भाजपा मे नरेन्द्र मोदी व अमित शाह की जोड़ी ने एक-एक करके सभी सीनियर नेताओं को चुनावी राजनीति से दूर करने के सफल प्रयोग किया!
लोकसभा चुनाव में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को एक तरह से प्रचार से पूरी तरह दूर रखे जाने से उपजे समीकरणों को लेकर 23 मई के चुनाव परिणाम के बाद राजे द्वारा अपनाई जाने वाली रणनीति पर सबकी नजर टिकी हुई है!
ज़िद की पक्की व आत्म विश्वास से भरीं वसुंधरा राजे अपने राजनीतिक जीवन मे पहली दफा इन लोकसभा चुनाव में शीर्ष नेतृत्व के सामने घुटने टेकती नजर आईं!वरना राजे ने हर दम अपनी ज़िद के आगे पार्टी नेतृत्व को झुकाया है!
इन लोकसभा चुनावों के परिणामों के बाद केंद्र मे अगर एनडीए की सरकार बनने का अवसर आता है तो राजे नितिन गडकरी के पीछे खड़ी नज़र आती हैं या फिर मजबूरी में मोदी व अमित शाह की जोड़ी के पीछे!
भाजपा में रहने के बावजूद वसुंधरा राजे की छवि एक धर्मनिरपेक्ष नेता के तौर पर रही है!
इस कारण अगर केंद्र में एनडीए की सरकार नहीं बनती है तो राजे क्या अलग से राजस्थान में अपनी क्षेत्रीय पार्टी बनाकर भाजपा व कांग्रेस को टक्कर देगी या फिर भाजपा मे ही रहकर अपनी खोई जमीन फिर पाने का साहस दिखायेगी!
नरेंद्र मोदी व अमित शाह की जोड़ी वसुंधरा राजे को भाजपा के अन्य नेताओं की तरह दूध से मक्खी निकालने की तरह कोशिश करेगे तो राजे अपने मिजा़ज के अनुसार चुपचाप बैठने वाली नही है!
लेकिन लोकसभा चुनाव प्रचार मे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने राजे व उनके खास नेताओं को प्रचार से दूर रखते हुये उनकी इच्छा के विपरीत हनुमान बेनीवाल से समझौता करके उनको ज़रा इस बात का अहसास जरुर करवा दिया है कि राजस्थान भाजपा मे राजे ही सब कुछ नही है!
इसके अतिरिक्त उक्त सब हालातों पर राजे व उनके समर्थकों की पूरी तरह चूप्पी साधने को तूफान के पहले की शांति माना जा रहा है!
कुल मिलाकर यह है कि लोकसभा चुनाव मे राजे को अलग-थलग करने की शीर्ष नेतृत्व की कोशिश से शांत बैठी वसुंधरा राजे चुनाव परिणाम के बाद अपने विरोधियों पर हमलावर होती है या फिर बहती हवा मे बहती है!
या फिर इसके एकदम उलट राजस्थान में अलग से अपना क्षेत्रीय दल बनाकर राजनीति करती है!
यह सब कुछ होते देखने के लिये तीन चार माह इंतजार करना पड़ सकता है।
Yes vsundhra ko apni taqat dikhani chahiye