फूल मोहम्मद:एक जाँबाज़ अफ़सर की शहादत दिवस पर उन्हें याद करते हैं!


कबीर दास ने कहा है ‘वृक्ष कबहू फल नही खात है, नदी न सींचे नीर, परमार्थ के कारण ही साधू धरा शरीर’ ।

जहर भरे नेताओ के संपर्क का ही परिणाम है कि साधू तक हमारे देश की वासुदेव कुटुंब की गौरवशाली परम्परा का त्याग कर रहे हैं।

सत्ताधारी सभी राजनैतिक दलों की कठपुतली बनी सभी राज्यों की पुलिस पर सत्ताधारी दलों की विचारधारा का प्रभाव साफ़ दिखाई देता है।

पुलिस में ट्रांसफर पोस्टिंग में नेताओ की वफादारी देखकर के ही अधिकारी लगाए जाते हैं।

ऐसे में सम्पूर्ण कुएं में ही भांग घुली है। पुलिस की वर्दी का सम्मान तभी होगा जब पुलिस जाती, धर्म राजनैतिक वफादारी से ऊपर उठकर कानून के प्रति वफादार संगठन बनेगा।

अपने साथी की हत्या पर मौन धारण करने वाले पुलिस बल का सम्मान उसी दिन कम हो गया था जिस दिन फूल मोहम्मद की हत्या की गई।

क्या पुलिस के अनुशासित अधिकारी, कर्मचारी अपने सम्मान को बचाने के लिए एक जुट होकर कार्य करने के साथ पुलिस बल में व्याप्त कमियों को दूर करने के लिए कार्य कर पाएँगे यह सभी के लिए विचारणीय प्रश्न है?

यह है मामला

सवाई माधोपुर के मानटाउन थाना क्षेत्र के सूरवाल गांव में 17 मार्च 2011 को लोग मृतका दाखा देवी के हत्यारों को गिरफ्तार करने और पीडि़त के परिजनों को मुआवजे की मांग कर रहे थे।

इसी दौरान राजेश मीणा व बनवारी बोतलों में पेट्रोल लेकर पानी की टंकी पर चढ़ गए और आत्महत्या की धमकी देने लगे

बनवारी को लोगों ने नीचे उतार लिया लेकिन राजेश पेट्रोल से खुद को आग लगाकर टंकी से नीचे कूद गया।

सूचना मिलने पर पुलिस इंस्पेक्टर जब मौके पर पहुंचा तो लोगों ने पथराव किया और जब इंस्पेक्टर जीप में खुद को बचाने के लिए गया तो लोगों ने जीप को ही आग लगाकर उसे जिंदा जला दिया है।

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