जयपुर | राजस्थान के भीलवाड़ा की मांडल तहसील के रेह गाँव के रहने वाले महाराम गुर्जर चारपाई पर बैठे हैं और उनके हाथ कांप रहे हैं. वह न तो ढंग से खड़े हो सकते हैं और न ही सांस ले पाते हैं. महाराम गुर्जर की उम्र 65 बरस है और उनका आधा जीवन खानों में पत्थर तोड़ते गुज़र गया. पिछले पाँच सालों से वह सिलिकोसिस नामक बीमारी से ग्रसित हैं और किसी तरह अपने जीवन का एक-एक दिन गुज़ार रहे हैं.
क्या है सिलिकोसिस बीमारी?
राजस्थान के 19 ज़िलों में लगभग 18 हज़ार सेंड स्टोन खाने हैं जहाँ से बेश क़ीमती पत्थर और खनिज निकाले जाते हैं. राज्य में लगभग 30 लाख खान मज़दूर इन खानों में पत्थर तोड़ने और उसे काटने का काम करते हैं. पूरे प्रदेश में लगभग 22 हज़ार खान मज़दूर इस गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं. यह बीमारी पत्थर काटने के दौरान उड़ती धूल के फेफड़ों में चले जाने से होती है.
इस बीमारी के बारे में हमने बात की भीलवाड़ा के ज़िला अस्पताल में सांस से संबंधित बीमारियों के विशेषज्ञ डॉक्टर प्रदीप कटारिया से बात की. डॉ. कटारिया के अनुसार, “पत्थर की खानों में बड़े-बड़े पत्थरों को जब मज़दूर ड्रिल करते हैं तो उससे धूल उड़ती है जो मज़दूरों के फेफड़ों में जमा हो जाती है जिससे उनके फेफड़े ख़राब हो जाते हैं.”
डॉक्टर प्रदीप के अनुसार, “ये बीमारी विशेष रूप से सिलिका खानों में होती है, जहाँ सिलिका कण सांस के साथ फेफड़ों में चले जाते हैं और उन्हें गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं. सिलिका कणों से उत्पन्न होने के कारण इस बीमारी को सिलिकोसिस कहा जाता है.”
‘सुखदेव अब काम नहीं करते‘
सुखदेव बलई भीलवाड़ा ज़िले के हीरापुर गाँव के रहने वाले हैं. सुखदेव ने लगभग 15 साल क्वार्टर जिप्सम और सिलिका खानों में काम किया है लेकिन पिछले तीन सालों से वो घर पर ही हैं क्योंकि उन्हें सिलिकोसिस जैसी गंभीर और लाइलाज बीमारी हो गई है. वह जब भी साँस लेते हैं, दर्द से कराह उठते हैं.
सुखदेव कहते हैं, “यह बीमारी मुझे तीन साल से है, मुझे सांस लेने में तकलीफ होती है, सारा शरीर दर्द करता है, हम सरकारी अस्पताल से दवाएं लाते हैं, बस उन्हीं दवाओं के सहारे जिंदा हैं, जब दवाएं ख़त्म हो जाती हैं तो दोबारा ले आते हैं.”
उन्हें सिलिकोसिस के इलाज के लिए सरकार से एक लाख रूपए की मदद तो मिली लेकिन वह नाकाफ़ी थी. अब सुखदेव के घर में कोई कमाने वाला नहीं है.
सरकारी मदद की अधूरी कहानी
राज्य सरकार ने 2016 में सिलिकोसिस से पीड़ित मरीज़ों की सूची बनाना शुरू किया ताकि पीड़ित मजदूरों की मदद हो सके, जिसके अनुसार सिलिकोसिस से पीड़ित मरीज़ को इलाज के लिए 1 लाख रूपए का अनुदान देना था. लेकिन प्रदेश में सैंकड़ों ऐसे पीड़ित मजदूर हैं जिन्हें इसका लाभ आज तक नहीं मिल पाया.
सिलोकोसिस के लिए 2019 की नीति
साल 2019 में राज्य सरकार फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों के संबंध में एक नीति लाई थी जिसका नाम न्यूमोकोनयोसिस नीति था. इस नीति के तहत 2019 के बाद सिलिकोसिस बीमारी से पीड़ित या फिर इस प्रकार की जो कोल माइनिंग में काम करने या पत्थर काटने के जोखिम भरे काम करने के दौरान होने वाले बीमारियों से सम्बंधित है.
2019 के बाद पीड़ित होने वाले मजदूरों को तीन लाख रुपये जीवित रहने के दौरान और दो लाख रुपये मरणोपरांत उनके आश्रितों को मिलेगा. साथ ही उनके बच्चों को राशन और शिक्षा मुफ़्त में मिलेगी और मृतक की पत्नी को विधवा पेंशन की सुविधा इस योजना के तहत दी गई है.
इस नीति में यह भी प्रावधान था की पीड़ित को पेंशन के रूप में हर महीने 4,000 रुपये मिलेंगे और उनके परिवार को हर महीने 3,500 रुपये पांच साल तक या उनके नाबालिग उत्तराधिकारी के आत्मनिर्भर होने तक मिलेंगे.
हालांकि, इस नीति के लागू होने के बाद भी पुनर्वास के लिए कई विधवाओं को इसका लाभ नहीं पहुँचा. भीलवाड़ा की माण्डल तहसील के रेह गाँव की रहने वाली सायरी बाई के पति तुलसीराम की मृत्यु को 4 साल होने वाले हैं लेकिन उन्हें अभी तक डेढ़ लाख रूपये ही मिल पाये हैं.
सायरी बाई कहती हैं, “मुझे अभी तक डेढ़ लाख रूपए ही मिले हैं, जबकि सिलिकोसिस से मरने वाले मज़दूर को तीन लाख रूपए का प्रावधान है. जब मेरे पति जिंदा थे तब हमें इलाज के लिए एक रुपया भी नहीं मिला.”
क्या कहते हैं आँकड़े
2018 में आयी CAG रिपोर्ट के मुताबिक़ 2015-2017 के बीच राजस्थान में 1800 से अधिक मज़दूरों की इस गंभीर बीमारी से मृत्यु हुई है और प्रदेश भर में लगभग एक लाख मज़दूरों ने सिलिकोसिस बीमारी होने का दावा करते हुए पुनर्वास और मुआवज़े के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया है.
राजस्थान में सबसे ज़्यादा इस बीमारी से पीड़ित पूर्वी राजस्थान के दो जिले करौली और धौलपुर है. करौली जिले में हर साल 600 से अधिक मज़दूरों को सिलिकोसिस बीमारी हो जाती है.
क्या हल है इस बीमारी से बचने का?
सिलिकोसिस बीमारी होने के बाद मरीज़ के जीवित रहने की संभावना लगभग ख़त्म हो जाती है. यह एक लाइलाज बीमारी है जिसके होने के चंद साल बाद ही मरीज़ की मृत्यु लगभग निश्चित हो जाती है.
डॉक्टर कटारिया का कहना है की, इस बीमारी का कोई भी इलाज नहीं है. इससे बचना ही एक मात्र उपाय है. उनके अनुसार खानों में काम करने वाले मज़दूरों को सेफ्टी किट दिया जाना चाहिए और जब मज़दूर पत्थरों की कटाई कर रहे हों तब उन्हें मास्क का उपयोग करना चाहिए ताकि मिट्टी और धूल के कण साँस के साथ फेफड़ों तक न पहुँच पाए.
साथ ही चट्टानों की ड्रिलिंग करते समय उसमें पानी का उपयोग हो ताकि धुल और सिलिका के कण हवा में न उड़ें.
राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के द्वारा 2019 में सिलिकोसिस से पीड़ित मरीज़ों के लिए बनाई गई नीति ने इन पीड़ित मज़दूरों/मरीज़ों को थोड़ी राहत तो दी परंतु प्रशासनिक बदइंतज़ामी की वजह से इनके ज़ख़्मों को राहत नहीं मिल सकी.