महामारी और लॉकडाउन से बिगड़े हालातों में नायक बनिये खलनायक नहीं !


मैं देखूं जहां “निज़ाम” होती है तरफ़दारी में, हर-सू बात सियासत की,

दुनिया में सच है ज़िन्दा और वही सच बयां करता है औक़ात सियासत की.

साल भर होने को आया है सारी दुनिया इस कोरोना की चपैट को झैल रही है। लेकिन हमारे मुल्क में इस कोरोना के साथ बे-वजह, बेतुकेपन से मुश्किल हालातों को और ज़्यादा पेचीदा बनाया जा रहा है।

हमारे मौजूदा हालातों सेे, मैं, आप और हमारा मुल्क ही नहीं सारी दुनिया वाकिफ़ है। हम बात करें कोरोना की तो सारी दुनिया कोरोना से जूझ रही है, कोरोना से लड़ रही है और इस कोरोना से निजात पाने की कवायदों में लगी है। बहोत से मुल्क इस परेशानी से उबर भी रहे हैं वहां सुधार की ये कवायदें कारगर साबित हो रही हैं।

वहीं हमारे मुल्क में इस कोरोना की आड़ में हालातों को सुधारने की बजाय और ज़्यादा बिगाड़ने की साज़िशें – मनसूबे चल रहे हैं। और हुकूमत का इस तरफ़ बिलकुल भी ध्यान नहीं है। जबकी हुकूमत को चाहिए सबसे पहले नरसिंहानंद जैसे उपद्रवियों पे लगाम कसी जाए। जो ऐसे मुश्किल हालातों में भी चैन-ओ-सुकूं और भाईचारे के दुश्मन हुए जा रहे हैं।

ऐसे जाहिलों पे लगाम कसने की बजाय सभाओ में और मीडिया पर उन्हे मंच देकर उन्हे और भी बढ़ावा दिया जाता है। उनकी समीक्षा या उन से सवाल न करके एक तयशुदा स्क्रिप्टिंग के तहत उनसे बात की जाती है। और उस जगह गर उस जाहिल से कुछ छूट जाता है, उसे ध्यान नहीं रेहता है तो, सामने बैठा वो निलामी वाला ऐंकर इशारतन उसे याद दिलाता है की, आप भूल गए मैं याद दिला दूं , स्क्रिप्ट में अभी ये बक्वास और करनी बाकी है।

मीडिया को देश के स्तम्भों में गिना जाता है पर गुज़िशता सालों से ये स्तम्भ डगमगाया हुआ है।

ख़ैर दुनिया में अभी सच और हक़ बात करने वाले लोग ज़िन्दा हैं। ज़िन्दा हैं वो, जिनका ज़मीर ज़िन्दा है। और उन्हीं के लिए ईशवर ये संसार चला रहा है।

ख़ैर हम एक सच्चे और अच्छे इन्सान की तरह देखें तो हमारे आस-पास बहोत सारे ऐसे लोग, ऐसे परिवार हैं, जिन्हें इस वक़्त मन्दिर-मस्जिद नहीं, स्वास्थ्य-शिक्षा की तो बात रेहने ही दीजिए। इलाज-मारजा हो जाएगा और दो वक़्त की रोटी की जुगत भी हो जाएगी।

मीडिया में बेमतलब और बेमकसद मामले उठाकर इन्सानियत को ख़त्म किया जा रहा है, लोगों के दिलों में नफ़रत का ज़हर भरा जा रहा है।

ऐसे भुखमरी और नफ़सा-नफ़सी के आलम में भी 24 घंटे मीडिया (छोटे पर्दे) पर चुनावी चर्चा, कोरोना हाहाकार और मन की बात ही दिखाया जाता है।

किसी यतीम मासूम बच्चे को गौद में लेकर या किसी मज़लूम और मुफ़लिस बुज़ुर्ग के साथ खड़े होकर मोदी जी ये क्युं नहीं केहते।

प्यार की गंगा बहै, दैश में एका रहे।

सिस्टम-हुकूमत ऐसे कदम क्यूं नहीं उठाती है जिससे चैन-ओ-सुकून और भाईचारा बनाए रखने में बढ़ावा मिले।

मैं हुकूमत से पूछता हूं, आपके भी परिवार हैं, कभी आपने इन परिवारों की जगह अपने परिवारों को रख कर देखा है, कभी सोचा है, नहीं ना, तो सोचिये?

आपके आस-पास भी ऐसे लोग होंगे, जिनके लिए उनका परिवार ही उनका धर्म-मज़हब है।

उन लोगों के बारे में सोचिए जिन लोगों के लिए इन बुरे हालातों से लड़ते हुए अपना परिवार चलाना ही उनका कर्म-इबादत है।

ख़ास तौर पे सिस्टम से हुकूमत से मैं ये एक सवाल करता हूं?

क्या कभी आप में से किसी ने ऐसे परिवारों के बारे में सोचा है, जिनमें परिवार के नाम पर सिर्फ़ औरतें या छोटे बच्चे ही परिवार हैं। और कहीं किसी परिवार में मर्द है तो वो किशोर आयु वर्ग में है और जहां-तहां युवा आयु वर्ग में है?

साल-भर से इन हालातों के चलते यहां ये लोग भी बेरोज़गार ही हैं और अगर कहीं किसी के पास रोज़गार है भी तो वो लाॅक-डाउन की बेचारगी के चलते घरों में कैद हैं।

ऐसे में सवाल आता है दो वक़्त की रोटी का, लाॅक-डाउन में लाॅक होकर अपने बुढ़े माँ-बाप और कहीं अपने दूध पीते बच्चे को भूख से मरता या बिलखता देखे?

गौ़र ए फिकर की बात है ऐसे हालातों में चोरी-डकैती, लूट-पाट, और मारा-मारी फैलेगी।
उपर से मुहम्मद (सअव) या राम की बात का तड़का भी ज़ोरों-शोरों पर है।
ख़ैर सिस्टम-हुकूमत को इन सारे हालातों की खबर पहले से ही है। तभी तो उन्होने ऐलान कर दिया था आत्मनिर्भर बनिये।

बहर-हाल क्या आप में से कभी किसी ने सोचा है ऐसे तंग-ज़हन और नफ़सा-नफ़सी वाले हालातों में कितनी दहशत, ख़ौफ़ और मुश्किलात में गुज़रता होगा इन परिवारों का हर एक पल जहां परिवार के नाम पर सिर्फ़ औरतें और छोटे बच्चे ही परिवार हैं?

क्या कभी इन परिवारों की जगह आप में से किसी ने, अपने परिवारों को रख कर देखा है सोचा है, नहीं न, तो सोचिये?

और अगर सिस्टम-हुकूमत अपने राजनीतिक पटल के फैसलों के चलते इस तरह नहीं सोच सकती हैं तो फिर मैं हर एक हिन्दुस्तानी से गुज़ारिश करता हूं की, बिगड़ते हालातों में अपने दिल-दिमाग़ को बिगडने न दें। अपने आस-पास के माहोल, भाईचारे और चैन-ओ-अमन को बनाए रखें और वो परिवार जिन में परिवार के नाम पर सिर्फ़ औरतें-बच्चे हैं, ऐसे परिवारों के लिए मसीहा बनिये, उस परिवार का भाई बनिये, उस परिवार का बेटा बनिये। हो सकता है कल उस परिवार की जगह आपका परिवार भी हो।

क्यूं की, हुकूमत ने पहले ही कह दिया है आत्मनिर्भर बनिये।
अफ़सोस के साथ ये बात साबित है के हुकूमत सारे हालात और अंजाम से वाकिफ़ होकर भी अंजान है।

ख़ैर मैं खुद से, आप से और हर इन्सान से, सिर्फ इन्सान से यही कहूंगा के हर जगह बिगड़े हालातों में हीरो बनिये विलैन नहीं !

निज़ाम कुरैशी जयपुर


 

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