर तुम्हारा,
तुम नए दौर की नारी हो।
ऐ लड़की तुम इतना पढ़ना,
जैसे कभी ना तुम हारी हो।

मुकेश खारवाल (जोधपुर)
9571893804