कठुआ काण्ड और अलीगढ़ कांड आपको एक जैसे लगते हैं तो आप साम्प्रदायिक रोग से पीड़ित हैं !
कठुआ कांड –
रिपोर्ट लिखाने के कोई दो महीने बाद कार्यवाही शुरू होती है। घटना में हिंदुओं का नाम आते ही हिन्दू संगठन सक्रिय होते हैं। तिरंगा यात्रा निकाली जाती है। स्थानीय स्तर पर लड़की के पिता और परिवार पर दबाव बनाया जाता है। हिंदूवादी संगठनों के लगातार बयान आते हैं। जम्मू में जब चार्जशीट दाख़िल होनी थी तो मक़तूल की वकील के साथ वकीलों के संगठन ने हाथापाई की। केस न लड़ने के लिए दबाव बनाया। पूरा जम्मू शहर जाम कर दिया गया। वीडियोज़ की भीड़ आ गई जिसमें आरोपियों को बेगुनाह बताया गया। देश के एक शीर्ष अख़बार ने अपनी वेबसाइट पर ख़बर चलाई कि रेप हुआ ही नहीं।
अलीगढ़ काण्ड –
अलीगढ़ में 30 को बच्ची ग़ायब हुई। 31 को केस दर्ज़ हुआ। 2 तारीख़ को बच्ची की लाश मिली। इस देरी के लिए चार पुलिसवाले बर्खास्त कर दिए गए। परिजनों की शिक़ायत पर दोनों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर बाक़ी धाराओं के साथ एन एस ए में केस दर्ज़ हुआ। अपराधियों के अपराध कबूल करने के बाद फांसी तय है। मामला फास्ट ट्रैक कोर्स में ले जाया जा रहा है। संगठन तो छोड़िए कोई एक आदमी हत्यारों के समर्थन में नहीं आया है। सार्वजनिक रूप से इसे छोटी मोटी घटना बस योगी सरकार के एक मंत्री ने बताया है जिसकी भरपूर मलामत हो रही है।
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फिर भी अगर आपको दोनों मामले एक लगते हैं तो आप किसी साम्प्रदायिक रोग से गहरे पीड़ित हैं। इलाज़ कराइये इसके पहले कि कहीं आप अपने घर, अपने पड़ोस में हुई किसी घटना में आरोपी का धर्म देखकर फैसला करने की विकट स्थिति में पहुँच जाएँ।
– अशोक कुमार पांडेय