उच्च न्यायालय का फ़ैसला स्वागत योग्य- जमाअते इस्लामी हिन्द


पाँच निर्दोष लोगों द्वारा जेल में बिताए गए जीवन के अमूल्य 15 वर्ष कौन वापस लाएगा और उनका क्या मुआवज़ा दिया जाएगा यह सवाल जमाते इस्लामी हिन्द के प्रदेशाध्यक्ष मुहम्मद नाज़िमुद्दीन ने किया। उन्होंने 13 मई, 2008 को हुए जयपुर सीरियल बम धमाकों के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर पीठ के फैसले का स्वागत करते हुए राज्य सरकार से मांग की कि इन बेक़ुसूर लोगों के विरुद्ध झूठे आरोप गढ़ने वाले पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध आपराधिक मुक़द्दमे दर्ज किये जाएं। साथ ही बिना किसी दोष के 15 साल जेल में काटने वाले पाँचों युवकों को यथा सम्भव मुआवज़ा दिया जाए।
29 मार्च, 2023 को न्यायमूर्ति पंकज भण्डारी और न्यायमूर्ति समीर जैन की खण्डपीठ द्वारा सुनाए गए फैसले में इस केस से जुड़े 28 मामलों को निपटाया गया, जिनमें ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई चार मौत की सजाएं शामिल हैं। उच्च न्यायालय ने सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया और सैफुर रहमान, मोहम्मद सैफ, मोहम्मद सलमान और मोहम्मद सरवर आज़मी को विशेष अदालत (बम विस्फोट) द्वारा दी गई मौत की सजा और अन्य दंडों को ख़ारिज कर दिया।
अदालत ने विशेष अदालत (बम विस्फोट) द्वारा शाहबाज अहमद को बरी किए जाने के ख़िलाफ अभियोजन पक्ष की अपील को खारिज करने के साथ ही अभियोजन पक्ष की चारों अभियुक्तों के की सज़ा बढ़ाने सम्बन्धी अपील को भी ख़ारिज कर दिया।
माननीय उच्च न्यायालय ने जांच में कई खामियों की निशानदेही की है। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर ट्रायल कोर्ट के निर्णय में कहीं भी संबंधित साक्ष्यों की पुष्टि नहीं हुई है। उच्च न्यायालय के इस फैसले में जांच में खामियों को उजागर किया गया है साथ ही कहा है कि इस प्रकरण में पुलिस द्वारा लापरवाही बरती गई है।
2008 में उक्त युवकों की गिरफ़्तारी के समय ही कई सामाजिक एवं मानवाधिकार संगठनों ने इन्हें झूठे केसों में फंसाए जाने और मुस्लिम समुदाय के युवकों को आतंकवादी के रूप में प्रचारित किये जाने का मुद्दा उठाया था। राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर खंडपीठ ने पुलिस जांच पर नाराज़गी जताते हुए इसे घटिया और अधूरा बताया है तथा जांच करने वाली राजस्थान पुलिस की टीम को डाँट लगाई है और डीजीपी को जांच कर दोषी पुलिस कर्मियों को सजा देने का भी निर्देश दिया है। न्यायालय ने यह भी कहा कि जिस घटना में 74 से अधिक लोगों की जानें गई हैं उनकी जाँच ठीक से की जानी चाहिए थी और त्रुटिहीन साक्ष्य प्रदान किए जाने चाहिए थे ताकि दोषियों को दंडित किया जा सकता। इसके बजाय, गलत लोगों को गिरफ्तार किया गया और बिना सबूत के गिरफ्तारियां की गईं।
प्रदेशाध्यक्ष ने इस मामले की आरम्भ से अन्त तक पैरवी करने वाले वकीलों की टीम को धन्यवाद दिया है जिसने जांच के निष्कर्षों को गलत सिद्ध करते हुए विशेष कोर्ट द्वारा दिये गए फैसले की कमियों को उजागर किया। उनहोंने दिवंगत अधिवक्ता पैकर फ़ारूक़ का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने निचली अदालत में ही पुलिस की थ्योरी को ग़लत सिद्ध कर दिया था तथा सभी गवाहों को भी झूठा सिद्ध कर दिया था। उन्होंने 2008 के सीरियल विस्फोटों में अपनी जान गंवाने वालों के परिजनों तथा घायलों के प्रति संवेदना व्यक्त करने के साथ ही राज्य सरकार से मांग की कि इस घ्टना की नये सिरे से जाँच करा कर वास्तविक दोषियों को गिरफ़्तार किया जाए ताकि घटना में जान गंवाने वालों को न्याय मिल सके।

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