बिहार में एकयूट इनसेफेलाइटिस सिंड्रोम (चमकी बुखार)से मरने वाले बच्चों की संख्या में लागातार बढ़ोत्तरी हो रही है और यह अन्य हिस्सों में भी फैल रहा है।
गौरतलब है कि मीडिया की सक्रियता से यह मुद्दा चर्चा का विषय बन पाया वरना किसी की भी नजर इस ओर नहीं जाती। एसकेएमसीएच मुजफ्फरपुर के डॉक्टर्स,नर्सेज और संबंधित कर्मी भी अपने कर्तव्यों के प्रति तन्मयता दिखाते रहे हैं।
मीडियाकर्मियों के तीखे सवालों को झेलते हुए दबी जुबान से ही सही अस्पताल की कमियों को भी उजागर करने का साहस दिखाया है।इनके साहस की दाद देनी होगी क्योंकि सामान्यतया कर्मी अपने उच्चअधिकारियों संबंधित विभाग या सरकार के विरुद्ध ब्यान देने से परहेज करते हैं।
किसी पूंजीपति ,उद्योगपति ,मंत्री, नेता और नौकरशाह,का बच्चा किसी अस्पताल की लापरवाही में अगर मर जाता तो सभी अस्पतालों के लिए नए नियम बना दिए जाते,अस्पताल की मान्यता रद्द करके डॉक्टर को जेल भिजवा दिया जाता ,पर दुर्भाग्यवश मुजफ्फरपुर में मरने वाले बच्चों में कोई बच्चा उपरोक्त लोगों का नहीं है।
यह सब उन्हीं के बच्चे हैं जो सामाजिक,आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं।इसीलिए यहां कोई कानून लागू नहीं है।
दुर्भाग्यपूर्ण है कि विपदा की इस घड़ी में देश, प्रदेश की सत्तारूढ़ एनडीए सरकार जश्न मनाने में व्यस्त हैं। कहीं अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस,तो कहीं जश्न-ए -उर्दू के नाम पर लाखों रुपये खर्च हो रहे हैं।
आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी योग शिविर में भाग लेने झारखंड तो आ सकते हैं, चुनाव के समय बिहार का दौरा कर ताबड़तोड रैलियों को संबोधित कर उनका वोट लेने का भी प्रयास करते थकते नहीं पर आज जबकि बिहार में रोज चमकी बुखार से पीड़ित मासुमों की जान जा रही है ,उनकी सुधी लेने का साहस उनमें नहीं दिखा।
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार जश्न ए उर्दू का आयोजन कर शायरों और गजलकार के शायरी व गजलों के द्वारा मनोरंजन कर शायद यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि बिहार में बहार है।
किसी भाषा के विकास पर जोर देना कोई बुरी बात नहीं है यकीनन उर्दू बिहार की दूसरी राज्य भाषा है और गंगा जमुनी तहजीब की प्रतीक है परंतु इससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि बिहार के उन नौनिहालों को बचाया जाए जो कल जाकर योग भी कर सकें,स्वस्थ्य मनोरंजन भी और पार्टियों के लिए रैलियों में दरी बिछाने से लेकर मतदान केंद्रों पर पन्ना प्रमुख बनकर नेताओं के वोट का जरिया भी बन सके।
विपक्ष के नेताओं और मीडिया को अस्पताल जाकर सच्चाई जानने से रोकना, स्पष्ट दर्शाता है कि वहाँ सब कुछ ठीक नहीं है।अगर मीडियाकर्मी साहस के साथ वहाँ जाकर सरकार को आईना नहीं दिखाते, प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्वास्थ्य मंत्रियों को नहीं टोकते तो फिर किसी को पता भी नहीं चलता कि प्रदेश में नौनिहालों की हालत गंभीर होते जा रहे हैं।
हाँ मंत्री जी के लिए क्रिकेट वर्ल्डकप का मजा किरकिरा जरूर हो गया क्योंकि कैमरे ने रोती बिलखती माँओं, चित्खार करते पिता को, बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को,डॉक्टर्स की कमियों को,लापरवाह नेता और मंत्रियों को और दुनिया को अलविदा कहते उन बच्चे को दिखा दिया जो समुचित ईलाज के अभाव में अपना दम तोड़ दिया।
सुखद है कि कुछ सांसदों द्वारा लोकसभा में यह मुद्दा उठाया गया है।सहायता राशि देने की पहल हो रही है।विपक्ष सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं और कुछ लोग सोशल मीडिया पर अपने उद्गार वयक्त कर रहे हैं।
आमलोगों और विपक्षी नेताओं को चाहिए कि वे ऐसे मुद्दे पर सड़क से सदन तक संघर्ष कर इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहूँचाए ताकि ऐसी विपत्ती आने से पहले लोग सजग हो जाएँ।
अपनी परेशानियों से तंग आकर लोगों ने नेताओं का विरोध करना शुरू कर दिया है परंतु आमजनों द्वारा विपक्ष के नेताओं का विरोध करना सही नहीं है क्योंकि सत्ता उनके हाथ में नहीं है और उनका काम सरकार के गलत नीतियों ,कुव्यवस्था और विफलताओं पर आवाज़ उठाना है।
काश!चुनाव के समय आमजन ऐसे बुनियादी सुविधाओं को मुद्दा बनाया होता तो फिर यह दिन देखने को नहीं मिलते।
मीडियाकर्मियों और नेताओं को भी चाहिए कि वे डाक्टर्स को बाधित न करें और सत्ता से सवाल करने की हिम्मत दिखाए।
★ मंजर आलम, रामपुर डेहरू, मधेपुरा