क्या राजस्थान में सचिन पायलट दोहरा सकेंगे मध्यप्रदेश की कहानी!

 


18 साल तक कांग्रेस में रहने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आखिरकार लंबे सियासी ड्रामे के बाद अपना इस्तीफ़ा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को सौंप दिया!

हालाँकि कांग्रेस का कहना है कि सिंधिया ने इस्तीफ़ा दिया नहीं बल्कि उन्हें पार्टी के ख़िलाफ़ गतिविधियों में शामिल होने के लिए पार्टी से निकाल दिया गया है!

2018 दिसंबर में तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार आयी उसमें छत्तीसगढ़ राजस्थान और मध्य प्रदेश शामिल हैं ! छत्तीसगढ़ में तो भारी बहुमत से कांग्रेस ने सरकार बनायी लेकिन मध्य प्रदेश राजस्थान में बहुमत से दूर रही !

फिर भी निर्दलीयों और कुछ छोटी पार्टियों के सहयोग से कांग्रेस ने दोनों राज्यों में सरकार बना ली!

कांग्रेस ने इन तीनों राज्यों में चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद के लिए किसी का नाम नहीं दिया था ऐसे में यह पूरा चुनाव असमंजस की स्थिति में लड़ा गया !

मध्य प्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच मुख्यमंत्री पद की दौड़ थी तो वहीं राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच CM की कुर्सी के लिए तना-तनी रही!

चुनाव जीतने के बाद दोनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री बनने के लिए तीन चार दिन का इंतज़ार करना पड़ा ऐसे में राजस्थान की कमान अशोक गहलोत को दी गई और मध्य प्रदेश में CM की कुर्सी कमलनाथ के हाथ में आयी !

कहा जाता है कि यह दोनों फ़ैसले ही राहुल गांधी की इच्छा के ख़िलाफ़ हुए थे !


राहुल गांधी राजस्थान में सचिन पायलट और मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनना चाहते थे! लेकिन ऐसा हो ना सका!

ऐसे में पिछले डेढ़ साल से दोनों ही राज्यों में पार्टी के भीतर अंदरूनी उठापटक लगातार जारी है और यह कलह कभी कभी सार्वजनिक मंचों पर भी सामने आ जाती है !

मुख्यमंत्री की कुर्सी की दौड़ के सभी प्रतिभागियों के अपने -अपने गुट हैं और उन गुटों के अपने-अपने मंत्री हैं विधायक है!
ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या राजस्थान में सचिन पायलट भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ख़िलाफ़ कोई बग़ावत कर सकते हैं ?

इस सवाल का जवाब दोनों ही राज्यों की स्थितियों पर विचार करने के बाद प्राप्त किया जा सकता है!

पहला ये की सचिन पायलट का क़द ज्योतिरादित्य से थोड़ा कम है उसका कारण यह है कि सिंधिया का परिवार जनसंघ की स्थापना से ही राजनीति में है !

सिंधिया की दादी विजयराजे सिंधिया जनसंघ की संस्थापक सदस्य रही है तो वहीं उनकी बुआ वसुंधरा राजे सिंधिया दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रही हैं ! उनके पिता माधवराव सिंधिया 9 बार कांग्रेस से सांसद रहे केंद्र में मंत्री रहे हैं!

सचिन पायलट वर्तमान राजनीति में अपने परिवार से अकेले हैं ऐसे में राजनैतिक बैक्ग्राउंड उतना मज़बूत नहीं है!जिसके कारण सचिन के राजस्थान की राजनीति में इतनी पकड़ नहीं है!

दूसरी और सबसे अहम बात यह है कि सचिन पायलट के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त विधायकों की संख्या नहीं है और यही कारण था की CM की कुर्सी तक उनकी पहुँच ना जा सकी!

अधिकतर विधायक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ख़ेमे में हैं ! ऐसे में अगर सचिन पायलट बग़ावत करते हैं तो कम से कम राजस्थान में सरकार नहीं बना सकते!

तीसरी बात यह की राजस्थान का राजनैतिक इतिहास हमेशा शांत की रहा है! यहाँ ज़्यादा सियासी संकट कभी पैदा नहीं हुआ ! यहाँ तक कि यहाँ सरकारें भी “तू आ मैं जा रहा हूँ” की तर्ज़ पर 5-5 साल रहती हैं !

राजस्थान में आज तक कोई तीसरा विकल्प बना ही नहीं और अगर बना भी है तो वो सफ़ल नहीं हो पाया! ऐसे में राज्य के नेताओं के भीतर बग़ावत का उतना माद्दा नहीं है!

चौथी बात यह है कि सचिन पायलट राजस्थान में कांग्रेस के छह साल से अध्यक्ष हैं और उपमुख्यमंत्री भी, ऐसे में उनके पास सत्ता और सरकार दोनों है! जो दोनों ही ज्योतिरादित्य के पास नहीं थे और हो सकता है वो मुख्यमंत्री बनने के लिए अगले चुनाव तक इंतज़ार कर लें!

इसका मतलब यह नहीं है कि सचिन पायलट के भीतर  मुख्यमंत्री बनने के लिए महत्वकांक्षा नहीं है या उन्होंने यह लड़ाई बीच में ही छोड़ दी है!

वो उप मुख्यमंत्री रहते हुए भी कई बार अपनी ही सरकार पर निशाना साध चुके हैं और वह निशाना सीधा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर होता है !

फिर चाहे वो कोटा के एक अस्पताल में बच्चों की मौत के मामले पर अशोक गहलोत के द्वारा दिए गए बयान पर गहलोत को “अधिक संवेदनशील” रहने को की सलाह हो या फिर नागौर में दलित युवकों की बेरहमी से पिटाई के मामले में उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विभाग गृह मंत्रालय पर भी सवाल उठा दिए थे!

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