“केजरीवाल की लड़ाई कभी आर॰एस॰एस॰ की विचारधारा से रही ही नहीं,संघ तो उनका संरक्षक हैं “


टोपी पहने, झाड़ू उठाये, जनलोकपाल की रट लगाए ,दिल्ली के सर्विस प्रोवाइडर सीएम की वर्तमान राजनीति को लेकर कईं साथी निराशा व्यक्त कर रहे है,किसी को उनका संघम शरणम अच्छा नहीं लग रहा है,तो कोई उन्हें उनकी घर वापसी पर कोस रहा है..!

साथियों ,केजरीवाल साहब से इतनी उम्मीद पालनी ही नहीं थी,वे शुरू से बहुत क्लियर रहे हैं,उन्होंने अपना भाजपा प्रेम कभी छुपाया भी नहीं है और न ही उनकी लड़ाई कभी भाजपाई विचारधारा से रही है,उन्हें कांग्रेस को भ्रष्टाचार की आड़ में ठिकाने लगाने का ठेका मिला था,जिसे उन्होंने एक गांधी का प्रतीक रामलीला मैदान में रखकर शुरू किया और आज तक अपना टास्क पूरा कर रहे हैं ?

क्या लोग नहीं जानते हैं कि वे आरक्षण विरोधी यूथ फ़ॉर इक्विलिटी की सभाओं में शिरकत करते थे? क्या इस मुल्क की सिविल सोसायटी के धुरंधर भूल गए हैं कि वे आरटीआई मूवमेंट के वक्त भाजपा में इस आंदोलन की लॉबिंग का काम संभालते थे और आडवाणी जी और गोयल जी जैसे भाजपा नेताओं से उनके रसूखात बहुत अच्छे हुआ करते थे ?

क्या जब उन्होंने जनलोकपाल जैसा संविधानेतर कानून की मांग करते हुए सड़कों पर आवारा भीड़ को उतारा व अराजकता प्रारम्भ की,तब उनके तेवर किसी निरंकुश तानाशाह सरीखे न थे,उनकी भाषा और उनकी भाव भंगिमा सब तरफ अंहकार झलकता था और आंखों में शक्ति अर्जन की नंगी भूख !

क्या पूरे जन लोकपाल आंदोलन के पीछे नागपुर का केशव भवन नहीं था ? क्या भाजपायी कार्यकर्ता व संघी, विहिप लोग फंडिंग व फंक्शनिंग की ज़िम्मेदारी नही निभा रहे थे ?

मैंने इस शख्स को 2002 में नजदीक से देखा और फिर 2011 तक देखता रहा,मुझे सदैव ही लगता रहा कि यह अतिमहत्वाकांक्षी, अविश्वसनीय व्यक्तित्व है।

इसे आम जन और किसी से कोई लेना देना नहीं है,पावर हंगरी पर्सन है,विचारधारा विहीन राजनीति की बात करता है,शिक्षा,चिकित्सा व बिजली जैसे बुनियादी मुद्दों पर 10 फीसद काम करके 100 फीसदी मार्केटिंग में माहिर ।

दिल्ली के लोग ‘ मेरा बिजली बिल जीरो -केजरीवाल मेरा हीरो’ कहते हुए जब उसके झांसे में आये,तब भी उसकी साम्प्रदायिक सोच वैसी ही थी,कुछ भी अलग न थी।जेएनयू पर गुंडों के हमले, जामिया में पुलिस अत्याचार और शाहीन बाग को लेकर उसकी आपराधिक खामोशी को रणनीति समझ कर वाहवाही करने वाले तब ही समझे जब दिल्ली की सड़कें खून से लाल न हो गई।

हाल ही में अमित शाह से मिलकर गलबहियाँ करके साथ साथ काम करने का संकल्प उद्घोषित करनेवाले केजरी जी अब कन्हैया पर देशद्रोह के मुकदमें की परमिशन दे दिए हैं तो क्या आश्चर्य की बात है,आप ही क्रोनोलॉजी नहीं समझ पाए थे,वरना अरविंद भाई और उनका कुनबा तो सदैव ही स्पष्ट रहा है।

उनका एकमात्र लक्ष्य पीएम बनना है,इसके लिए चालीसा पढ़नी पड़े या चवालीस लोगों को मरते देखना पड़े,उनको कोई फर्क नहीं पड़ता,न पहले पड़ा और न ही आगे पड़ेगा।

वो वही कर रहे हैं,जो उनको करना है,आपमें पहचानने की क्षमता का अभाव है तो यह आपकी कमजोरी है,उनका इसमें क्या दोष है ?

फिर चुनिये, सिर धुनिये ,माथा पीटिये, चीखिये -चिल्लाईए, निर्मम सत्ताधारी संवेदनहीन ,क्रूर और बहरे हैं,वे नहीं सुनेंगे ।

-भंवर मेघवंशी

(लेखक कई किताबों के लेखक हैं और प्रसिद्ध पत्रिका डायमंड इंडिया के संपादक रहे हैं)

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