“मन है बैचैन आज”
मन है बैचैन आज
क्योंकि हुआ ही है कुछ ऐसा
आज एक साथ दो बचपन
खो गए कहीं
खो गयी किलकरियाँ
हो गयी आंगन सूनी
कितना अजीब खेल है कुदरत का
साथ आये थे दुनियाँ में दोनों
साथ गए भी दोनों
धन के लोभी भेड़िए
खा गए दोनों को
इंसान के भेष में हैवान
जिसने ले ली मासूमों की जान
आज मानवता हुई है शर्मशार
दिल रो रहा है बार बार
मन है बेचैन आज
क्योंकि हुआ ही है कुछ ऐसा!
ये कैसे जानवर हैं,
जो हैं धन के लोभी
हैं खून के प्यासे भी
क्या बिगाड़ा था उन मासूमों ने?
क्या इसलिए कि पहचान गए थे वो
क्या बच सकते हो ऊपर वाले की नजर से?
तुम्हें मौत भी मिले अगर
सजा फिर भी बाकी ही रहेगी
क्योंकि तुमने किया ही है कुछ ऐसा
मन है बेचैन आज
क्योंकि हुआ ही है कुछ ऐसा!
— ज़फर अहमद, बिहार