सड़कों पर उबलता आक्रोश,राष्ट्रवाद साजिश या विखंडन ?
14 फरवरी की पुलवामा की घटना के पश्चात पूरे देश में एक जबरदस्त आक्रोश एवं प्रतिक्रिया देखने को प्राप्त हो रही हैं। शहरों के साथ साथ छोटे-छोटे गांव में शहीद परिवारों के समर्थन में तथा इस घटना के विरोध में जगह जगह कैंडल मार्च,रेलिया, सभाएं व नारेबाजी हो रही हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे पूरा देश राष्ट्रवाद से ओतप्रोत हो और अब आतंकवाद की इस तरह की मानवता विरोधी कायराना घटनाओं से आर पार की लड़ाई लड़ने की पूर्ण तैयारी हो चुकी है लेकिन किसी समस्या का समाधान अथवा उसका स्थाई हल भावनाओं की बजाय तर्क के माध्यम से ढूंढा जाना चाहिए।
इस पूरे माहौल में दो महत्वपूर्ण प्रश्न उभर कर सामने आए हैं। पहला इन आतंकवादी घटनाओं का मूल कारण क्या है? अगर इसका संबंध कश्मीर समस्या से है तो फिर कश्मीर समस्या का समाधान किस ओर होना चाहिए ? इसमें धारा 370 का प्रश्न भी महत्वपूर्ण हो उठता है। दूसरा सड़कों पर जो राष्ट्रवाद का गुब्बार दिख रहा है क्या वह असली राष्ट्रवाद है? या भारत के बिखराव का राष्ट्रवाद है ?
सर्वप्रथम इस पूरी समस्या के मूल जड़ तक पहुंचने से पहले हमें वर्तमान आतंकवादी घटना पर गौर करना चाहिए। इस आतंकवादी घटना को एक कश्मीरी युवक आदिल मोहम्मद दर ने आत्मघाती हमले के माध्यम से अंजाम दिया हैं। जिसमें आरडीएक्स से भरी हुई कार को सीआरपीएफ के वाहन से टकराकर इसे अंजाम दिया हैं। तथा इस घटना की जिम्मेदारी पाकिस्तान से संचालित हो रहे जैस ए मोहम्मद आतंकवादी संगठन ने ली है जिसका प्रमुख मसूद अजहर है जो 15 वर्ष पूर्व कंधार विमान अपहरण की घटना के द्वारा भारत से छुड़वाया गया था।
ऐसा नहीं है कि कश्मीर में यह पहली आतंकवादी घटना है इससे पूर्व अक्टूबर 2001 में जम्मू कश्मीर विधानसभा के सामने भी जबरदस्त आतंकवादी हमला हुआ था। पूरे देश में कई बार आतंकवादी हमले हुए चाहे वह संसद पर हमला हो या मुंबई हमला हो | यहां यह भी गौर करना होगा कि भारत सरकार द्वारा विगत एक वर्ष से कश्मीर में ऑपरेशन ऑल आउट अभियान चलाया जा रहा हैं। जिसमें सरकारी रिपोर्ट के अनुसार तकरीबन 150 आतंकवादी मारे गए।
वस्तुतः इस आतंकवादी हमले के पीछे कश्मीर समस्या को कारण माना जा रहा है इसकी प्रमुख वजह है कि एक कश्मीरी आत्मघाती युवक ने इस घटना को अंजाम दिया है साथ ही आतंकवादी संगठन जैस ए मोहम्मद का संबंध भी प्रमुखता है कश्मीर समस्या से रहा हैं। लेकिन यहां यह भी सोचने वाली बात है कि कश्मीर समस्या कोई तात्कालिक समस्या नहीं है अपितु यह विवाद भारत की स्वतंत्रता और कश्मीर के विलय के साथ ही प्रारंभ हो गया था। राजा हरि सिंह के विलय पत्र सशर्त था जिसमें विदेश,संचार और रक्षा को छोड़कर आंतरिक मामलों में जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता की शर्त थी और इसी शर्त को पूरा करने हेतु अनुच्छेद 370 संविधान में जोड़ा गया था
कश्मीर समस्या के विकराल रूप धारण करने के पीछे अल कायदा का बड़ा योगदान रहा है जब अलकायदा ने अमेरिका की सहायता से रसिया के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध में विजय हासिल की तो उनका दूसरा लक्ष्य कश्मीर स्थापित हो गया तथा उसके पश्चात कई अन्य आतंकवादी संगठनों ने कश्मीर को केंद्र में रखकर अपने आतंकवाद की विस्तार को अंजाम दिया। लेकिन वर्तमान में कश्मीर समस्या की गंभीर बनने के पीछे सबसे बड़ा कारण कश्मीरी लोगों का भारत की नीति में घटता हुआ विश्वास तथा इस प्रकार के आतंकवादी संगठनों के प्रति सहानुभूति पनपना रही है
लेकिन इस पूरी घटनाक्रम के पश्चात जिस प्रकार से ही पाकिस्तान मुर्दाबाद तथा कश्मीरी छात्रों व मुसलमानों के प्रति जो आक्रोश सड़कों पर दिखाई दिया। यही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस घटना पर कभी भी देश के नाम संबोधन नहीं दिया अपितू जनसभाओं में यह घोषणा की कि जो आग देश के लोगों में धधक रही है वही आग उनके सीने में भी धधक रही हैं। यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या इस प्रकार के बयान बाजी इस समस्या के समाधान की दिशा सही है या नहीं यह इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि राजनीतिक नेतृत्व का काम सिर्फ उस समस्या के समाधान या हल निकालना ही नहीं होता अपितु उस देश के नागरिकों के विचार और भावनाओं को एक दिशा देना भी होता है। क्या यह उचित नहीं होता है कि इस प्रकार के बयान बाजी की स्थान पर कोई ठोस कार्रवाई देखने को प्राप्त होती आत्मा आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई की कोई ठोस नीति निर्माण की दिशा में कार्य किया जाता|
इस समस्या के मूल तक पहुंचने और उसके स्थाई समाधान की ओर अग्रसर ने से पूर्व इस बात पर विचार करना समीचीन हो जाता है कि विगत 5 वर्षों में कश्मीर नीति कितनी सफल रही ? यह प्रश्न इसलिए उठता है कि जब हम 2013 से 2018 के आंकड़ों की तुलना करते हैं तो यह तथ्य सामने आता है कि 2013 में कुल 170 आतंकवादी घटनाएं हुई जबकि 2018 में कुल 614 आतंकवादी घटनाएं घटित हुई। इसी प्रकार 2013 में कुल 53 सैनिक शहीद हुए जबकि 2018 में 191 सैनिक शहीद हुए। इन सबसे इतर सबसे डराने वाली बात यह है कि 2013 में कुल 16 कश्मीरी युवकों ने आतंकवादी गतिविधियों को जॉइन किया जबकि 2018 में 191 कश्मीरी युवकों ने आतंकवादी गतिविधियों को ज्वाइन किया। इन आंकड़ों दो बातें स्पष्ट होती है पहली यह कि विगत 5 वर्ष की कश्मीर नीति के फलस्वरुप आतंकवादी घटनाओं में लगभग 4 गुना बढ़ोतरी हुई हैं। तथा कश्मीर में हमारे सैनिकों की क्षति भी अधिक हुई हैं। दूसरी इससे भी डरावनी है जो स्पष्ट करती है कि कश्मीरी युवकों का रुझान इन आतंकवादी गतिविधियों की तरफ तेजी से हो रहा हैं। वर्तमान पुलवामा की घटना में भी यह प्रश्न जरूर चिंतन योग्य होना चाहिए कि आत्मघाती हमलावर युवक आखिर कैसे इस दिशा में अग्रसर हुआ?
इसका सीधा सा अर्थ यह है कि भारत सरकार की कश्मीर नीति में जरूर कुछ खामियां है अगर तार्किक दृष्टि से चिंतन किया जाए तो विगत 5 वर्षों में कश्मीर नीति में जो बड़ा बदलाव आया है उसी सरल शब्दों में यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पहले जहां संवाद कश्मीर नीति का महत्वपूर्ण अंग था वही वर्तमान सरकार की कश्मीर नीति में मस्कुलर पॉलिसी अधिक हावी रही जिसमें शक्ति प्रदर्शन को प्राथमिकता दी गई। प्रकृति का नियम होता है कि प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है और यही बात कश्मीरी नौजवानों पर भी लागू होती है भारत सरकार की इस शक्ति प्रदर्शन की नीति की चलते कश्मीरी युवकों में भारत के प्रति विश्वास कम हुआ हैं। और इस समस्या के समाधान में इस महत्वपूर्ण प्रशन पर गौर करना आवश्यक होगा।
अब दूसरे महत्वपूर्ण सवाल पर आते हैं कि पलवामा की आतंकवादी घटना की प्रतिक्रिया के रूप में भारत की सड़कों पर राष्ट्रवाद के नाम पर कश्मीरियों तथा मुसलमानों के विरुद्ध जो जहर उगला जा रहा है तथा पाकिस्तान के विरुद्ध जो गुस्सा फूट रहा है। क्या उसकी दिशा सही है? अगर गहराई से मूल्यांकन किया जाए तो जो कुछ इस समय भारत में घठित हो रहा है वह आतंकवादियों के मंसूबों को पूरा करने वाला है क्योंकि आतंकवादी भारत की एकता को तोड़ना चाहते हैं वे हिंदू- मुसलमानों के बीच दरार पैदा करना चाहते हैं वे कश्मीरियों तथा मुसलमानों के मन में असुरक्षा का भाव को उत्पन्न करना चाहते हैं जिससे कि उन्हें आगे आतंकवाद के रास्ते पर धकेलना आसान रहे।
अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आखिर उपयुक्त परिस्थितियों में भारत सरकार तथा भारतीय नागरिकों की रिति-नीति क्या हो ?
इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी कीमत पर गांधी जी द्वारा दिखाए गया रास्ता अर्थात हिंदू-मुस्लिम एकता और भारत की एकता विघटित नहीं होनी चाहिए। भारतीय समुदाय को आतंकवादियों के मंसूबों को किसी भी कीमत पर पूरा नहीं होने देना चाहिए। अतः हर कीमत पर भारतीयों को एकता और सद्भाव का परिचय देना चाहिए। मुसलमान एवं कश्मीरी छात्रों पर हमला और गाली-गलौच इस एकता को खंडित कर रही हैं। इसलिए राष्ट्र का नेतृत्व कर रहे शीर्ष नेतृत्व को इस एकता को बनाए रखने के संबंध में बार-बार आव्हान करना चाहिए तथा लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया को भी इस समय अहम रोल अदा करने की आवश्यकता हैं। मीडिया को लोगों में नफरत, युद्ध के उन्माद के स्थान पर भाईचारा और एकता के लिए प्रेरित करने वाली भूमिका को अदा करना चाहिए |
एक नागरिक के दृष्टिकोण से लोगों को चाहिए कि उसे आक्रोश प्रकट करने के साथ-साथ सरकार से सवाल पूछा जाना चाहिए क्योंकि आख़िर सीआरपीएफ के जवानों की सुरक्षा का दायित्व सरकार का होता है। अतः सवाल सरकार से जरूर पूछा जाना चाहिए कि उसकी आतंकवाद विरोधी नीति क्या है? तथा उसमें कमियां है तो उसे किस प्रकार दुरुस्त किया जाएगा ? इसलिए नागरिकों की ओर से एक मांग शीघ्र उठनी चाहिए कि इस घटना की शीघ्र से शीघ्र जांच हो कर वास्तविक तथ्यों को सामने लाया जाए और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं हो इसके लिए एक व्यापक कठोर आतंकवाद विरोधी नीति का निर्माण किया जाए।
इस संवेदनशील समय में भारतीय नागरिकों को स्पष्ट तौर पर ध्यान में रखना होगा कि जो कश्मीरी छात्र भारत के विभिन्न हिस्सों में अध्ययन कर रहे हैं तो इसका सीधा सा अर्थ यह है कि इन कश्मीरी छात्रों में भारतीयों के प्रति एक विश्वास का भाव है किसी भी प्रकार की कश्मीरी छात्रों पर हम लोग की घटनाएं इन कश्मीरी छात्रों में विद्यमान इस विश्वास को कम करने का कार्य करेगी। और ऐसा होना आतंकवादियों के मंसूबों का पूरे होने जैसा होगा।
भारत सरकार को अपनी कश्मीर नीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है कश्मीर समस्या के समाधान में कश्मीरी लोगों का भारत में विश्वास होना पहली शर्त है अतः किसी भी कीमत पर कश्मीरी लोगों से संवादहीनता उचित नहीं हैं। भारत सरकार को इस संवाद को तीव्र करने की आवश्यकता हैं। यह समय बहुत संवेदनशील है धारा 370 का मुद्दा सरकार की राजनीतिक पार्टी व उसके समर्थकों द्वारा बार-बार उठाया जाना इस समस्या को और अधिक गंभीर बनाएगा| इस संवेदनशील समय पर अनुच्छेद 370 के विवाद को प्रोत्साहित करना बंद कर देना चाहिए। इसके लिए उचित समय का इंतजार किया जाना चाहिए।
इस समय पूरी दुनिया भारत की सड़कों पर उफान ले रहे राष्ट्रवाद को देख रही है और सड़कों पर उबाल भर रहा है यह राष्ट्रवाद किसी भी दृष्टि से भारत के एक राष्ट्र के रूप में निर्माण की दिशा में सही नहीं कहा जा सकता अपितु यह भारत के बिखराव की दिशा में एक कदम ही कहा जा सकता हैं। प्रत्येक भारतीय का दायित्व है कि वह राष्ट्र निर्माण में एक सशक्त, शांति ,सद्भाव और एकता के सूत्र में बंधे हुए राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान करें तथा विश्व के समक्ष इतिहास की पुनरावृति करते हुए एक सशक्त भविष्य के भारत की रूपरेखा प्रस्तुत करें ।
( News papers के एडिटोरियल पेज के लिए लिखा गया आलेख)
(सी.बी .यादव)