अफ़सोस! चुनाव में सच्चर समिति की रिपोर्ट मुद्दा ही नहीं!


देश मे 17वें लोकसभा के लिये चल रहे चुनाव चरम पर पहुंच चुके है! अब तक कुल चुनाव का लगभग तीन चौथाई सफर पूरा हो चुका है!ऐसे मे ये सवाल स्वाभाविक रुप से उठता है कि आखिर देश की जनता ने किन मुद्दों के आधार पर अपने मताधिकार का प्रयोग किया है।

वैसे तो पिछले कुछ चुनावों से मुद्दों का अकाल सा रहा है। लगभग सभी राजनीतिक दलों ने एक दूसरे के ऊपर लांछन और आरोप-प्रत्यारोप के सहारे ही चुनावी राजनीति की है!दुर्भाग्य से ये सिलसिला वर्तमान परिपेक्ष मे चल रहे आम चुनावों मे भी जारी है!

जहां सारी राजनीति की धुरी जनता के मुद्दों से दूर सिर्फ अनर्गल आरोपों मे सिमट रह गई है। हालांकि विभिन्न राजनीति दल अपने घोषणा-पत्र मे आम लोगों के सरोकर के लिये कई दावे करते भी हैं!

लेकिन इन सबसे इतर एक ऐसा मुद्दा जो इस बार किसी दल के घोषणा-पत्र मे भी जगह नहीं बना पाया। उस मुद्दे के आधार पर चुनावी अभियान करना व वोट मांगना तो बड़ी बात है! वो है सच्चर समिति की रिपोर्ट!

इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के पश्चात राजनीतिक और समाजिक गलियारों मे इसकी त्वरित चर्चा तो हुई लेकिन बिना सिफारिशें लागु हुए ही ये रिपोर्ट अब पूरी तरह विलुप्त सी हो गई है।

• सच्चर समिति की रिपोर्ट

साल 2005 मे केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश राजेन्द्र सच्चर की अध्यक्षता मे सच्चर समिति का गठन किया गया था। इसका उद्देश्य था कि समिति देश के मुस्लिम समुदाय की आर्थिक, समाजिक और शैक्षणिक स्तर की जांच कर रिपोर्ट तैयार करे।

इस समिति की अध्यक्षता करने वाले न्यायाधीश सच्चर का चुनाव इसलिये किया गया क्योंकि उनकी पहचान समाजिक समानता और धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर के रुप मे रही थी। रिपोर्ट के प्रकाश मे आते ही ये साफ हो गया कि मुस्लिम समाज की वास्तविक स्थिति बहुत भयावह है। ये रिपोर्ट एक पूरे समाज की खुली तस्वीर थी।

वैसे तो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही मुसलमानों की घटती राजनीतिक प्रतिनिधित्वता,आर्थिक असमानता चिंता का विषय रही है लेकिन ऐसा पहली बार हुआ जब इस बदहाली के दर्शन आंकड़ो के माध्यम से हुए।

रिपोर्ट कहती है कि 2001 मे मुसलमानों की जनसंख्या लगभग 14 करोड़ थी जो ना सिर्फ मुख्यधारा से दूर है बल्कि सरकारी सेवाओं, सेना ओर राजनीति मे अपर्याप्त भागीदारी है।

अन्य धार्मिक समूहों की तुलना मे मुस्लिम समुदाय अशिक्षित,निर्धन और अस्वस्थ है। इन समस्याओं से निपटने के लिये समिति ने कुछ सिफारिशें भी दी थी।

• समिति की प्रमुख सिफारिशें

१) रिपोर्ट मे सिफारिश की गई थी निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों मे रोजगार देने मे मुस्लिमों के साथ भेदभाव ना हो।
२). निर्वाचन क्षेत्रों का सही बंटवारा हो ताकि समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व मिल सके। साथ ही परिसीमन समिति से भी कहा गया कि वो मुस्लिम बाहुल्य सीटों के साथ न्याय करे।
सच्चर समिति की रिपोर्ट आने के बाद मुस्लिम समाज की ओर से तीखी प्रतिक्रिया हुई। उस समय ये भी स्पष्ट हो गया कि जिन राजनीतिक दलों पर मुस्लिम समुदाय के तुष्टिकरण का आरोप लगता रहा है वो स्वंय ही उसके साथ वर्षों तक कुठराघात करते रहे। उस समय कथित धर्मनिरपेक्ष दलों के अलावा दक्षिणपंथी दलों ने भी अपने घोषणा-पत्र मे इसकी सिफारिशों को लागु करने की दुहाई देना प्रारंभ कर दिया। लेकिन वर्तमान मे स्थिति बिल्कुल विपरीत है।

समाज की संवादहीनता का शिकार हुई ये रिपोर्ट राजनीतिक दलो के लिये संवेदनहीनता का पात्र बन चुकी है। वैसे ये दर्शाता है कि राजनीतिक दलों के लिये लोकतंत्र मे नकारात्मक और आधारहीन मुद्दों के सहारे शासन करना बहुत आसान हो गया है।

-अशफ़ाक़ खान

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